शहीद अशफाक उल्ला खां की मजार की मिट्टी पहुंची महुआ डाबर, क्रांतिवीरों की स्मृतियों को संजोने की नई पहल

स्मृतियों को सहेजने और अगली पीढ़ी तक पहुंचाने का काम कर रहा है, जिन्होंने देश की आज़ादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दी।

शहीद अशफाक उल्ला खां की मजार की मिट्टी पहुंची महुआ डाबर, क्रांतिवीरों की स्मृतियों को संजोने की नई पहल

डॉ. राना ने बताया कि महुआ डाबर का इतिहास भी अपने आप में अद्भुत है। 1857 की क्रांति के दौरान यह गांव अंग्रेजों के विरुद्ध एक संगठित प्रतिरोध का केंद्र बना। यहां के हजारों लोगों ने आज़ादी की लड़ाई में अपने प्राण न्यौछावर किए

बस्ती जनपद स्थित महुआ डाबर क्रांति स्थल आज एक बार फिर देशभक्ति के भाव से सराबोर हो उठा, जब देश के अमर शहीद अशफाक उल्ला खां की मजार की मिट्टी यहां पहुंची। शाहजहांपुर से लाई गई इस मिट्टी को जब महुआ डाबर संग्रहालय में श्रद्धा के साथ ‘गुलपोशी’ कर स्थापित किया गया, तो वहां मौजूद हर शख्स की आंखें नम हो उठीं। यह मिट्टी सिर्फ एक प्रतीक नहीं, बल्कि उन क्रांतिकारी मूल्यों और बलिदानों की जीवंत स्मृति है, जिनके बूते यह देश आज़ाद हुआ।

महुआ डाबर संग्रहालय पिछले कई दशकों से उन अमर क्रांतिकारियों की स्मृतियों को सहेजने और अगली पीढ़ी तक पहुंचाने का काम कर रहा है, जिन्होंने देश की आज़ादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। संग्रहालय के महानिदेशक, प्रसिद्ध दस्तावेजी लेखक डॉ. शाह आलम राना ने इस पहल को एक ऐतिहासिक कदम बताया। उन्होंने कहा, “हमारी पीढ़ी को यह समझने और महसूस करने की ज़रूरत है कि आज़ादी कितनी बड़ी कीमत चुकाकर मिली है। जिन अमर शहीदों ने फांसी का फंदा चूमा, उनके बलिदान को केवल किताबों में पढ़ना पर्याप्त नहीं, हमें उनकी स्मृतियों को जीवित रूप में महसूस करने और सहेजने की ज़रूरत है।”

डॉ. राना ने बताया कि महुआ डाबर का इतिहास भी अपने आप में अद्भुत है। 1857 की क्रांति के दौरान यह गांव अंग्रेजों के विरुद्ध एक संगठित प्रतिरोध का केंद्र बना। यहां के हजारों लोगों ने आज़ादी की लड़ाई में अपने प्राण न्यौछावर किए। लेकिन अफसोस इस बात का है कि आज़ाद भारत में इस गांव की उस गौरवशाली गाथा को वो सम्मान नहीं मिला, जिसकी वह वास्तव में हकदार है। न कोई सरकारी स्मारक, न कोई स्थायी पुष्पांजलि स्थल—महुआ डाबर आज भी अपने इतिहास की परछाइयों में न्याय की प्रतीक्षा कर रहा है।

इसी पृष्ठभूमि में संग्रहालय ने एक नई कार्ययोजना बनाई है, जिसमें देश के विभिन्न शहीद स्थलों की मिट्टी और महुआ डाबर की हर ‘गैर चिरागी’ जगह की मिट्टी एकत्र कर एक राष्ट्रीय स्मारक बनाने का संकल्प लिया गया है। यह स्मारक सिर्फ ईंट-पत्थर की संरचना नहीं होगा, बल्कि यह बलिदान, देशप्रेम और राष्ट्रीय चेतना का जीता-जागता प्रतीक होगा। यह युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगा और राष्ट्र निर्माण के लिए जागरूकता फैलाएगा।

शाहजहांपुर से लाई गई अशफाक उल्ला खां की मजार की मिट्टी इस अभियान की पहली कड़ी बनी है। अशफाक उल्ला खां वह वीर सपूत थे जिन्होंने पंडित रामप्रसाद बिस्मिल के साथ मिलकर काकोरी ट्रेन एक्शन को अंजाम दिया। वे हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के प्रमुख सेनापतियों में से एक थे। अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लड़ते हुए उन्होंने फांसी को गले लगाया और अपनी मातृभूमि के लिए हंसते-हंसते जान दे दी। उनकी जेल डायरी, उनके लिखे पत्र और उनकी क्रांतिकारी सोच आज भी हर उस इंसान को झकझोर देती है जो देश के लिए कुछ करने का जज़्बा रखता है।

महुआ डाबर संग्रहालय में वर्ष 2011 से अशफाक उल्ला खां की जेल डायरी, पत्र और उनसे जुड़ी अनेक दुर्लभ सामग्रियां संरक्षित हैं। इन दस्तावेजों की प्रदर्शनी देश के कई हिस्सों में लगाई जा चुकी है, जहां युवाओं ने उन्हें देखा और जाना कि असली ‘रियल हीरो’ कौन होते हैं।

इस मौके पर आयोजित समारोह में बड़ी संख्या में लोग मौजूद थे। गांव के बुजुर्ग, स्कूली बच्चे, शिक्षाविद, पत्रकार, समाजसेवी और क्रांति प्रेमी युवाओं ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। जैसे ही मिट्टी को सम्मानपूर्वक संग्रहालय में स्थापित किया गया, वहां ‘इंकलाब जिंदाबाद’ और ‘अशफाक-अमर रहें’ के नारे गूंजने लगे। उपस्थित जनसमूह ने गुलपोशी कर अपनी श्रद्धा अर्पित की और मिट्टी को माथे से लगाकर अपने भीतर उस महान आत्मा की ऊर्जा को महसूस किया।

इस ऐतिहासिक अवसर पर डॉ. राना ने शासन-प्रशासन और समाज के सभी वर्गों से अपील की कि वे इस अभियान में भागीदार बनें। उन्होंने कहा कि यह केवल संग्रहालय की पहल नहीं, यह एक राष्ट्रीय चेतना का अभियान है। हर वह व्यक्ति, जिसे इस देश की मिट्टी से प्यार है, उसे आगे आकर इस स्मारक निर्माण में सहयोग देना चाहिए

डॉ. राना ने बताया कि आने वाले समय में गोरखपुर, झांसी, मेरठ, बरेली, कानपुर, प्रयागराज, जलियांवाला बाग, हुसैनीवाला, अंडमान की सेल्युलर जेल, चंपारण, साबरमती और देश के अन्य क्रांतिकारी स्थलों से मिट्टी लाई जाएगी। इस मिट्टी को महुआ डाबर के उन स्थानों की मिट्टी के साथ मिलाकर एक 'बलिदान-स्मृति स्तंभ' बनाया जाएगा, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की आत्मा को जीवंत रखेगा।

कार्यक्रम के समापन पर संकल्प लिया कि वे इस अभियान को न केवल आगे बढ़ाएंगे बल्कि अपने गांव, शहर और समाज में भी शहीदों की स्मृतियों को बचाने और उन्हें नई पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए प्रयास करेंगे।

इस अवसर पर नूर मोहम्मद प्रधान, रमजान खान, फकीर मोहम्मद, इब्राहिम शेख, नासिर खान विधायक प्रतिनिधि, मुमताज खान, धर्मेंद्र , विजय प्रकाश बी डी सी,सतीश गौतम, कीर्ति कुमार, यशवंत, बाबूराम, मास्टर फिरोज,महसर अली, नबी आलम खान आदि लोग शामिल रहे.