डिप्टी CM केशव प्रसाद मौर्य की फर्जी डिग्री केस के चलते सदस्‍यता जा सकती है? हाईकोर्ट ने कैसे बढ़ा दी है उनकी टेंशन

प्रदेश के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य की मुश्किलें बढ़ सकती हैं. उनके खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में मामला दाखिल हुआ है.

डिप्टी CM केशव प्रसाद मौर्य की फर्जी डिग्री केस के चलते सदस्‍यता जा सकती है? हाईकोर्ट ने कैसे बढ़ा दी है उनकी टेंशन

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के खिलाफ दायर याचिका स्वीकार कर ली है। 6 मई को याचिका पर सुनवाई होगी। याचिका में कहा गया- डिप्टी सीएम ने फर्जी डिग्री लगाकर 5 अलग-अलग चुनाव लड़े। कौशांबी में फर्जी डिग्री के आधार पर ही इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन से पेट्रोल पंप हासिल किया। इसलिए उनके खिलाफ FIR दर्ज हो।

यह याचिका भाजपा नेता और RTI कार्यकर्ता दिवाकर नाथ त्रिपाठी ने दायर की है। 2 साल पहले दिवाकर की याचिका हाईकोर्ट ने निरस्त कर दी थी। कहा था- याचिका तथ्यहीन है। याचिका में लगाए गए आरोपों में बल नहीं है।

इसके बाद दिवाकर नाथ त्रिपाठी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को निरस्त कर दिया था। कहा था- हाईकोर्ट में फिर से याचिका दाखिल की जाए। इसके बाद दिवाकर ने हाईकोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की, जिसे कोर्ट ने गुरुवार को स्वीकार लिया। याचिकाकर्ता की तरफ से वकील रमेश चंद्र द्विवेदी और यूपी सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल ने और शासकीय अधिवक्ता एके संस ने बहस की।

दावा- डिप्टी सीएम ने हलफनामे में गलत जानकारी दी

RTI एक्टिविस्ट का दावा है कि डिप्टी सीएम ने साल 2014 में फूलपुर लोकसभा सीट से नामांकन के दौरान हलफनामे में अपनी डिग्री बीए बताई। इसमें दिखाया गया कि उन्होंने हिंदी साहित्य सम्मेलन से साल 1997 में बीए किया है। डिप्टी सीएम ने साल 2007 में प्रयागराज के पश्चिमी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा।

इस समय जो हलफनामा दिया गया, उसमें बताया गया कि उन्होंने हिंदी साहित्य सम्मेलन से 1986 में प्रथमा, 1988 में मध्यमा और 1998 में उत्तमा की थी। प्रथमा की डिग्री को कुछ राज्यों में हाईस्कूल, मध्यमा को इंटर और उत्तमा को ग्रेजुएट के समकक्ष मान्यता दी जाती है। हिंदी साहित्य सम्मेलन बीए की डिग्री नहीं देता। इसलिए हलफनामे में दी गई जानकारी गलत है।

हलफनामे में बीए की डिग्री के साल अलग-अलग क्यों? अगर वह उत्तमा को ही बीए की डिग्री बता रहे हैं तो दोनों के पास करने वाले साल अलग-अलग क्यों हैं? मतलब, 2007 के हलफनामे में उत्तीर्ण करने वाला साल 1998 लिखा है, जबकि साल 2012 और 2014 के चुनावी हलफनामों में यही 1997 लिखा गया है।

यूपी-केंद्र सरकार से शिकायत की, लेकिन कार्रवाई नहीं हुई दिवाकर त्रिपाठी का कहना है कि मैंने स्थानीय थाना, एसएसपी से लेकर यूपी सरकार और केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों में प्रार्थना पत्र देकर कार्रवाई की मांग की, मगर कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसलिए मुझे कोर्ट जाना पड़ा।

अब उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की मुश्किलें बढ़ सकती हैं. उनके खिलाफ फर्जी डिग्री के आरोप के मामले को लेकर याचिका दाखिल की गई है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पुनरीक्षण याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया है.

कोर्ट ने याचिका दाखिले में देरी को माफ कर दिया है. कोर्ट ने महानिबंधक कार्यालय को नियमित याचिका नंबर आवंटित कर पेश करने का निर्देश दिया है.