सेना के अपमान पर संत समाज और भाजपा के ‘जामवंत’ ने की एक स्वर में निंदा, डॉ. मुरली मनोहर जोशी और स्वामी वैराग्यानंद गिरी महाराज के बीच राष्ट्रीय चेतना पर गहन विमर्श

भोपाल। देश में सेना के सम्मान को लेकर छिड़ी बहस अब केवल सियासी गलियारों तक सीमित नहीं रही। संत समाज भी अब खुलकर राष्ट्र रक्षा और सैनिक गरिमा के पक्ष में खड़ा हो गया है। मध्यप्रदेश के एक मंत्री द्वारा सेना की अधिकारी कर्नल शोफिया कुरैशी के विरुद्ध दिए गए आपत्तिजनक बयान के बाद देशभर में रोष है। इस घटनाक्रम ने भाजपा के वरिष्ठतम नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. मुरली मनोहर जोशी को भी मर्माहत कर दिया है। पंचायती श्रीनिरंजनी अखाड़ा के महामंडलेश्वर स्वामी वैराग्यानंद गिरी महाराज ने नई दिल्ली स्थित डॉ. जोशी के आवास पर मुलाकात कर इस विषय पर गहन चर्चा की। दोनों राष्ट्रनिष्ठ व्यक्तित्वों के बीच हुई इस विशेष बैठक में भारतीय सेना की गरिमा, भाजपा की मूल विचारधारा और देश की वर्तमान राजनीतिक संस्कृति पर गंभीर विमर्श हुआ।
डॉ. जोशी ने अपने स्पष्ट शब्दों में पार्टी नेतृत्व को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि, भाजपा की स्थापना कार्यकर्ताओं के बल पर, सेवा और सिद्धांतों की नींव पर हुई थी, न कि सत्ता के उन्माद में राष्ट्र की सेना का अपमान सहने के लिए। उन्होंने स्मरण कराया कि भाजपा की नींव डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय जैसे विचारधारात्मक योद्धाओं ने रखी थी, जिनके लिए राष्ट्र सर्वोपरि था। उन्होंने यह भी कहा कि "वाजपेयी, आडवाणी और सुषमा स्वराज जैसे नेताओं की पार्टी में, सत्ता की भूख और मर्यादा का हनन अस्वीकार्य है। भाजपा का मूल चरित्र राष्ट्रभक्ति, सेवा और संयम रहा है, उसे खोना आत्मघाती होगा।
इस अवसर पर स्वामी वैराग्यानंद गिरी महाराज ने सेना के अपमान को केवल राजनीतिक टिप्पणी न मानकर "राष्ट्र की आत्मा पर चोट" करार दिया।उन्होंने कहा कि संत समाज जब मौन तोड़ता है, तो वह केवल धर्म के लिए नहीं, राष्ट्रधर्म के लिए भी होता है। उन्होंने चेताया कि अगर सत्ता में बैठे लोग अपनी भाषा और सोच में संयम नहीं लाएंगे, तो जनता और समाज उन्हें आईना दिखाने से नहीं चूकेगा। उन्होंने कहा कि सनातन धर्म की गरिमा रखते हुए प्रत्येक राजनेता को संयमित भाषा बोलना चाहिए क्योंकि हमारे यहां सनातन धर्म का महत्व कायम रखने के लिए राजा जनक और राजा दशरथ जैसे लोग भी संयमित और मर्यादित भाषा बोलते थे।
बैठक में कई मुद्दों पर गहन विचार विमर्श:
इस महत्वपूर्ण बैठक में देश की बिगड़ती राजनीतिक मर्यादा, संवाद की गिरती भाषा और राष्ट्रहित से भटकते राजनैतिक आचरण पर भी चिंता जताई गई। दोनों ने एक मत से कहा कि देश के युवाओं, सैनिकों और देशभक्तों को निराश नहीं होने दिया जा सकता। सूत्रों के अनुसार, इस भेंट में निकट भविष्य में राष्ट्रहित में एक व्यापक नैतिक जागरण अभियान चलाने की रूपरेखा पर भी विचार हुआ है, जिसमें संत समाज, पूर्व नौसेनिक अधिकारी, बुद्धिजीवी वर्ग और राष्ट्रनिष्ठ संगठनों को जोड़ा जाएगा।
इस मुलाकात को केवल एक शिष्टाचार भेंट नहीं, बल्कि एक वैचारिक हस्तक्षेप और चेतावनी के रूप में देखा जा रहा है । यह संदेश देने के लिए कि देश की आत्मा को आहत करने वाली राजनीति अब अधिक सहन नहीं की जाएगी।