संपत्ति की आसक्ति – आत्मा का बंधन या मुक्ति का साधन? श्री शास्वत सागर जी म. सा.
बच्चे आईफ़ोन की माँग पर लाखों खर्च कर देने वाले माता-पिता, दान या मंदिर के लिए सौ-दो सौ रुपये भी सोचकर देते हैं, यह आत्मावलोकन का विषय है

विलासिता पर खर्च: ज़रूरतमंदों की मदद करते समय मन संकोच करता है, जबकि विलासिता में बिना झिझक खर्च किया जाता है।
Surat : बाड़मेर जैन संघ एव सर्वमंगलमय वर्षावास समिति - 2025 कुशल दर्शन सोसाइटी, पर्वत पाटिया, सूरत में प. पू. खरतरगच्छाचार्य संयम सारथी ,साशन प्रभावक श्री जिन पीयूषसागर सूरीश्वर जी म सा के शिष्य प. पू. शास्वतसागर जी म.सा. संपत्ति की आसक्ति" विषय पर एक ओजस्वी एवं चिंतनशील प्रवचन दिया। उन्होंने अपने प्रवचन में कहा, “संपत्ति का उद्देश्य जीवन की रक्षा, धर्म की वृद्धि और जीवों की सेवा होना चाहिए; लेकिन जब यही संपत्ति मोह का कारण बन जाए, तो वही बंधन बन जाती है।” पूज्य श्री ने इस बात पर जोर दिया कि लोग करोड़ों कमाते हैं, पर धर्म के कार्यों में दान देते समय उनका मन कतराता है।
* विलासिता पर खर्च: ज़रूरतमंदों की मदद करते समय मन संकोच करता है, जबकि विलासिता में बिना झिझक खर्च किया जाता है।
* 'ममन सेठ' का उदाहरण: पूज्य म.सा. ने 'ममन सेठ' का उदाहरण देकर समझाया कि कैसे संपत्ति की अधिकता होते हुए भी संयम और सेवा की भावना न होने से वह नरकगामी हुआ।
* बच्चे आईफ़ोन की माँग पर लाखों खर्च कर देने वाले माता-पिता, दान या मंदिर के लिए सौ-दो सौ रुपये भी सोचकर देते हैं, यह आत्मावलोकन का विषय है।
पूज्य श्री ने सभी से निवेदन किया कि:
समय पर मंदिरों में, जीवदया कार्यों में और तपस्वियों की सेवा में द्रव्य अर्पित करें।
* विवाह, जन्मदिन या अन्य अवसरों पर दिखावा करने की बजाय पुण्य निर्माण करें।
* संपत्ति का उपयोग तभी सार्थक है जब वह धर्म, दया और आत्मकल्याण में लगे।
अपने प्रवचन के अंत में पूज्य श्री ने कहा, “संपत्ति हमारे जीवन का साधन है, न कि लक्ष्य। इसका सदुपयोग ही हमें पवित्रता, शांति और परमगति की ओर ले जाता है।
प. पू. समर्पितसागर जी म.सा.
ने आज के प्रेरणादायी प्रवचन में बताया की भगवान ऋषभदेव के सुपुत्र भगवान बाहुबली के जीवन प्रसंग के माध्यम से अहंकार, आत्मबोध और समर्पण के दिव्य संदेश को सरल और सारगर्भित ढंग से प्रस्तुत किया।पूज्य म.सा. ने बताया कि जब बाहुबली और उनके भाई भरत के बीच राज्य को लेकर विवाद हुआ, तब बाहुबली ने शक्ति से नहीं, विवेक से विजय को महत्व दिया। जब बाहुबली ने अपने हाथ ऊपर उठाए कि अब प्रहार करूँ और भाई का काम तमाम कर दु , उसी क्षण आत्ममंथन शुरू हुआ – “क्या मैं अपने भाई का वध कर अपना नाम इतिहास में काले अक्षरों में अंकित करा दु ये सोच आते ही उसी क्षण उन्होंने वैराग्य को अपनाया, अपने उठे हुए हाथ को सिर पर रखकर केशलोंच किया और संयम के पथ पर अग्रसर हो गए। युद्ध का मैदान अब साधना का क्षेत्र बन गया।
ब्रह्मी और सुंदरी जैसी बहनों ने उन्हें सत्पथ दिखाया – “हे भैया! गजराज से उतरकर स्वयं के भीतर उतरिए। केवलज्ञान मन के घोड़े से नहीं, समर्पण से मिलेगा।” यह उपदेश दर्शाता है कि अहंकार में डूबा व्यक्ति कभी आत्मबोध प्राप्त नहीं कर सकता। बाहुबली ने आत्मनिरीक्षण किया – “मैंने संयम तो लिया, पर भाई को वंदन नहीं किया। यही अहंकार मेरा बंधन बन गया।”
जब अहंकार त्यागकर समर्पण का भाव जागृत हुआ, तभी उन्हें केवलज्ञान की प्राप्ति हुई।
पूज्य म.सा. ने बताया कि बाहुबली के जीवन में Awareness (जागरूकता), Acceptance (स्वीकृति) और Analysis (विश्लेषण) की त्रिवेणी स्पष्ट दिखती है। उन्होंने न केवल साधना की, बल्कि अपने मन को बदलकर आत्मसमर्पण में स्वयं को समर्पित किया।
उन्होंने कहा – “जीवन में हमें केवल बड़े पापों का नहीं, छोटे-छोटे दोषों का भी विश्लेषण करना चाहिए। साधना से पहले समर्पण और आत्मदर्शन आवश्यक है।”
गुरु नहीं, “सद्गुरु” चाहिए –
सद्गुरु वही है जो हमारा निर्वाह नहीं, निर्वाण सुनिश्चित करे।
जो हमें संसार से नहीं, आत्मा से जोड़े।
जो आत्मा की देखभाल करे, धर्म की शेयरिंग करे – वही सच्चा सद्गुरु होता है।
पूज्य म.सा. ने कहा – “संसार में गुरु तो बहुत हैं, पर आज सद्गुरु दुर्लभ हैं – जो हमें आत्मा का साक्षात्कार करवा दें। यदि हमें सद्गुरु से कुछ पाना है, तो हृदय समर्पित करना होगा।
“बाहुबली का जीवन हमें सिखाता है कि केवल बाह्य त्याग नहीं, भीतरी परिवर्तन और समर्पण ही आत्मोन्नति का मार्ग है। अहंकार छोड़कर आत्मा की ओर चलना ही सच्चा पुरुषार्थ है।”
संघ के वरिष्ठ सदस्य श्री चम्पालाल बोथरा ने बताया की आज के आध्यात्मिक प्रवचन में बड़ी संख्या में श्रद्धालु आये और जीवन की आसक्ति और अहंकार के विषय पे आत्ममंथन में लीन हुए और जीवन में बदलाव का संकल्प लिया ।
संकलन:-चम्पालाल बोथरा, सूरत