गिरगिट और भैंस के बाद अब 'हरे पत्तों' से कांग्रेस का हल्ला बोल, MP विधानसभा में हंगामा चरम पर

मध्य प्रदेश विधानसभा के मानसून सत्र के तीसरे दिन, 30 जुलाई 2025 को, विपक्षी दल कांग्रेस ने आदिवासी अधिकारों को लेकर जोरदार प्रदर्शन किया। नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार के नेतृत्व में कांग्रेस विधायकों ने विधानसभा परिसर में प्रतीकात्मक विरोध दर्ज किया।

गिरगिट और भैंस के बाद अब 'हरे पत्तों' से कांग्रेस का हल्ला बोल, MP विधानसभा में हंगामा चरम पर

मध्य प्रदेश विधानसभा के मानसून सत्र का आज तीसरा दिन है। सदन में चार विधेयक पास हो गए।संस्कृत भाषा के संवर्धन पर चर्चा हुई। कांग्रेस ने सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन भी किया।

मध्य प्रदेश विधानसभा के मानसून सत्र के तीसरे दिन भी कांग्रेस विधायकों ने फिर अनोखा प्रदर्शन किया. पहले दिन गिरगिट खिलोने लेकर पहुंचे थे, दूसरे दिन कांग्रेस विधायक भैंस के आगे बीन बजाते हुए पहुंचे थे, जबकि तीसरे दिन कांग्रेस के विधायक हरे पत्तों की माला पहनकर विधानसभा पहुंचे और पेसा एक्ट के मामले में सरकार पर निशाना साधा. सरकार की तरफ से इस मामले पंचायत मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल ने कांग्रेस को जवाब देते हुए पलटवार किया. कांग्रेस विधायकों ने पेसा कानून को सही से लागू नहीं करने के चलते यह प्रदर्शन किया था. फिलहाल मानसून सत्र में कांग्रेस विधायकों का अलग-अलग तरीकों से किया जा रहा प्रदर्शन चर्चा में बना हुआ है. 

प्रतीकात्मक प्रदर्शन: पत्तों की मालाएं और नारेबाजी

मानसून सत्र के तीसरे दिन, बुधवार सुबह 10 बजे, कांग्रेस विधायकों ने विधानसभा परिसर में एक अनोखा प्रदर्शन शुरू किया। नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार, जो स्वयं आदिवासी समुदाय से हैं, के नेतृत्व में विधायकों ने पत्तों से बनी मालाएं पहनीं और बैनरों के साथ नारे लगाए, जैसे "जल-जंगल-जमीन बचाओ, आदिवासी अधिकार सुनिश्चित करो" और "भाजपा सरकार मुर्दाबाद, आदिवासियों पर अत्याचार बंद करो।" यह प्रतीकात्मक प्रदर्शन आदिवासियों के प्रकृति से गहरे जुड़ाव और उनके अधिकारों की रक्षा की मांग को दर्शाने के लिए था।

विधानसभा में हंगामा और वॉकआउट

प्रदर्शन के बाद, जब विधानसभा की कार्यवाही शुरू हुई, तो कांग्रेस विधायकों ने प्रश्नकाल में आदिवासी मुद्दों को उठाने की कोशिश की। उमंग सिंघार ने मंडला में हुए कथित फर्जी नक्सली एनकाउंटर की जांच की मांग की, जिसमें एक आदिवासी युवक की मौत हुई थी। उन्होंने कहा, "मध्य प्रदेश अव्यवस्था की राजधानी बन गया है। आदिवासियों पर अत्याचार बढ़ रहे हैं, और सरकार चुप है।"

हालांकि, सत्तारूढ़ भाजपा विधायकों ने इन आरोपों को राजनीति से प्रेरित बताया, जिसके बाद सदन में हंगामा शुरू हो गया। कांग्रेस विधायकों ने सरकार की चुप्पी के विरोध में वॉकआउट किया और विधानसभा परिसर में फिर से नारेबाजी शुरू कर दी। पूर्व कृषि मंत्री सचिन यादव ने कहा, "सरकार को न किसानों की चिंता है, न आदिवासियों की। हम हर जिले में 1000 किसान न्याय योद्धा बनाएंगे और आदिवासियों की लड़ाई लड़ेंगे।"

सरकार का जवाब: आरोपों का खंडन

संसदीय कार्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कांग्रेस के प्रदर्शन को "नौटंकी" करार देते हुए कहा, "कांग्रेस आदिवासियों के मुद्दों पर सिर्फ राजनीति कर रही है। मध्य प्रदेश में लाडली बहना योजना और अन्य कल्याणकारी योजनाओं के जरिए आदिवासियों का सशक्तिकरण हो रहा है।" उन्होंने दावा किया कि वन अधिकार पट्टों की समीक्षा केवल गलत आवंटनों को ठीक करने के लिए की जा रही है, और पेसा कानून को लागू करने के लिए सरकार प्रतिबद्ध है।

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने भी एक बयान में कहा, "हमारी सरकार आदिवासियों के कल्याण के लिए काम कर रही है। केंद्र सरकार की योजनाओं जैसे PM-JANMAN और PM Awas Yojana के तहत आदिवासी समुदाय को लाभ पहुंचाया जा रहा है। कांग्रेस का प्रदर्शन केवल सस्ती लोकप्रियता के लिए है।"

आदिवासी अधिकारों का मुद्दा: पृष्ठभूमि

मध्य प्रदेश में 21% आबादी आदिवासी समुदाय की है, और यह राज्य देश में सबसे बड़ी आदिवासी जनसंख्या वाला राज्य है। मंडला, डिंडोरी, छिंदवाड़ा, और बालाघाट जैसे जिलों में आदिवासी बहुल क्षेत्र हैं। वन अधिकार अधिनियम 2006 और पेसा कानून 1996 आदिवासियों को उनकी जमीन, जंगल, और स्वशासन के अधिकार देने के लिए बनाए गए थे, लेकिन इनके कार्यान्वयन में कई खामियां सामने आई हैं।

हाल के वर्षों में, मध्य प्रदेश में विकास परियोजनाओं जैसे खनन, बांध निर्माण, और औद्योगिक गलियारों के लिए आदिवासियों की जमीन अधिग्रहण के मामले बढ़े हैं। 2024 में, मंडला में एक कथित नक्सली एनकाउंटर में एक आदिवासी युवक की मौत ने इस मुद्दे को और गंभीर बना दिया। इसके अलावा, केंद्र सरकार की नई वन नीति और वन संरक्षण अधिनियम में संशोधन के प्रस्ताव ने भी आदिवासी संगठनों में असंतोष पैदा किया है।