आपरेशनों के नामकरण के पीछे भी गणित

राकेश अचल
शहरों, स्टेशनों और सरायों के नामकरण के पीछे तो राजनीति और सोच काम करती ही है किंतु अब युद्ध और खुफिया कार्य के लिए हो रहे आपरेशनोँ में हिंदू मुसलमान की झलक साफ दिखाई दे रही है. इस प्रतीकात्मवाद पर टिप्पणी करना भी एक तरह से अपराध हो गया है. प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद इसकी सजा भुगत रहे हैं.
आपको पता ही है कि 22अप्रैल 2025को पहलगाम हत्याकांड के एक पखवाडे बाद पाकिस्तानी आतंकवादियों के खिलाफ चलाए गए सैन्य अभियान को आपरेशन सिंदूर का नाम दिया गया था. केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के मुताबिक ये नाम खुद प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र मोदी ने सुझाया था. सिंदूर उजाडने वालों को नेस्तनाबूत करने के संकल्प वाले इस आपरेशन की कामयाबी से आप वाकिफ हैं ही.
इस आपरेशन के बाद भारतीय खुफिया एजेंसियों ने पाकिस्तान के लिए जासूसी करने वालों के खिलाफ भी एक आपरेशन चलाया है. इसका नाम आपरेशन मीर जाफर रखा गया है. मीरजाफर बंगाल का एक चर्चित गद्दार रहा है. लेकिन अगर आपको अपनी गिरफ्तारी का डर न हो तो आप सवाल कर सकते हैं कि खुफिया आपरेशन का नाम आपरेशन जयचंद या आपरेशन बिभीषण क्यों नहीं रखा गया? जबकि ये दोनों भी गद्दार ही माने जाते हैं. आज की राजनीति में भी एक छोड अनेक गद्दार हैं जिनके नाम से ये आपरेशन संबोधित किया जा सकता था. लेकिन भगवा हो रहे देश में सब अपने ढंग से सोच रहे हैं और ये ढंग है एक वर्ग विशेष को खलनायक साबित करने का. हालांकि कर्नल सोफिया कुरैशी की उपस्थिति से इसे संतुलित करने का प्रयास किया गया है.
आपरेशन मीर जाफर एक अच्छा आपरेशन है किंतु सवाल ये है कि हमारी खुफिया एजेंसियां ये सब काम वारदातों से पहले क्यों नहीं करतीं? जबकि मीर जाफर तो बहुत पहले से सक्रिय होंगे.प्रारंभिक जांच के बाद यह पता चला कि अनेक लोगों को विदेशी यात्राओं के जरिए या कुछ पैसे दे कर और कुछ अन्य प्रलोभनों के जरिए पाकिस्तान अपने हिसाब से अपने मतलब की जानकारियां इकट्ठा कर रहा है. इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस की जांच के द्वारा यह भी पता चला कि भारतीय मोबाइल फोनों के जरिए और अन्य इलेक्ट्रानिक माध्यमों के जारी बहुत सी सामग्री पाकिस्तान भेजी जा रही है. यह भी पता चला कि इसमें दिल्ली पंजाब हरियाणा राजस्थान जम्मू कश्मीर उत्तर प्रदेश समेत कुछ अन्य जगह के लोग शामिल हैं.
जो सवाल पहलगाम हत्याकांड के बाद सुरक्षा एजेंसियों की लापरवाही को लेकर किए गये थे वैसे ही सवाल खुफिया एजेंसियों को लेकर किए जा रहे हैं और सवाल करना अपराध न होते हुए भी अपराध माना जा रहा है. अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद इसका खमियाजा भुगत भी रहे हैं.
मेरा कहना है कि आप कोई भी आपरेशन चलाइये किंतु उनके नामों से सांप्रदायिक ध्वनि नहीं आना चाहिए. सांप्रदायिक सोच आपरेशन की सुचिता को प्रभावित करती है. भारत की जनता न आपरेशन सिंदूर के खिलाफ है और न आपरेशन मीरजाफर के खिलाफ. जनता को तो परिणाम चाहिए. आप कोई भी नाम रखकर आपरेशन चलाएं इससे कोई फर्क नहीं पडता.
ज्हमारे यहाँ तो युद्धक और खुफिया आपरेशन ही क्या समुद्री तूफानों तक के नाम रखने की रिवायत है. हम अपनी मिसाइलों के नाम भी पौराणिक संदर्भों से रखते आए हैं लेकिन इन सबके पीछे राजनीति शायद ही हो जो अब हो रही है. हमने हबीबगंज को रानी कमलापत कर दिया सराय काले खान को भगवान बिरसा मुंडा चौक कर दिया, इलाहाबाद को प्रयागराज कर दिया, औरंगाबाद को संभाजी नगर कर दिया क्योंकि इन नामों से हमें दुर्गंध आती है लेकिन आपरेशन मीर जाफर हमें प्रिय लगता है क्योंकि इससे हमारा एक मकसद पूरा होता है. वो मकसद जो बुलडोजर चलाने से पूरा होता है, जो लिंचिंग से पूरा होता है, जो दूकानों पर नाम पट्टिकाएं लटकवाने से पूरा होता है.
बहरहाल हम आपरेशन मीर जाफर की कामयाबी के लिए अपनी शुभकामनायें देते हैं ताकि देश के खिलाफ काम करने वालों की छटनी हो सके.