घर-दुकान की दौड़ में खो गया सुख? शास्वतसागरजी म सा ने दिखाया आत्मिक समाधान का मार्ग

सुख की दौड़ को विराम दो, स्वयं में झांको, वहीं प्रभु का और परम सुख का वास है।

घर-दुकान की दौड़ में खो गया सुख? शास्वतसागरजी म सा ने दिखाया आत्मिक समाधान का मार्ग

चातुर्मास 2025 – में खरतरगच्छाचार्य श्री जिन पीयूषसागर सूरीश्वरजी म.सा के शिष्य प.पू. श्री शास्वतसागर जी म . सा. ने आज प्रवचनमाला में कहा की व्यक्ति को जीवन में उम्मीद और मोह रहता है की 

“कभी तो, कहीं तो, कोई तो… देगा सुख?”

– शास्वतरत्नसागरजी म.सा.

आज के प्रवचन में 

श्री शास्वत रत्नसागरजी म.सा. ने इंसान की भ्रमित सुख-यात्रा पर सटीक आध्यात्मिक दृष्टि दी।उन्होंने कहा की व्यक्ति सुख की मृगतृष्णा’ में 

 हर वक्त किसी न किसी उम्मीद में होता है –

कभी तो मिलेगा… कहीं तो मिलेगा… कोई तो देगा…”

पर यह तीनों बातें केवल कल्पनाएं हैं।

जिस ‘कभी’ का इंतजार है, वो कभी आता नहीं।

जिस ‘कहीं’ की तलाश है, वो कहीं भी नहीं।

जिस ‘कोई’ पर भरोसा है, वो भी सुख नहीं दे पाता।

सुख की दौड़ में दुख ही साथ होता है:

महिलाएं किटी पार्टी में जाकर भी तब तक खुश नहीं होती जब तक “कॉर्नर” या “लाइन” नहीं जीतती – यानी बाहरी कारण से सुख ढूंढा जा रहा है।

युवक गाँव छोड़ शहर आता है, व्यापार जमाता है… फिर सोचता है –

“अब मकान बनाऊं”,

“अब परिवार बसाऊं”,

“अब बच्चे पालूं…”

पर यह ‘अब-अब-अब’ की दौड़ कभी खत्म नहीं होती – सुख की चाह में दुख का विस्तार होता जाता है।

सास सोचती है – “बहू आएगी तो सुख आएगा”…

पर बहू आती है तो सास को ही बच्चों को संभालना और घर के काम करने पड़ते हैं – फिर सुख कहा गया?

 घर–दुकान के बीच झूलती जिंदगी:

“व्यक्ति जब घर में शांति नहीं पाता, तो दुकान चला जाता है।

दुकान में व्यापारिक तनाव से तंग आकर फिर घर आता है।

लेकिन वहाँ भी चैन नहीं मिलता…

यह ‘सुख की खोज’ में ‘दुख की भागदौड़’ बन चुकी है।

 सत्य यही है – सुख भीतर है, बाहर नहीं:

शास्वतरत्नसागरजी म.सा. ने कहा:

“सुख न कहीं है, न किसी के पास है – वह आपके भीतर है।

परंतु आप बाहर के दिखावे, नाम, पैसा, स्टेटस, रिश्तों, मकान-दुकान में ही उसे खोजते रहते हैं।

यह मृगतृष्णा है।”

तीन शब्द, तीन धोखे – गूढ़ संदेश:

कभी – जो आज तक आया नहीं

कहीं – जो आज तक मिला नहीं

कोई – जो आज तक दे नहीं पाया

इन तीनों का पीछा कर व्यक्ति ‘असली सुख’ से दूर और ‘दुख’ के पास जाता है।

 प्रेरणा का मूल संदेश:

“सच्चा सुख बाह्य साधनों में नहीं, आत्मा की स्थिरता और संतोष में है।

जितना बाहर दौड़ोगे, उतना भीतर खालीपन पाओगे।

बाहर के भ्रमों से मुक्ति और आत्मा में स्थिरता ही वास्तविक सुख है। संघ के ट्रस्टी पूर्व अध्यक्ष चम्पालाल बोथरा ने बताया की ”प्रवचन के दौरान उपस्थित जनसमुदाय ने मंत्रमुग्ध होकर यह संदेश आत्मसात किया। कई भक्तों ने प्रवचन के पश्चात सामायिक और स्व-स्वरूप चिंतन में भाग लिया। साथ ही आज साध्वी श्री प्रमोदिता श्री जी म सा के दीक्षा दिवस की सभी ने अनुमोदना की ।साथ ही बाहर से पधारे सभी मेहमानों का स्वागत किया और 4 महीने तक आने वाले मेहमानों और ताओसवियो के स्वागत अभिनंदन अनुमोदन करने वाले परिवारों का बहुमान किया गया ।

“सुख की दौड़ को विराम दो… स्वयं में झांको… वहीं प्रभु का और परम सुख का वास है।”