भारत सरकार से टकराते पुराने राजघराने
ताजा मामला जयपुर राजघराने का है. जयपुर राजघराने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को सुनवाई हुई। जयपुर के ऐतिहासिक टाउन हॉल (पुरानी विधानसभा) को लेकर चल रहे विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने राजमाता पद्मिनी देवी समेत जयपुर राजपरिवार के सदस्यों की याचिका पर राज्य सरकार को नोटिस जारी किया।

राकेश अचल
साल्वे की दलीलों पर कोर्ट ने कहा कि तो आप भारत संघ को बिना पक्ष बनाए कैसे किसी संपत्ति का विलय कर सकते हैं?
देश में पुराने राजघराने अपनी संप भारत सरकार को देने के आठ दशक बाद भी उसे भूले नहीं हैं और राजघरानों की पुरानी संपत्ति हासिल करने के लिए देश की तमाम छोटी बडी अदालतों में भारत सरकार से कानूनी लडाई लड रहे हैं. इन राजघरानों के मौजूदा वारिसान या तो सत्तारूढ दल के साथ हैं या विपक्ष में. राजनीति में रहकर ये पुराने राजघराने जनता की सेवा करने की आड में अपनी संपत्ति को हासिल करने या उसे बचाकर रखने का काम कर रहे हैं.
ताजा मामला जयपुर राजघराने का है. जयपुर राजघराने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को सुनवाई हुई। जयपुर के ऐतिहासिक टाउन हॉल (पुरानी विधानसभा) को लेकर चल रहे विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने राजमाता पद्मिनी देवी समेत जयपुर राजपरिवार के सदस्यों की याचिका पर राज्य सरकार को नोटिस जारी किया।
आपको बता दें कि राजस्थान हाईकोर्ट ने इसे सरकारी संपत्ति मानते हुए राजघराने के दावों को खारिज कर दिया था। राजघराने के सदस्यों ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। टाउन हॉल के अलावा चार मुख्य इमारतों को भी सरकारी संपत्ति घोषित किया गया है।लेकिन जयपुर राजघराने ने हार नहीं मानी और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा दिया.सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच ने राज्य सरकार से कहा कि जब तक मामला लंबित है तब तक कार्रवाई को आगे न बढ़ाया जाए। अगली सुनवाई दो महीने बाद होगी।
याचिकाकर्ता चूँकि राजघराने हैं इसलिए उनकी ओर से देश के नामचीन वकील मुकदमे लडते है. जयपुर राजघराने के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे हैं हरीश साल्वे पूर्व में सालिसिटर जनरल रह चुके हैं. उनकी फीस भी कम से कम 10 लाख रुपया होती है. 69 साल के हरीश साल्वे ने दलील दी है कि यह मामला कानूनी पेचीदगियों से भरा हुआ है। उन्होंने इस मामले में संविधान के अनुच्छेद 362 और 363 में पूर्व शासकों और रजवाड़ों के विशेषाधिकार का जिक्र कियाहरीश साल्वे ने जोर दिया कि रजवाड़ों के विभिन्न कॉन्ट्रैक्ट हैं और आप इन राज्यों के इतिहास को तो जानते हैं। यह एक संधि तब हुई थी जब संघ (Union) तो पक्ष भी नहीं था, यह तो जयपुर और बीकानेर जैसे शासकों के बीच हुई थी।
साल्वे की दलीलों पर कोर्ट ने कहा कि तो आप भारत संघ को बिना पक्ष बनाए कैसे किसी संपत्ति का विलय कर सकते हैं? ऐसे में तो पूरा जयपुर आपका हो जाएगा। अगर ऐसा होता है तो राजस्थान का हर शासक सभी सरकारी संपत्तियों पर अपना दावा करेगा। ये रियासतें कहेंगी कि सारी संपत्तियां उनकी ही हैं। कोर्ट ने कहा कि अगर आप कहते हैं कि भारत संघ इस कॉन्ट्रेक्ट का पक्षकार नहीं था तो संविधान का अनुच्छेद 363 भी लागू नहीं होगा।राजघराने के पक्षकार साल्वे ने कहा कि हम यथास्थिति चाहते हैं। राज्य के वकील ने जवाब देने के लिए 6 सप्ताह की मोहलत मांगी है और दलील दी कि कोई अंतरिम आदेश पारित नहीं किया जाए। कोर्ट ने नोटिस जारी किया जिसे राज्य के वकील ने स्वीकार कर लिया है।
आपको बता दूं कि साल 1949 में महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय और भारत सरकार के बीच हुए समझौते के तहत टाउन हॉल समेत कुछ संपत्तियां सरकारी उपयोग के लिए दी गई थीं। इसके बाद जब साल 2022 में गहलोत सरकार के ने जब संपत्ति पर म्यूजियम बनाने का फैसला किया तो शाही परिवार ने आपत्ति जताई। 2014 से 2022 तक कई नोटिस और शिकायतों के बावजूद कोई समाधान नहीं निकला।इसके बाद शाही परिवार ने सिविल कोर्ट में मुकदमा दायर कर संपत्ति पर कब्जा, रोक और मुआवजे की मांग की। राज्य सरकार ने अनुच्छेद 363 का हवाला देकर मुकदमा खारिज करने की मांग की, जिसे ट्रायल कोर्ट ने ठुकरा दिया। लेकिन हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलट दिया था और राज्य सरकार के हक में फैसला सुनाया था। हाईकोर्ट के फैसले को राजघरानों के सदस्यों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है.
तथ्य ये है कि 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, 562 से अधिक रियासतों का भारत संघ में विलय हुआ। सरदार वल्लभभाई पटेल और वी.पी. मेनन की अगुआई में, इन रियासतों ने विलय पत्रों पर हस्ताक्षर किए, जिसके तहत उन्होंने रक्षा, विदेशी मामले और संचार जैसे विषय भारत सरकार को सौंप दिए।प्रिवी पर्स और विशेषाधिकार: 1971 में, भारत सरकार ने 26वें संविधान संशोधन के माध्यम से राजघरानों के प्रिवी पर्स और अन्य विशेषाधिकार को समाप्त कर दिया। इससे कई राजघरानों ने कानूनी चुनौतियां पेश कीं।
राजघरानों कुछ उल्लेखनीय विवादों में ग्वालियर,जम्मू और कश्मीर, हैदराबाद, और अन्य रियासतों से संबंधित संपत्ति, भूमि सुधार, और मुआवजे के मुद्दे शामिल हैं।उदाहरण:जम्मू और कश्मीर: महाराजा हरि सिंह के वंशजों और सरकार के बीच संपत्ति और अधिकारों को लेकर विवाद। चल रहे हैं.मैसूर के वाडियार परिवार और सरकार के बीच महलों और अन्य संपत्तियों के स्वामित्व को लेकर लंबे समय से मुकदमे चल रहे हैं।हैदराबाद निज़ाम के वंशजों और भारत सरकार के बीच आभूषणों, संपत्ति, और ट्रस्ट फंड्स को लेकर विवाद, जिनमें से कुछ मामले अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पहुंचे।ग्वालियर के सिंधिया राजघराने ने तो राज्य सरकार पर दबाब बनाकर अपनी बहुत सी सरकारी हो चुकी संपत्ति को न सिर्फ दोबारा हासिल करा लिया बल्कि बहुत सी संपत्ति से सरकारी दफ्तर तक हटवा दिए.
सिंधिया राजघराने और सरकार के बीच मुकदमों का इतिहास मुख्य रूप से भारत की आजादी के बाद की अवधि से जुड़ा है, खासकर जब 1947में विलय के बाद, रियासतों के शासकों के विशेषाधिकार (जैसे प्रिवी पर्स, शाही उपाधियाँ, और संपत्ति का स्वामित्व) एक प्रमुख मुद्दा बन गया।
भारत सरकार और सिंधिया राजघराने के बीच जय विलास पैलेस, भूमि, और अन्य संपत्तियों के स्वामित्व को लेकर विवाद उत्पन्न हुए.1971 में, भारत सरकार ने संविधान में 26वां संशोधन किया, जिसने राजाओं के विशेषाधिकार और प्रिवी पर्स (निजी भत्ता) को समाप्त कर दिया। यह कदम जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और अन्य नेताओं की नीति का हिस्सा था, जिसका उद्देश्य राजशाही को पूरी तरह खत्म करना और लोकतांत्रिक समानता स्थापित करना था।ग्वालियर के तत्कालीन महाराजाधिराज माधवराव जिवाजीराव सिंधिया ने इस संशोधन को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी। सिंधिया राजघराना पहला ऐसा परिवार था जिसने इस कानून के खिलाफ मुकदमा दायर किया, जिसमें तर्क दिया गया कि प्रिवी पर्स और संपत्ति उनके निजी अधिकार हैं और सरकार का यह कदम असंवैधानिक है।न्यायालय का फैसला: सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया, जिसमें कहा गया कि विशेषाधिकारों का उन्मूलन संविधान के समानता के सिद्धांत के अनुरूप है। इसने सिंधिया राजघराने और अन्य पूर्व शाही परिवारों के लिए एक बड़ा झटका साबित हुआ।
सिंधिया परिवार और सरकार के बीच ग्वालियर के जय विलास पैलेस, भूमि, और अन्य संपत्तियों के स्वामित्व को लेकर लंबे समय तक विवाद चला। कुछ संपत्तियों को निजी घोषित किया गया, जबकि अन्य को सार्वजनिक उपयोग (जैसे संग्रहालय) के लिए सरकार के अधीन किया गया।विरासत और कर मुद्दे: संपत्ति के मूल्यांकन, विरासत कर, और प्रबंधन को लेकर भी मुकदमे हुए। उदाहरण के लिए, ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके परिवार ने संपत्ति के विभाजन और कराधान से संबंधित मामलों में कानूनी कदम उठाए. आपको याद होगा कि सिंधिया राजघराने की विजयाराजे सिंधिया, माधवराव सिंधिया, और ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे परिवार के सदस्यों ने राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाई, पहले कांग्रेस और बाद में कुछ सदस्यों ने भाजपा का साथ दिया। इस राजनीतिक जुड़ाव ने भी संपत्ति और विशेषाधिकारों से जुड़े मुकदमों को प्रभावित किया, क्योंकि सरकार के साथ उनके रिश्ते समय-समय पर तनावपूर्ण रहे।
आज जय विलास पैलेस का एक हिस्सा संग्रहालय के रूप में खुला है, जबकि दूसरा हिस्सा सिंधिया परिवार के निजी निवास के रूप में उपयोग होता है। संपत्ति से जुड़े कुछ मामले अभी भी समय-समय पर अदालतों में उठते हैं।आने वाले दिनों में आप जयपुर और ग्वालियर के अलावा देश के तमाम राजघरानों को भारत सरकार से ही नहीं बल्कि डबल इंजन की तमाम सरकारों से टकराते देखेंगे.