अब मिलकर बजाइए जलमध्यडमरू
दुनिया का 20 फीसदी तेल इसी रास्ते से जाता है. इसमें ज्यादातर एशियाई देशों को जाने वाला तेल हैं. तेल ही नहीं यहां से गैस भी ट्रांस्पोर्ट की जाती है और यह रास्ता ऐशियाई देशों के मध्य पूर्व में निर्यात का रूट भी है. जिसमें भारत, चीन और पाकिस्तान अहम हैं. जाहिर है कि ईरान के इस फैसले के खिलाफ अमेरिका और सख्त कदम उठा सकता है.
 
                                राकेश अचल
ईरान के ऊपर अमेरिका हमले के बाद इस युद्ध के विकराल रूप लेनी की संभावनाए अपने चरम पर है. ईरान ने ऐलान किया है कि वह अमेरिका के इस हमले का जवाब देगा. हालांकि इजराइल ने अमेरिका के हमले के बाद इजराइल पर करीब 30 मिसाइलें दागी हैं. अब ईरान की संसद ने एक ऐसा फैसला किया है, जिसके बाद बिना मिसाइल दागे पूरी दुनिया ही जाएगी.
चौंकिए मत, ईरान पर अमरीकी हमले के बाद ईरान ने वही किया जिसकी आशंका थी. ईरान ने होर्मुज स्ट्रेट को बंद कर दिया. ये रास्ता एक तरह का जल मध्य डमरू है. ये डमरू अपनी रचना की वजह से महत्वपूर्ण है. आप कहेंगे कि आखिर ये क्या बला है, तो पहले इसे जान लीजिये.
जलमध्यडमरू, जिसे जलसंधि या जलडमरूमध्य भी कहा जाता है, एक संकीर्ण जलमार्ग है जो दो बड़े जल निकायों (जैसे समुद्र, महासागर या खाड़ी) को जोड़ता है। इसका भौगोलिक आकार अक्सर शंकर जी के प्रिय डमरू जैसा होता है,. डमरू मदारी भी बजाते थे. आजकल मदारी नाम की संस्था समाप्त हो चुकी है, लेकिन जल के मध्य डमरु आज भी महत्वपूर्ण है.. इसमें दो बड़े जल क्षेत्रों के बीच एक तंग हिस्सा होता है, इसलिए इसे जलडमरूमध्य कहा जाता है।यह डमरू कोई बनाता नहीं है बल्कि ये प्राकृतिक रूप से बनता है, जैसे टेक्टोनिक प्लेटों की गति या जल के कटाव से नौकाएँ और जहाज इस मार्ग से एक जलाशय से दूसरे जलाशय तक जा सकते हैं, जो व्यापार और परिवहन के लिए महत्वपूर्ण है।जलसंधियाँ व्यापारिक और सैन्य नौवहन पर नियंत्रण के लिए कूटनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होती हैं। उदाहरण के लिए, होर्मुज जलसंधि तेल व्यापार के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।इसका भू-राजनीतिक महत्व भी कम नहीं है.इन पर नियंत्रण को लेकर इतिहास में कई बार अंतरराष्ट्रीय विवाद हुए हैं, जैसे जिब्राल्टर जलसंधि पर स्पेन, ब्रिटेन और मोरक्को के बीच तनाव।
ईरान के ऊपर अमेरिका हमले के बाद इस युद्ध के विकराल रूप लेनी की संभावनाए अपने चरम पर है. ईरान ने ऐलान किया है कि वह अमेरिका के इस हमले का जवाब देगा. हालांकि इजराइल ने अमेरिका के हमले के बाद इजराइल पर करीब 30 मिसाइलें दागी हैं. अब ईरान की संसद ने एक ऐसा फैसला किया है, जिसके बाद बिना मिसाइल दागे पूरी दुनिया ही जाएगी.
अगर ईरान इस होर्मुज स्ट्रेट को बंद कर देगा, तो तेल की कीमते आसमान छू सकती हैं हालांकि बता दें कि ईरानी संसद में तो ये प्रस्ताव पारित हो चुका है, लेकिन इस मामले में अंतिम फैसला ईरानी सुप्रीम लीडर लेंगे.
आपको बता दें कि दुनिया का 20 फीसदी तेल इसी रास्ते से जाता है. इसमें ज्यादातर एशियाई देशों को जाने वाला तेल हैं. तेल ही नहीं यहां से गैस भी ट्रांस्पोर्ट की जाती है और यह रास्ता ऐशियाई देशों के मध्य पूर्व में निर्यात का रूट भी है. जिसमें भारत, चीन और पाकिस्तान अहम हैं. जाहिर है कि ईरान के इस फैसले के खिलाफ अमेरिका और सख्त कदम उठा सकता है.
एशिया के दूसरे देशों की तरह ही भारत अपनी जरूरत का ज्यादातर तेल मध्यपूर्व के देशों से लेता हैं. भारत का करीब 50 फीसदी तेल और गैस होर्मुज की खाड़ी से आता हैं. भारत अपनी एल एन जी का 40 फीसदी कतर और 10 फीसदी दूसरे खाड़ी देशों आयात करता हैं. वहीं भारत 21 फीसद इराक और बाकी दूसरे खाड़ी देशों से आयात करता है.
अगर होर्मुज को ईरान ने बंद किया तो भारत में तेल की कीमतें आसमान छू सकती हैं. साथ भारत की ओर से खाड़ी देशों में एक्सपोर्ट होने वाला सामान भी लंबा रास्ता लेकर निर्यात होगा, जो निर्यात की लागत को बढ़ाएगा.लेकिन भारत इस नये युद्ध में अभी तक अपना रुख तय नहीं कर पाया है. भारत की सरकारी पार्टी इसलिए खुश है कि एक इस्लामिक देश बर्बाद हो रहा है. भारत की सरकार और सरकारी पार्टी हमलावर इजराइल के प्रति सहानुभूति रखती है क्योंकि उसे लगता है कि इजराइलियों की नस्ल और हिंदुओं की नस्ल एक है. यानि श्रेष्ठ नस्ल. लेकिन सरकार और सरकारी पार्टी भूल जाती है कि कौवों के कोसने से ढोर नहीं मरते. युद्ध न वियतनाम को समाप्त कर सका, न अफगानिस्तान को. न सीरिया को न ईराक को. यूक्रैन भी अभी बाकी है, हाँ हर युद्ध में मानवता पिसती है. आज भी पिस रही है.
बहरहाल ईरान अमेरिका, इजराइल युद्ध आपकी जेब पर भी भारी पडने वाला है. भले ही हम रूस से तेल लेने लगे हैं. लेकिन अर्थव्यवस्था का तेल निकालने के बहुत से तरीके बाकी है. भारत का मौन, या रटी -रटाई गागरौनी भारत की छवि धुमिल कर रहे हैं.
 प्रखर न्यूज़ व्यूज एक्सप्रेस
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