एडीएम संजय कुमार की दयालुता बन गई अफसरों के लिए मिसाल

उरई में अपर जिलाधिकारी प्रशासन संजय कुमार की दयालुता अफसरों के लिए मिसाल बन गई है। कलेक्ट्रेट परिसर में कचरा बीनते एक गरीब बच्चे को देखकर उन्होंने तुरंत कपड़े दिलवाए और पढ़ाई के लिए उसके माता-पिता से संपर्क करने का निर्देश दिया। इसी तरह, लखनऊ से कई बार मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाने आए एक फरियादी की मदद के लिए उन्होंने अपनी व्यस्तता छोड़कर नगर पालिका को फोन किया और प्रमाण पत्र तुरंत दिलवाया। संजय कुमार ने अपने इन कार्यों को सामान्य मानते हुए प्रचार से दूरी बनाई, लेकिन उनकी सहृदयता ने लोगों का दिल जीत लिया। उरई में अपर जिलाधिकारी प्रशासन संजय कुमार की दयालुता अफसरों के लिए मिसाल बन गई है। कलेक्ट्रेट परिसर में कचरा बीनते एक गरीब बच्चे को देखकर उन्होंने तुरंत कपड़े दिलवाए और पढ़ाई के लिए उसके माता-पिता से संपर्क करने का निर्देश दिया। इसी तरह, लखनऊ से कई बार मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाने आए एक फरियादी की मदद के लिए उन्होंने अपनी व्यस्तता छोड़कर नगर पालिका को फोन किया और प्रमाण पत्र तुरंत दिलवाया। संजय कुमार ने अपने इन कार्यों को सामान्य मानते हुए प्रचार से दूरी बनाई, लेकिन उनकी सहृदयता ने लोगों का दिल जीत लिया।

एडीएम संजय कुमार की दयालुता बन गई अफसरों के लिए मिसाल
एडीएम संजय कुमार की दयालुता बन गई अफसरों के लिए मिसाल

सब हेडिंग:

गरीब बच्चे की मदद और फरियादी को तत्काल न्याय देकर एडीएम

संजय कुमार ने दिखाई मानवीयता अफसरी मद की चर्चाओं के बीच कभी कोई संवेदनशील अफसर दिख जाता है तो लोग भावुक हुए बिना नही रहते। अफसरी प्रजाति की ऐसी ही एक विरल नस्ल में जनपद में पदस्थ अपर जिलाधिकारी प्रशासन संजय कुमार को गिना जाना चाहिए।

उनकी सहृदयता लोगों का दिल जीत लेने वाली है। हांलाकि प्रचार संकोची संजय कुमार इस बारे में चर्चा को आगे बढ़ाने में कोई दिलचस्पी नही दिखाते बल्कि उनका रुख जिज्ञासु मीडिया को निराश करने वाला होता है। लेकिन मीडिया मानवता को समृद्ध करने वाले प्रसंगों की अनदेखी भी नही कर सकती। समाज में रचनात्मक प्रेरणा के संचार के लिए ऐसे प्रसंगों को चर्चा में लाना उसके लिए बाध्यकारी दायित्व जो है।

गत दिनों अपर जिलाधिकारी संजय कुमार जब कलेक्ट्रेट स्थित अपने कार्यालय से सरकारी कार में बैठकर जा रहे थे तभी सामने उनकी निगाह बीने हुए कचरे की बोरी रखकर सुस्ता रहे बालक पर पड़ी। उन्होंने अपनी गाड़ी रुकवा दी और वापस कार्यालय में आकर स्टाफ से उस बच्चे को अपने सामने बुलवाया। उन्होंने बच्चे से सबसे पहले उसके मां-बाप के बारे में पूंछा। उन्हें लगा था कि बच्चा बिना मां-बाप का होगा जिसकी वजह से पेट भरने के लिए वह कचरा भरकर कबाड़ी को बेचने जाता होगा। लेकिन उसके माता-पिता हैं। उसने बताया कि उसके पिता सलीम की रामकुंड के पास झोपड़ी है। गरीबी के कारण पिता को उसे इस धंधे में लगाना पड़ा। बच्चे के कपड़े कटे-फटे थे। द्रवित संजय कुमार ने सबसे पहले अपने स्टाफ को रुपये देकर बच्चें के लिए नये कपड़ो की व्यवस्था करने को कहा। इसके बाद उसकी पढ़ाई-लिखाई के बारे में पूंछा। उन्होंने अपने स्टाफ से कहा कि अगर बच्चा पढ़ना चाहता है तो उसके मां-बाप से संपर्क कर किसी अच्छे स्कूल में उसका एडमीशन कराएं।

दूसरों का दर्द न लेने की सगर्व दुहाई देने वाले साहब बहादुरों की जमात में होते हुए भी संजय कुमार ने ऐसा करके दिखा दिया कि कुछ लोग ऐसे हैं जो जानते हैं कि ऊपर वाले ने अफसर बनने का मौका उन्हें इसलिए दिया है तांकि वे अपने पद और प्रभाव का उपयोग अभाव ग्रस्त व्यक्तियों के जीवन को संवारने में करें। पत्रकारों सहित कलेक्ट्रेट आने वाले कई फरियादियों ने भी संजय कुमार का यह किरदार देखा तो उनकी दयालुता से अभिभूत हो गये।

इसी दौरान एक और प्रसंग आया जब अपनी परिजन स्व. सीता सिंह पत्नी ओमप्रकाश सिंह का डैथ सर्टिफिकेट बनवाने के लिए लखनऊ से उरई तक की कई परिक्रमा लगा चुके परिजन गत दिवस भी नगर पालिका के नकारात्मक रवैये के कारण एक बार फिर बैरंग वापस होने वाले थे। उन्हें पता नही कैसे यह बात सूझी कि एडीएम के सामने पेश होकर फरियाद कर लें तो शायद उनकी मदद हो जाये। वे जिस समय संजय कुमार के कार्यालय में पहुंचे स्वाधीनता दिवस के कार्यक्रमों के कारण वे अत्यन्त व्यस्त थे। फिर भी हमेशा की तरह उन्होंने आगन्तुक की बात सुन लेने का धैर्य दिखाया। जब उनकी व्यथा-कथा सुनी तो उन्हें लगा कि एक आदमी बार-बार इतनी दूर से आ रहा है तो अपनी सारी व्यस्तता छोड़कर उन्होंने उसकी मदद की तत्परता दिखाई। नगर पालिका के ईओ को फोन किया। लगे हाथों उसे मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाकर दिलवा दिया। एडीएम की इस सहृदयता ने आगन्तुक को इतना भावुक कर दिया कि वह उनकों धन्यवाद देने के लिए वापस संजय कुमार के सामने आया तो उसके आंसू निकल पड़े।

जब अपर जिलाधिकारी से उनकी औरों से हटकर इस कार्यशैली के बारे में कुछ कहलवाने का प्रयास किया गया तो विनम्रता पूर्वक उन्होंने कहा कि उन्होंने कुछ ऐसा विशेष नही किया है जिसके बारे में बताने की जरूरत महसूस करें। एडीएम की इस कारुणिक सेवा भावना के साक्षी समाजसेवी महेश पाण्डेय जब विभोर कृतज्ञता के भाव से उनका सम्मान करने पहुंचे तो एडीएम संकुचित नजर आये। पत्रकारों ने भी उनसे कई बार आग्रह किया तब बमुश्किल उन्होंने महेश पाण्डेय का सम्मान स्वीकार किया। इसमें महेश पाण्डेय ने उन्हें शॉल पहनाई और श्रीफल भेंट किया।