अजमेर दादावाड़ी में दादा गुरुदेव की 871वीं पुण्यतिथि पर भव्य आयोजन, जिनोद्धार की ऐतिहासिक घोषणा एवं जिनोद्धार समिति की ऐतिहासिक बैठक संपन्न  चम्पालाल बोथरा (जिनोद्धार समिति सदस्य)

अजमेर स्थित श्री जिनदत्तसूरी दादावाड़ी में दादा गुरुदेव की 871वीं पुण्यतिथि के अवसर पर भव्य मेला और ऐतिहासिक जिनोद्धार बैठक आयोजित हुई। देशभर से 74 समिति सदस्य और हजारों श्रद्धालु शामिल हुए। बैठक में दादावाड़ी के भव्य पुनर्निर्माण की योजना प्रस्तुत की गई, जिसमें मंदिर, सभा मंडप, साधु-साध्वी उपाश्रय, धर्मशाला, भोजनशाला, संग्रहालय आदि का समावेश है। विभिन्न शहरों के श्रद्धालुओं ने जिनोद्धार के नुकरे लेने के लिए भावपूर्वक योगदान दिया। यह आयोजन सम्पूर्ण खरतरगच्छ समाज के लिए गौरव का प्रतीक बनेगा।

अजमेर दादावाड़ी में दादा गुरुदेव की 871वीं पुण्यतिथि पर भव्य आयोजन, जिनोद्धार की ऐतिहासिक घोषणा एवं जिनोद्धार समिति की ऐतिहासिक बैठक संपन्न   चम्पालाल बोथरा (जिनोद्धार समिति सदस्य)

आज अजमेर स्थित श्री जिनदत्तसूरी दादावाड़ी में दादा गुरुदेव की 871वीं पुण्यतिथि के पावन अवसर पर भव्य मेले का आयोजन किया गया। देशभर से पधारे हजारों श्रद्धालु गुरुभक्तों ने गहन भक्ति भाव से दादा गुरुदेव के चरणों में वंदन कर पुण्यलाभ प्राप्त किया। जिनोद्धार समिति के 108 में से 74 सदस्य इस बैठक में सम्मिलित हुए। मद्रास, बेंगलुरु, कन्नूर, कोलकाता, जयपुर, बाड़मेर, सूरत, ब्यावर, बड़ौदा, अहमदाबाद, राजिम, नागपुर, रायपुर, दुर्ग, बीकानेर, जोधपुर, मालवा, उज्जैन, दिल्ली, केशकाल, बालाघाट, राजनंदगांव, कोटा, कोयंबटूर, कच्छ, गांधीधाम आदि नगरों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे।

इस अवसर पर जिनोद्धार समिति की महत्वपूर्ण बैठक प.पू. सम्यक रतनसागर जी म.सा. एवं साध्वीश्री मनोहरश्री जी म.सा. आदि ठाणा की निश्रा में संपन्न हुई। बैठक में संयोजक भीमराज बोहरा (जयपुर), सह-संयोजक विक्रम पारख, महेन्द्र लूनिया तथा सदस्य ललित नाहटा (दिल्ली), पदमचंद नाहटा (कोलकाता), रिखबचंद बोथरा (राजिम), बाबूलाल संकलेचा, चम्पालाल बोथरा (सूरत), महेन्द्र गादिया (उज्जैन), संदीप चोपड़ा (महिदपुर), गंभीरचंद संचेती (वारासिवनी), बाबूलाल मंडोवरा (सिंदरी), रतनलाल हालावाला (अहमदाबाद), बाबूलाल मालू (अहमदाबाद), बाबूलाल डोसी (जयपुर), विजयराज झाबक (कोयंबटूर), अनिल पारख (जयपुर), प्रदीप छाजेड़ (कोटा), प्रभात धारीवाल (नागपुर), प्रकाश गोलेच्छा (रायपुर), अभय सेठिया (बालाघाट), संतोष कटारिया (केसकाल), नरेश डाकलिया (राजनांदगांव), पारस धारीवाल (जोधपुर), अमृतलाल छाजेड़ (बाड़मेर), मदन मालू (कानासर), प्रकाश संकलेचा (बाड़मेर), सुपार्श्व गोलेच्छा (रायपुर), मुकेश गोलेच्छा (चेन्नई), लक्ष्मीचंद बच्छावत (चेन्नई), सुशीला बोहरा सहित अनेक श्रद्धालु उपस्थित रहे।

बैठक में दादावाड़ी जिनोद्धार हेतु सूरत, नवसारी, अहमदाबाद, मुंबई, भावनगर आदि नगरों के प्रसिद्ध आर्किटेक्ट्स द्वारा प्रस्तुत विस्तृत नक्शे समिति के समक्ष रखे गए। साथ ही पाँच सोमपुरा विशेषज्ञों द्वारा तैयार किए गए अद्वितीय शिल्पकला आधारित डिजाइनों को भी प्रदर्शित किया गया, जिनमें पारंपरिकता और आधुनिकता का समन्वय देखने को मिला।

प्रस्तावित जिनोद्धार योजना में मंदिर-दादावाड़ी का दिव्य पुनर्निर्माण, सभा मंडप, साधु-साध्वी उपाश्रय, आवासीय कक्ष, भोजनशाला, धर्मशाला, प्याऊ, भाता घर, संघ कक्ष, स्वागत कक्ष, कार्यालय, संग्रहालय आदि सुविधाएँ सम्मिलित हैं, जो प.पू. आचार्यश्री एवं साध्वीश्री की दिव्य कल्पना से प्रेरित हैं।

 देशभर से आए गुरुभक्तों ने मंदिर जिनोद्धार के विभिन्न नुकरे – मंदिर-दादावाड़ी, खाद मुहूर्त, शिलान्यास, शिलाएँ, माँ पद्मावती, भोमियाजी, भोजनशाला, धर्मशाला, प्याऊ, उपाश्रय, 80–100 रूम की आवासीय योजना, भाता घर आदि – के लाभ लेने हेतु उत्साहपूर्वक अपना नाम दर्ज कराया और दादा गुरुदेव के चरणों में अर्थ समर्पण किया।

 एक श्रद्धालु द्वारा संपूर्ण जिनोद्धार लाभ लेने की भावना प्रकट की गई, परंतु समिति ने सर्वसम्मति से निर्णय लिया कि लाभ का समान वितरण हो, और उक्त श्रद्धालु को विशेष रूप से भोजनशाला का संपूर्ण लाभ प्रदान किया गया। उनके उदार मनोभावों की सभी ने अनुमोदना की।

प.पू. सम्यक रतनसागर जी म.सा. ने अपने प्रेरणादायक प्रवचनों में दादा गुरुदेव के चमत्कारों, दादावाड़ी के गौरवशाली इतिहास एवं आगामी जिनोद्धार के संकल्प का विस्तारपूर्वक वर्णन किया तथा सभी से इस पुनीत कार्य में तन-मन-धन से सहभागिता करने का आह्वान किया।

बहुत शीघ्र ही प.पू. आचार्यश्री जिनपियूषसागर जी म.सा. से मुहूर्त लेकर जिनोद्धार कार्य का शुभारंभ किया जाएगा। यह भव्य जिनोद्धार न केवल अजमेर अपितु समस्त खरतरगच्छ समाज के लिए गौरव का प्रतीक बनेगा। यह कार्य आने वाली पीढ़ियों के लिए भी प्रेरणास्रोत सिद्ध होगा।

आपको स्मरण कराना प्रासंगिक है कि हरिपुरा दादावाड़ी में अंधों को आंखें मिली थीं – यह दृष्टांत दादा गुरुदेव की प्रभावना और संघ के उत्कर्ष का प्रतीक है।