उत्तर-पूर्व भारत में बुद्ध धम्म की विरासत: संस्कृति, साधना और समकालीन प्रासंगिकता" डॉ परविंद्र सिंह
"ध्यान, धर्म और धरोहर: उत्तर-पूर्व भारत में बौद्ध संस्कृति की पुनर्पुष्टि" “बुद्ध धम्म और उत्तर-पूर्व भारत की संस्कृति”

ब्यूरो सुनील त्रिपाठी
बुद्ध धम्म, अर्थात बुद्ध के उपदेश, करुणा, सावधानीपूर्वक चेतना (माइंडफुलनेस) और प्रज्ञा तथा नैतिक जीवन के माध्यम से आत्मज्ञान प्राप्त करने के मार्ग को महत्व देते हैं। भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों — अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नागालैंड, सिक्किम और त्रिपुरा — ने बौद्ध परंपराओं, मठीय संस्कृति और विरासत को संरक्षित और प्रचारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस क्षेत्र ने थेरवादा, महायान और वज्रयान जैसी विविध बौद्ध परंपराओं को संजोया है।
उत्तर-पूर्व भारत में 'बुद्ध धम्म और संस्कृति' की समकालीन प्रासंगिकता का विश्लेषण करने के उद्देश्य से अंतरराष्ट्रीय बौद्ध महासंघ (International Buddhist Confederation) एक दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन कर रहा है, जो 21-22 अप्रैल 2025 को अरुणाचल प्रदेश के नामसाई में आयोजित होगा।
पहले दिन मल्टीपर्पज़ कल्चरल हॉल में तीन पैनल चर्चाएँ होंगी जिनके विषय होंगे:
1. ऐतिहासिक प्रासंगिकता
2. क्षेत्र की कला और संस्कृति
3. पड़ोसी देशों में बौद्ध प्रवासी समुदायों का सांस्कृतिक प्रभाव।
दूसरे दिन का कार्यक्रम विश्व शांति के लिए विपश्यना साधना और प्रार्थना के रूप में प्रसिद्ध गोल्डन पगोडा परिसर में होगा।
भारत सरकार ने बौद्ध पर्यटन, विरासत संरक्षण और सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रमों के माध्यम से उत्तर-पूर्व क्षेत्र में बुद्ध धम्म की उपस्थिति को सशक्त करने के लिए कई पहलें की हैं। बुद्ध धम्म का इस क्षेत्र की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संरचना पर गहरा प्रभाव पड़ा है, जिसने इसकी परंपराओं, सामाजिक संरचनाओं और कलात्मक अभिव्यक्तियों को आकार दिया है।
अरुणाचल प्रदेश और उत्तर-पूर्व के अन्य क्षेत्रों में थेरवादा और महायान परंपराएं, विशेष रूप से वज्रयान बौद्ध धर्म, मोनपा, शेरदुकपेन आदि जनजातियों द्वारा अपनाई गई हैं। तवांग मठ (अरुणाचल प्रदेश के पश्चिमी भाग में) भारत के सबसे बड़े मठों में से एक है, जो बौद्ध ग्रंथों, कला और अनुष्ठानों को संजोने वाला आध्यात्मिक और सांस्कृतिक केंद्र है। विपश्यना साधना भी इस क्षेत्र में बौद्ध सांस्कृतिक विरासत को जीवंत बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जो चेतना, नैतिकता और आध्यात्मिक ज्ञान को बढ़ावा देती है।
प्राचीन काल से ही बुद्ध धम्म उत्तर-पूर्व भारत के सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक परिदृश्य को आकार देता रहा है। इसकी उपस्थिति का आरंभ सम्राट अशोक के शासनकाल से माना जाता है, और यह क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति के कारण दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ संवाद का सेतु बना। बुद्ध धम्म का प्रभाव मठीय संस्थाओं, कला, उत्सवों और सामाजिक-राजनीतिक संरचनाओं में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। विपश्यना साधना, आत्म-अनुशासन और आंतरिक शांति को प्रोत्साहित कर, सांस्कृतिक पहचान को मजबूत करती है और इस क्षेत्र की बौद्ध विरासत को जीवित बनाए रखती है।
यह क्षेत्र बौद्ध सांस्कृतिक गलियारे का एक महत्वपूर्ण केंद्र है जो भारत को दक्षिण-पूर्व एशिया से जोड़ता है। यह सम्मेलन उत्तर-पूर्व भारत में बुद्ध धम्म के ऐतिहासिक विकास, सांस्कृतिक प्रभाव, कलात्मक अभिव्यक्तियों और समकालीन महत्व की खोज करने का प्रयास है।
इस अवसर पर भिक्षु, भिक्षुणियाँ, विद्वान, नीति-निर्माता और साधक एकत्र होंगे ताकि इस क्षेत्र में बौद्ध विरासत को संरक्षित और प्रचारित करने के उपायों पर विमर्श किया जा सके।
उत्तर-पूर्व भारत कई आदिवासी समुदायों का निवास स्थल है जिन्होंने बुद्ध धम्म को अपनी पारंपरिक मान्यताओं के साथ समाहित कर लिया है। तिब्बत, भूटान और म्यांमार से समीपता के कारण यहाँ थेरवादा, महायान और वज्रयान बौद्ध परंपराएँ फली-फूली हैं।
अरुणाचल प्रदेश के मोनपा और शेरदुकपेन जनजातियाँ वज्रयान बौद्ध धर्म का पालन करती हैं, जहाँ तवांग मठ उनका सांस्कृतिक और आध्यात्मिक केंद्र है। खम्ती और सिंग्फो जनजातियाँ (अरुणाचल प्रदेश और असम के पूर्वी हिस्सों में) म्यांमार और थाईलैंड से प्रभावित थेरवादा बौद्ध धर्म का पालन करती हैं। असम की ताई फाके जनजाति भी थेरवादा बौद्ध परंपराओं को जीवित रखती है, जिसमें उनकी विशिष्ट लिपियाँ और धार्मिक ग्रंथ शामिल हैं।
चाकमा समुदाय (अरुणाचल प्रदेश, मिज़ोरम और त्रिपुरा में) थेरवादा बौद्ध धर्म का पालन करता है और प्रमुख बौद्ध उत्सव मनाता है। वहीं सिक्किम और उत्तर बंगाल के तामांग, लेपचा और भूटिया जनजातियाँ वज्रयान बौद्ध धर्म का पालन करती हैं और रुमटेक और पेमायांग्त्से जैसे पवित्र मठों का संरक्षण करती हैं। ये समुदाय मठों, कला, साहित्य और पर्वों के माध्यम से बौद्ध विरासत को जीवंत बनाए रखते हैं। सरकार द्वारा बौद्ध पर्यटन और विरासत संरक्षण से जुड़ी पहलों से इनकी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर को बल मिल रहा है।
बुद्ध धम्म ने उत्तर-पूर्व भारत के इतिहास और संस्कृति पर गहरा प्रभाव डाला है और यह इस क्षेत्र के सामाजिक-आर्थिक विकास में भी सहायक रहा है। आज भी बुद्ध धम्म इस क्षेत्र में जीवंत है और इसकी अमूल्य विरासत आने वाली पीढ़ियों के लिए सांस्कृतिक गौरव और आध्यात्मिक प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है।
यह सम्मेलन हमारे इस ज्ञान को और गहरा करने का प्रयास है कि बुद्ध धम्म ने इस क्षेत्र को किस प्रकार आकार दिया है और हम इसकी विरासत को किस तरह संरक्षित और प्रचारित कर सकते हैं। शैक्षणिक संवाद और नीति-निर्धारण की चर्चाओं के माध्यम से, हमारा लक्ष्य इस अमूल्य धरोहर को आने वाली पीढ़ियों के लिए सांस्कृतिक स्वाभिमान और आध्यात्मिक प्रेरणा का स्रोत बनाए रखना है।