बघेल की दिल्ली दौड़: कांग्रेस में दरार और जनता के धैर्य की परीक्षा
छत्तीसगढ़ में ₹3,200 करोड़ के शराब घोटाले के बाद कांग्रेस के भीतर घमासान मचा है। ईडी द्वारा चैतन्य बघेल की गिरफ्तारी से भूपेश बघेल की सियासी पकड़ कमजोर होती दिख रही है। पार्टी के भीतर आलोचनाओं के बीच बघेल दिल्ली में समर्थन जुटाने की कोशिश कर रहे हैं। कोयला परियोजना को लेकर उनकी दोहरी भूमिका और 22 जुलाई की आर्थिक नाकेबंदी ने कांग्रेस की छवि पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं।

शराब घोटाले में परिवार के घेरे में आने के बाद भूपेश बघेल पर पार्टी के भीतर से उठे सवाल, कोयला परियोजना पर पलटी और 22 जुलाई की नाकेबंदी ने और गहराया संकट।
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकार (2018–2023) के कार्यकाल में हुए ₹3,200 करोड़ के शराब घोटाले ने राज्य की राजनीति को झकझोर कर रख दिया है। प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा चैतन्य बघेल की गिरफ्तारी के बाद, भूपेश बघेल की राजनीतिक जमीन खिसकती नजर आ रही है।
कांग्रेस पार्टी के भीतर समर्थन की कमी के चलते बघेल को अब दिल्ली का रुख करना पड़ा है। रायपुर में शनिवार को हुई कांग्रेस की बैठक में उन्हें तीखी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने स्पष्ट किया कि संगठन का ध्यान जनहित के मुद्दों पर होना चाहिए, न कि एक भ्रष्ट परिवार के बचाव में ।
बघेल जिस कोयला परियोजना का आज विरोध कर रहे हैं, उसी को उन्होंने मुख्यमंत्री रहते हुए आगे बढ़ाया था। महाराष्ट्र की सरकारी कंपनी महाजेनको को आवंटित इस परियोजना में अडानी केवल एक ठेकेदार है, जिसे अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धी निविदा के माध्यम से चुना गया था ।
यह तथ्य कांग्रेस के भीतर भी असहजता पैदा कर रहा है, क्योंकि बघेल का विरोध अब अवसरवादी प्रतीत हो रहा है।
इस बीच, कांग्रेस द्वारा 22 जुलाई को घोषित आर्थिक नाकेबंदी राज्य के व्यापार, परिवहन, आपात सेवाओं और छात्रों के हितों के विरुद्ध है। यह आंदोलन न केवल जनजीवन को बाधित करेगा, बल्कि कांग्रेस की विश्वसनीयता को भी नुकसान पहुंचाएगा।
अब सवाल यह है क्या भूपेश बघेल दिल्ली जाकर कांग्रेस का समर्थन हासिल कर पाएंगे? क्या पार्टी नेतृत्व इस मुद्दे पर चुप्पी साधे रहेगा या बघेल परिवार के बचाव में आगे आएगा?