वक्फ बोर्ड कानून पर फैसले के इंतजार में देश 

याचिकाकर्ता ने दलील दी कि ये तो एक आदेश है, उसके जरिए ही ये मामला अलग किया गया था. इस कोर्ट ने कहा कि फिर तो हमें उस याचिका को भी बुलाना चाहिए और उसे भी देरी के आधार पर खारिज कर देना चाहिए.

वक्फ बोर्ड कानून पर फैसले के इंतजार में देश 

राकेश अचल 

वक़्फ़ संशोधन अधिनियम 2025 पर सुनवाई कर आदेश सुरक्षित

वक़्फ़ संशोधन अधिनियम 2025 पर सुनवाई कर आदेश सुरक्षित रखा आदेश अब लोगों की धुकधुकी तेज कर रहा है. पूरा देश फैसले का बेसब्री से इंतजार कर रहा है फिर भी 1995 के कानून को अब चुनौती देने वाली याचिकाओं का सिलसिला थम नहीं रहा.

एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय की गुजारिश पर कोर्ट ने कहा कि इस नई अर्जी को वक़्फ क़ानून को लेकर पहले से पेंडिंग केस में हस्तक्षेप याचिका के तौर पर सुना जाएगा. ये याचिका पारुल खेड़ा और हरिशंकर जैन की याचिका के साथ जोड़ दी गई है. इन याचिकाओं मे भी वक्फ कानून 1995 को चुनौती दी गई है. इन याचिकाओं पर अभी सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई नहीं की है. कोर्ट ने कहा था कि वक्फ संशोधन कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं से अलग इन याचिकाओं पर सुनवाई की जाएगी. 

पारुल खेड़ा और हरिशंकर जैन की याचिकाओं में कहा गया है कि 1995 के वक्फ कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं को कोर्ट ने हाई कोर्ट भेज दिया था लेकिन अब 2025 के वक्फ कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर यहां सुनवाई हो रही हैय लिहाजा या तो उनकी याचिकाएं भी सुप्रीम कोर्ट सुने या फिर इनको भी पहले हाईकोर्ट भेजा जाए.

मंगलवार को याचिकाकर्ता के वकील अश्विनी उपाध्याय ने दलील दी कि हमारा मामला उन अर्जियों से अलग है क्योंकि कोर्ट ने पहले ही 1995 के संशोधित वक्फ अधिनियम को चुनौती देने वाला मामला अलग कर दिया था. कोर्ट ने कहा कि हम 1995 के अधिनियम को देरी के आधार पर खारिज क्यों न करें? 1995 के अधिनियम को 2025 में चुनौती देने का क्या औचित्य है?

याचिकाकर्ता ने दलील दी कि ये तो एक आदेश है, उसके जरिए ही ये मामला अलग किया गया था. इस कोर्ट ने कहा कि फिर तो हमें उस याचिका को भी बुलाना चाहिए और उसे भी देरी के आधार पर खारिज कर देना चाहिए.

कोर्ट ने उपाध्याय से कहा कि कोर्ट की सहायता के लिए वो अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल यानी एएसजी को लाएं क्योंकि उनके बिना आदेश पारित नहीं किया जा सकता. मुख्य मामले के संदर्भ में एक याचिकाकर्ता ने अपनी हस्तक्षेप याचिका दाखिल करने के लिए पिछली याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी तो कोर्ट ने हामी भर दी.

सवाल ये है कि माननीय सुप्रीमकोर्ट फैसले को सुना क्यों नहीं रहा? फैसले सुरक्षित रखना माननीय अदालतों का अधिकार है लेकिन फैसले को रोकने के पीछे कोई वजह भी तो होना चाहिए. यहाँ मुश्किल ये है कि जैसे आप माननीय सरकार से कोई सवाल नहीं कर सकते वैसे ही कोर्टट से भी सवाल करने की मुमानियत है. सरकार से सवाल करना यदि देशद्रोह माना जाता है तो अदालत से सवाल करना अदालत की अवमानना मान ली जाती है. यहाँ 'परम स्वतंत्र न सिर पर कोई'का सिद्धांत लागू माना जाता है.

मेरा कहना ये है कि जब हर क्षेत्र में नवाचार हो रहा है तो माननीय न्यायालय को भी फैसला सुरक्षित रखने की परंपरा में तब्दीली करना चाहिए. जब सुनवाई पूरी हो गई, फैसला लिख लिया गया, तब उसे सुरक्षित रखने का क्या औचित्य? अदालत के फैसले सुनाने के लिए किसी खास मुहू की जरुरत तो होती नहीं है. फैसलैं को अकारण रोककर रहस्य कायम रखना अजूबा ही है. लोगों का तो पता नहीं लेकिन मेरे मन में सदैव ये प्रश्न पैदा होता है कि फैसला सुनाने में देरी करने के पीछे कोई लोकहित है, कोई न्यायहित है या सरकार का हित है?

जब तक वक्फ बोर्ड के नये कानून पर फैसला नहीं आता तब तक देश में बेचैनी बनी रहेगी. हवा में सिंदूर उडता रहेगा. इसलिए बेहतर हो कि हमारे मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई साहब एक नयी परंपरा डालें कि भविष्य में कोई फैसला लिखे जाने के बाद सुरक्षित नहीं रखा जाएगा, बल्किउसे फौरन सुनाया जाएगा.

फैसले सुरक्षित रखने के पीछे हालांकि दलीलें भी कम नहीं हैं. जानकर बताते हैं कि कुछ मामले संवैधानिक, सामाजिक, या कानूनी रूप से जटिल होते हैं। जजों को सभी पक्षों के तर्कों, सबूतों, और कानूनी मिसालों का गहन अध्ययन करने के लिए समय चाहिए।एक दलील ये भी है कि फैसले को सुरक्षित रखने से जजों को जल्दबाजी में निर्णय लेने के दबाव से बचने का मौका मिलता है। यह सुनिश्चित करता है कि फैसला निष्पक्ष, तर्कसंगत और कानून के अनुरूप हो।सुप्रीम कोर्ट के फैसले लिखित रूप में विस्तृत और तर्कपूर्ण होते हैं, जिनमें कानूनी सिद्धांतों और तर्कों का उल्लेख होता है। इसे तैयार करने में समय लगता है, खासकर जब फैसला भविष्य के लिए मिसाल बन सकता है।

कुछ मामले सामाजिक, धार्मिक, या राजनीतिक रूप से संवेदनशील होते हैं। ऐसे में, सुप्रीम कोर्ट सभी पहलुओं पर विचार करने और सामाजिक प्रभाव का आकलन करने के लिए समय लेता है। कई बार सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बेंच (जैसे 5 या 7 जजों की) में सुनवाई होती है। सभी जजों के बीच सहमति बनाने या असहमति को स्पष्ट करने के लिए अतिरिक्त समय चाहिए।कानूनी मिसालों का अध्ययन: सुप्रीम कोर्ट के फैसले भविष्य में नजीर बन सकते हैं। इसलिए, जज पहले के फैसलों, संवैधानिक प्रावधानों, और अंतरराष्ट्रीय कानूनों का अध्ययन करते हैं ताकि फैसला सुसंगत और मजबूत हो।प्रक्रिया: जब कोई मामला सुनवाई के बाद "सुरक्षित" रखा जाता है,ऐसी मान्यता है कि फैसला सुरक्षित रखने की यह प्रक्रिया भारतीय न्याय व्यवस्था की पारदर्शिता और विश्वसनीयता को बनाए रखने में मदद करती है।