आसो तेरस शुकरवारा पर गूंजी दादागुरुदेव इकत्तीसा की गूंज: हजारों भक्तों ने इस पाठ को अपने जीवन का हिस्सा बनाया
इकत्तीसा पाठ का प्रभाव: भक्त की हर मनोकामना पूर्ण होती है। जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है। गुरु का स्मरण, ध्यान और नामस्मरण से दुःख-कष्ट दूर होते हैं। नियमित पाठ से सभी बाधाएं मिटती हैं और आशीर्वाद मिलता है।
गुरुदेव की महिमा अपरंपार है, उनका आशीर्वाद भक्तों की मनोकामनाएँ पूरी करता है
सूरत सहित पूरे देश में आज आसो तेरस शुकरवारा के शुभ अवसर पर गुरु भक्तों ने बड़े ही श्रद्धा भाव से दादागुरुदेव इकत्तीसा का सामूहिक पाठ किया। इस पावन अवसर पर कुशल दर्शन दादावाड़ी, पर्वत पटिया, सूरत में 108 बार अखंड पाठ का आयोजन किया गया। भक्ति गीतों और आध्यात्मिक ऊर्जा से पूरा वातावरण भक्तिमय हो गया।
देशभर में इकत्तीसा की गूंज
यह दिव्य आयोजन केवल सूरत तक ही सीमित नहीं रहा। देश भर के विभिन्न दादावाड़ियों, उपाश्रयों, मंदिरों और गुरु भक्तों के घरों-कार्यालयों में भी इस चमत्कारी पाठ का आयोजन हुआ। साधु-साध्वियों की प्रेरणा से गांव-गांव और शहर-शहर में अखंड इकत्तीसा पाठ की गूंज सुनाई दी, जिससे हर जगह एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार हुआ।
सूरत में चल रहे खरतरगच्छाचार्य संयम सारथी श्री जिन पीयूष सागर सूरीश्वर जी महाराज के सूरी मंत्र की पीठिका के दौरान, उनके शिष्य पूज्य समर्पित सागरजी महाराज और शाश्वत सागरजी महाराज आदि ठाना और प पू साध्वी श्री प्रमोदिता श्री जी म.सा,ने भी इस पाठ की महिमा का बखान किया, जिससे भक्तों की आस्था और भी मजबूत हुई। गुरु इकत्तीसा का इतिहास लगभग 74 साल पुराना है, जिसकी शुरुआत संवत 2008 में हुई थी। यह माना जाता है कि इसकी रचना श्री जिनदत्तसूरि दादागुरुदेव की कृपा से ही हुई थी। उनकी प्रेरणा गच्छाधिपति श्री पूज्य श्री जिनविजेंद्र सूरी जी म सा. के भक्त गोपालजी ने इस दिव्य पाठ की रचना की। तभी से यह पाठ भक्तों की हर मनोकामना को पूरा करने वाला एक शक्तिशाली साधन बन गया है।
हजारों भक्तों ने इस पाठ को अपने जीवन का हिस्सा बनाया है और इसके माध्यम से सुख-शांति, समृद्धि, बेहतर स्वास्थ्य और पारिवारिक खुशियां प्राप्त की हैं। अनेक लोगों ने संकटों से मुक्ति और चमत्कारी अनुभवों की कहानियों को साझा किया है।
श्री जिनदत्तसूरि समाधिस्थल जीर्णोद्धार समिति, अजमेर के चम्पालाल बोथरा, ने इस अवसर पर कहा, “गुरुदेव इकत्तीसा केवल एक पाठ नहीं है, बल्कि यह हमारी गहरी आस्था, भक्ति और समर्पण का प्रतीक है। यह वह अद्वितीय चमत्कार है, जिससे हर भक्त की सच्ची मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
सूरत की हरिपुरा दादावाड़ी में भी दादा गुरुदेव ने अंधों को आँखे देकर चमत्कार बताया था आज भी वहाँ एकतीशा के पाठ करते दादावाड़ी के छत्र अपने आप हिलने लग गए थे
यह श्रद्धा, भक्ति और मंगलमय जीवन का एक अनूठा वरदान है।”
संकलन ;- चम्पालाल बोथरा सूरत
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प्रखर न्यूज़ व्यूज एक्सप्रेस