बाड़मेर जैन श्रीसंघ सर्वमंगलमय वर्षावास में आचार्य जिनपियूषसागर सूरीश्वरजी के सान्निध्य में भव्य सामूहिक संवत्सरी प्रतिक्रमण संपन्न
उपवास और तपस्या में लीन सैकड़ों श्रावकों को पच्चखान दिलाया गया। दादावाड़ी से बैंड-बाजों और रथयात्रा के साथ चतुर्विध संघ निकला, जो मॉडल टाउन शांतिनाथ मंदिर और दादावाड़ी चेतय परिपाटी तक पहुँचा। इसके बाद सामूहिक प्रतिक्रमण सम्पन्न हुआ, जिसमें हजारों श्रद्धालुओं ने भाग लेकर वर्षभर में हुई भूलों के लिए क्षमा याचना की।
 
                                हजारों श्रावक-श्राविकाओं ने किया आत्मशुद्धि का सामूहिक प्रतिक्रमण, “मिच्छामी दुक्कडम्” के जयघोष से गूंजा परिसर
Surat,बाड़मेर जैन श्रीसंघ सर्वमंगलमय वर्षावास में खरतरगच्छाचार्य संयम सारथी, शासन प्रभावक आचार्य श्री जिनपियूषसागर सूरीश्वरजी महाराज साहब के पावन सान्निध्य में भव्य सामूहिक सम्वत्सरी प्रतिक्रमण का आयोजन हुआ।
इस अवसर पर हजारों श्रावक-श्राविकाओं ने आत्मशुद्धि हेतु प्रतिक्रमण किया और पूरे वातावरण में “मिच्छामी दुक्कडम्” तथा “खेमेमि सव्वे जीवा” के जयघोष गूंजते रहे। इससे पूरे परिसर में आध्यात्मिक ऊर्जा और शांति का वातावरण छा गया।
आचार्य श्री जिनपियूषसागर जी ने अपने प्रवचन में कहा कि –
“क्षमा ही धर्म का सर्वोच्च आभूषण है। ‘मिच्छामी दुक्कडम्’ केवल शब्द नहीं, बल्कि आत्मा को अहंकार, राग-द्वेष और कलुषित भावनाओं से मुक्त करने का सशक्त साधन है। जब हम अपनी भूलों को स्वीकार कर क्षमा मांगते हैं और दूसरों को क्षमा करते हैं, तभी जीवन में शांति, प्रेम और मैत्री का विस्तार होता है।”
सुबह से ही उपवास और तपस्या में लीन सैकड़ों श्रावकों को पच्चखान दिलाया गया। दादावाड़ी से बैंड-बाजों और रथयात्रा के साथ चतुर्विध संघ निकला, जो मॉडल टाउन शांतिनाथ मंदिर और दादावाड़ी चेतय परिपाटी तक पहुँचा। इसके बाद सामूहिक प्रतिक्रमण सम्पन्न हुआ, जिसमें हजारों श्रद्धालुओं ने भाग लेकर वर्षभर में हुई भूलों के लिए क्षमा याचना की।
आयोजन के समापन पर राजा कुमारपाल की 108 दीपकों की आरती की गई और श्रद्धालुओं ने एक-दूसरे को गले लगाकर “आओस में खामत-खामना” कहा।
इस अवसर पर वरिष्ठ समाजसेवी चम्पालाल बोथरा ने कहा –
“आज का दृश्य आत्मा को पवित्र करने वाला और समाज की एकता को दर्शाने वाला था। हजारों श्रावक-श्राविकाओं ने एक स्वर से क्षमा मांगकर यह सिद्ध कर दिया कि क्षमा और मैत्री ही जैन धर्म का सार है। यह आयोजन हमें गर्व कराता है कि साल भर की भूलों को स्वीकार कर जब हम ‘मिच्छामी दुक्कडम्’ कहते हैं, तभी धर्म का वास्तविक आनंद मिलता है।”
संकलन
चम्पालाल बोथरा सूरत
 प्रखर न्यूज़ व्यूज एक्सप्रेस
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