प्रधानमंत्री का बिहार दौरा: राष्ट्रीय रणनीति या असंवेदनशीलता?

*प्रखर न्यूज़ व्यूज एक्सप्रेस भोपाल मध्य*
*विदिशा संवादाता इंदर सिंह केवट
विदिशा पहलगाम हमले के ठीक दो दिन बाद मधुबनी में पीएम मोदी का दौरा कई मायनों में महत्वपूर्ण था। इस दौरान उन्होंने अमृत भारत एक्सप्रेस और नमो भारत रैपिड रेल जैसी परियोजनाओं का शुभारंभ किया और आतंकवाद के खिलाफ कड़ा संदेश दिया। उन्होंने कहा, "यह हमला सिर्फ पर्यटकों पर नहीं, भारत की आत्मा पर हुआ है। आतंकियों को ऐसी सजा मिलेगी, जिसकी उन्होंने कल्पना भी नहीं की होगी।"
यह बयान बीजेपी की 'राष्ट्र प्रथम' और 'कठोर नेतृत्व' की छवि को मजबूत करने की कोशिश थी।
हालांकि, इस दौरे को लेकर विपक्ष और जनता का एक वर्ग नाराज दिखाई दे रहा है। राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने इसे "चुनावी अवसरवाद" करार दिया, यह तर्क देते हुए कि जब देश शोक में डूबा है, तब पीएम का बिहार में सार्वजनिक कार्यक्रम करना असंवेदनशीलता है। RJD नेता तेजस्वी यादव ने कहा कि यह दौरा नीतीश-बीजेपी गठबंधन की ओर से चुनावी माहौल बनाने की कोशिश है। सोशल मीडिया पर कई यूजर्स ने इसे "शर्मनाक" बताया और सवाल उठाया कि जब पीएम ने कानपुर दौरा रद्द किया, तो बिहार दौरा क्यों नहीं?
दूसरी ओर, बीजेपी समर्थकों का तर्क है कि यह दौरा पूरी सादगी के साथ हुआ, बिना किसी स्वागत समारोह के, और इसका उद्देश्य विकास कार्यों को गति देना था। उनका कहना है कि आतंकवाद के बावजूद देश को प्रगति और सामान्य जीवन को रोकना आतंकियों की जीत होगी।
बिहार में JDU-BJP गठबंधन की मजबूत स्थिति और नीतीश कुमार की साख को देखते हुए, यह दौरा विकास और स्थिरता का संदेश देने की रणनीति हो सकता है।
बिहार चुनाव पर प्रभाव
बिहार में 2025 के विधानसभा चुनाव नजदीक हैं, और यह दौरा राजनीतिक रूप से जोखिम भरा हो सकता है। इसके संभावित प्रभावों हो सकते हैं!
1. विपक्ष का नैरेटिव RJD, कांग्रेस, और अन्य महागठबंधन दल इस दौरे को असंवेदनशीलता के रूप में पेश कर रहे हैं। अगर वे इस मुद्दे को ग्रामीण और भावनात्मक मतदाताओं तक प्रभावी ढंग से पहुंचा पाए, तो यह बीजेपी की छवि को नुकसान पहुंचा सकता है। खासकर, बिहार में युवा और शहरी मतदाता, जो सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं, इस मुद्दे पर मुखर हो सकते हैं।
2. राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा**: बीजेपी आतंकवाद के खिलाफ कठोर रुख को अपने पक्ष में भुनाने की कोशिश कर रही है। पीएम मोदी का कड़ा बयान और संभावित जवाबी कार्रवाई (जैसे सर्जिकल स्ट्राइक) उनके कोर वोटर बेस को उत्साहित कर सकती है। बिहार में राष्ट्रवाद हमेशा से एक प्रभावी चुनावी मुद्दा रहा है।
3. विकास बनाम भावनाएं**: मधुबनी में शुरू की गई परियोजनाएं मध्यम वर्ग और ग्रामीण मतदाताओं को आकर्षित कर सकती हैं। हालांकि, अगर शोक का माहौल भारी पड़ता है, तो विपक्ष इसे "विकास के नाम पर वोटबैंक की राजनीति" के रूप में पेश कर सकता है!
पहलगाम आतंकवादी हमला एक राष्ट्रीय त्रासदी है, जिसने भारत की सुरक्षा नीतियों और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई पर गंभीर सवाल उठाए हैं। प्रधानमंत्री मोदी का सऊदी दौरा रद्द करना उनकी गंभीरता को दर्शाता है, लेकिन बिहार दौरा एक जटिल निर्णय था, जो राष्ट्रीय शोक और प्रशासनिक जिम्मेदारियों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश थी। यह दौरा बीजेपी के लिए जोखिम भरा हो सकता है, क्योंकि विपक्ष इसे असंवेदनशीलता के रूप में पेश कर रहा है। हालांकि, अगर बीजेपी इसे "राष्ट्रीय दृढ़ता" और "विकास" के रूप में स्थापित कर पाती है, तो यह उनके पक्ष में भी जा सकता है।
बिहार चुनाव में यह मुद्दा कितना प्रभावी होगा, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि कौन सा नैरेटिव—विकास और राष्ट्रवाद या शोक और संवेदनशीलता—मतदाताओं को को कौन सा मुद्दा ज्यादा प्रभावित करता है। इस संकटकाल में, नेतृत्व की असली परीक्षा यह होगी कि वह राष्ट्रीय एकता और सुरक्षा को प्राथमिकता दे, साथ ही जनता की भावनाओं का सम्मान करे।