केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय में विनोद कुमार शुक्ल के कथा साहित्य पर भाषा और संरचना की दृष्टि से विशेष अध्ययन प्रस्तुत

डॉ. रोहित जैन ने अपने शोध में विशेष रूप से विनोद जी की रचना “दीवार में एक खिड़की रहती थी” को केंद्र में रखते हुए यह प्रतिपादित किया कि उनके कथा-साहित्य की संरचना पारंपरिक ढांचों से भिन्न होते हुए भी पाठकों को एक विशिष्ट अनुभव प्रदान करती है। उनके कथा शिल्प में जटिलता के स्थान पर विचारों की सहजता है, जो पाठकों को आत्मीय रूप से जोड़ती है।

केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय में विनोद कुमार शुक्ल के कथा साहित्य पर भाषा और संरचना की दृष्टि से विशेष अध्ययन प्रस्तुत

हिंदी कथा साहित्य के सौंदर्यात्मक पक्षों को नई दृष्टि से देखने का अवसर प्रदान किया।

कासरगोड, 26 मई — समकालीन हिंदी साहित्य के प्रतिष्ठित रचनाकार विनोद कुमार शुक्ल के कथा साहित्य पर आधारित एक गंभीर और महत्वपूर्ण शोध कार्य केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में प्रस्तुत किया गया। यह शोध विश्वविद्यालय के शोधार्थी डॉ. रोहित जैन द्वारा संपन्न किया गया, जिनका निर्देशन हिंदी विभाग की सहायक प्राध्यापक डॉ. सीमा चंद्रन द्वारा किया गया।

शोध का विषय “भाषा और संरचना की दृष्टि से विनोद कुमार शुक्ल का कथा साहित्य: एक अध्ययन” है, जिसमें लेखक के कथा साहित्य की भाषिक संवेदनशीलता और रचनात्मक संरचना का विश्लेषण किया गया। शोध में यह दर्शाया गया कि विनोद जी की कहानियाँ और उपन्यास, सामान्य प्रतीत होने वाले शब्दों और स्थितियों के माध्यम से असाधारण संवेदनाओं को प्रकट करते हैं। उनकी भाषा में कविता जैसी लयात्मकता और संरचना में मौन और ठहराव की सौंदर्यात्मकता देखने को मिलती है।

डॉ. रोहित जैन ने अपने शोध में विशेष रूप से विनोद जी की रचना “दीवार में एक खिड़की रहती थी” को केंद्र में रखते हुए यह प्रतिपादित किया कि उनके कथा-साहित्य की संरचना पारंपरिक ढांचों से भिन्न होते हुए भी पाठकों को एक विशिष्ट अनुभव प्रदान करती है। उनके कथा शिल्प में जटिलता के स्थान पर विचारों की सहजता है, जो पाठकों को आत्मीय रूप से जोड़ती है।

इस अवसर पर शोधार्थी अंकुर सियोते, धनराज, आशीष कुमार, मनोज सहित ऑनलाइन माध्यम से जुड़े डॉ. प्रभांशु शुक्ला, डॉ. मंज़ीव, डॉ. प्रेमचंद, डॉ. यशपाल, दीक्षा कुमारी एवं अन्य शोधार्थी व विद्यार्थी उपस्थित रहे। सभी ने शोध प्रस्तुति की सराहना की और विषय को लेकर गहन संवाद भी हुआ।

यह कार्यक्रम न केवल साहित्यिक दृष्टिकोण से बल्कि अकादमिक दृष्टि से भी अत्यंत उपयोगी सिद्ध हुआ, जिसने हिंदी कथा साहित्य के सौंदर्यात्मक पक्षों को नई दृष्टि से देखने का अवसर प्रदान किया।