पहलगाम धार्मिक आतंकी हमला नहीं मानवता पर हमला है!

पहलगाम धार्मिक आतंकी हमला नहीं मानवता पर हमला है!

इंदर सिंह केवट

प्रखर न्यूज़ व्यूज एक्सप्रेस भोपाल मध्य प्रदेश

22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के **पहलगाम** में **बैसरण मीडो** में हुए आतंकी हमले ने न केवल भारत के हृदय को झकझोरा, बल्कि यह भी सवाल उठाया कि क्या कश्मीर वास्तव में उस शांति और स्थिरता की ओर बढ़ रहा है, जिसका दावा केंद्र सरकार बार-बार करती रही है। इस हमले में **26 से 28 पर्यटकों** की जान गई और कई घायल हुए। **द रेसिस्टेंस फ्रंट (TRF)**, जो **लश्कर-ए-तैयबा** का छद्म संगठन है, ने इसकी जिम्मेदारी ली। आतंकियों ने धार्मिक पहचान के आधार पर हिंदू पर्यटकों को निशाना बनाया, लेकिन यह हमला केवल धार्मिक नहीं, बल्कि **मानवता पर एक जघन्य हमला** था। यह घटना केंद्र सरकार के **कश्मीर में आतंकवाद खत्म करने** के दावों को खोखला साबित करती है! क्षेत्र में सुरक्षा, शांति, और विकास की वास्तविक स्थिति पर गंभीर सवाल खड़े करती है।

- मानवता पर हमला: एक क्रूर सत्य

पहलगाम हमला, जो कश्मीर के सबसे खूबसूरत पर्यटक स्थलों में से एक पर हुआ, मानवता के खिलाफ एक सुनियोजित और अमानवीय कृत्य था। प्राप्त जानकारी के अनुसार आतंकियों ने **6-7 की संख्या** में पर्यटकों के एक समूह पर हमला किया, उनकी धार्मिक पहचान पूछी, और जो लोग इस्लामी आयतें नहीं पढ़ सके, उन्हें बेरहमी से गोली मार दी। मृतकों में **महाराष्ट्र, कर्नाटक, ओडिशा, जयपुर** के पर्यटक, एक **भारतीय नौसेना अधिकारी**, एक **खुफिया ब्यूरो कर्मी**, और दो **विदेशी पर्यटक** शामिल थे। मंजुनाथ, अतुल मोने, और नीरज उधवानी जैसे लोग केवल कश्मीर की सुंदरता का आनंद लेने आए थे, लेकिन उन्हें आतंक की भेंट चढ़ना पड़ा।

यह हमला धार्मिक से अधिक मानवता पर हमला था, क्योंकि:

- निर्दोषों का नरसंहार**: पर्यटक—महिलाएँ, बच्चे, और बुजुर्ग—कोई सैन्य या राजनीतिक लक्ष्य नहीं थे। उनकी हत्या मानव जीवन के अधिकार का उल्लंघन थी।

- सामाजिक एकता पर प्रहार**: कश्मीर में हिंदू, मुस्लिम, और सिख एक साथ रहते हैं, और पर्यटन उनकी साझा आजीविका है। इस हमले ने सभी समुदायों को प्रभावित किया, जैसा कि **श्रीनगर के मोमबत्ती जुलूस** (23 अप्रैल 2025) में स्थानीय लोगों की एकता से स्पष्ट हुआ।

- वैश्विक मानवता का अपमान**: दो विदेशी पर्यटकों की मौत और **अमेरिका, चीन, बांग्लादेश** जैसे देशों की निंदा ने इसे वैश्विक त्रासदी बना दिया। आतंकवाद का यह कृत्य किसी धर्म का नहीं, बल्कि मानवता के साझा मूल्यों—शांति, करुणा, और विश्व बंधुत्व—का दुश्मन है।

- कश्मीरी आकांक्षाओं पर हमला**: कश्मीरी लोग, जो दशकों से आतंकवाद से जूझ रहे हैं, शांति और विकास चाहते हैं। **जम्मू-कश्मीर पीपुल्स कॉन्फ्रेंस** के सज्जाद लोन ने इसे “कश्मीर को अंधेरे युग में ले जाने” का प्रयास बताया।

हालांकि आतंकियों ने धार्मिक पहचान का उपयोग किया, यह हमला **राजनीतिक और सामरिक** था। TRF ने इसे **85,000 डोमिसाइल सर्टिफिकेट** और “जनसांख्यिकीय परिवर्तन” के खिलाफ बताया, जो **अनुच्छेद 370** के निरस्त होने से जुड़ा है। यह धार्मिक बयानबाजी केवल डर और ध्रुवीकरण फैलाने का हथियार थी, जिसका असली मकसद कश्मीर की शांति और भारत की स्थिरता को नष्ट करना था।

केंद्र सरकार के दावों का खोखलापन

केंद्र सरकार ने 2019 में **अनुच्छेद 370** को निरस्त करने के बाद बार-बार दावा किया कि कश्मीर में आतंकवाद खत्म हो गया है और क्षेत्र शांति, विकास, और पर्यटन की ओर बढ़ रहा है। **प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी** और **गृह मंत्री अमित शाह** ने कई मौकों पर कश्मीर में “सामान्य स्थिति” और “आतंकवाद पर नियंत्रण” की बात कही। लेकिन पहलगाम हमला इन दावों की पोल खोलता है। 

सुरक्षा विफलता - पहलगाम, एक प्रमुख पर्यटक स्थल, उच्च सुरक्षा क्षेत्र माना जाता है। फिर भी, **6-7 आतंकियों** का समूह बेवकूफ होकर जैसे ना तो सुरक्षा बलों का डर था ना ही कोई रोक-टोक आराम से धर्म पूछ कर आयत पड़वा कर आतंक को अंजाम दे रहे थे! **पूर्व पुलिस प्रमुख शेष पॉल वैद** ने इसे “खुफिया विफलता” बताया, जो दर्शाता है कि आतंकी गतिविधियों पर निगरानी कमजोर थी।

   - हमले में **आसिफ फौजी, सुलेमान शाह**, और **अबू तलहा** जैसे आतंकियों की भूमिका सामने आई, जिनमें दो स्थानीय (**आदिल गुरी, अहसान**) और दो पाकिस्तानी थे। यह दर्शाता है कि स्थानीय और सीमा-पार आतंकवाद अभी भी सक्रिय है, जिसे सरकार ने कम करके आँका।

   2019 के बाद आतंकी हमले**: पहलगाम हमला अकेला नहीं है। 2021 में माखन लाल पंडिता और सुपिंदर कौर की हत्या, 2023 में अनंतनाग मुठभेड़, और 2024 में रियासी तीर्थयात्री हमला TRF और लश्कर की निरंतर सक्रियता को दर्शाते हैं।

पर्यटन पर बढ़ता खतरा

  सरकार ने कश्मीर को पर्यटन का केंद्र बनाने के लिए बड़े पैमाने पर प्रचार किया, जैसे “**कश्मीर चलो**” अभियान और G20 जैसे आयोजन। लेकिन पहलगाम हमले ने **90% पर्यटक बुकिंग** रद्द करवा दीं, और **अमेरिका** ने यात्रा सलाह जारी की।

   - पर्यटन, जो कश्मीरी अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, अब खतरे में है। स्थानीय लोग, जो पर्यटन पर निर्भर हैं, हमले की निंदा कर रहे हैं, क्योंकि यह उनकी आजीविका पर हमला है। सरकार के दावे कि कश्मीर पर्यटकों के लिए सुरक्षित है, अब खोखले लगते हैं।

आतंकवाद का जड़ में न जाना

   सरकार ने **UAPA** के तहत TRF को 2023 में आतंकी संगठन घोषित किया और सैन्य अभियानों में कई आतंकियों को मार गिराया। लेकिन **सैफुल्लाह कसूरी** जैसे मास्टरमाइंड अभी भी सक्रिय हैं, और **पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद** पर प्रभावी रोक नहीं लगी।

  इंडस जल संधि निलंबन** और **वाघा सीमा बंद** जैसे कदम प्रतिक्रियात्मक हैं, लेकिन आतंकवाद की जड़—पाकिस्तान के “डीप स्टेट” और स्थानीय असंतोष—को संबोधित करने में कमी दिखती है।

 कश्मीरी युवाओं** को मुख्यधारा में लाने के दावे भी अधूरे हैं। हमले में दो स्थानीय आतंकियों (**आदिल गुरी, अहसान**) की भूमिका दर्शाती है कि स्थानीय स्तर पर आतंकवाद की भर्ती अभी भी हो रही है।

राजनीतिक दावों का अतिशयोक्ति

   - सरकार ने अनुच्छेद 370 हटने के बाद कश्मीर में “शांति” और “विकास” की तस्वीर पेश की। लेकिन पहलगाम हमला, **2019 के पुलवामा हमले** (40 CRPF जवान मारे गए) के बाद सबसे घातक नागरिक हमला, दर्शाता है कि आतंकवाद अभी भी एक गंभीर खतरा है।

   - **उमर अब्दुल्ला** ने हमले को “हृदय विदारक” बताया और पर्यटकों के पलायन पर दुख जताया, जो सरकार के “सब ठीक है” के दावे को चुनौती देता है।

5. **सामाजिक और आर्थिक नुकसान**:

   - हमले ने कश्मीर की **सामाजिक एकता** को निशाना बनाया। धार्मिक आधार पर हत्याएँ हिंदू-मुस्लिम तनाव को भड़का सकती थीं, लेकिन कश्मीरी लोगों ने एकता दिखाई। फिर भी, यह हमला सामाजिक विश्वास को कमजोर करता है।

   - **आर्थिक नुकसान**: पर्यटन और स्थानीय व्यापार को भारी झटका लगा। **जम्मू-कश्मीर सरकार** ने मृतकों के लिए **10 लाख रुपये** और घायलों के लिए मुआवजा घोषित किया, लेकिन यह दीर्घकालिक नुकसान की भरपाई नहीं कर सकता।

 **मानवता पर हमला: एक व्यापक दृष्टिकोण**

पहलगाम हमला धार्मिक से कहीं अधिक **मानवता पर हमला** था, क्योंकि:

- **निर्दोषों की हत्या**: पर्यटक, जो कश्मीर की सुंदरता का आनंद लेने आए थे, मानवता के साझा मूल्यों—जीवन, स्वतंत्रता, और खुशी—के हकदार थे। उनकी हत्या एक अमानवीय कृत्य था।

- **कश्मीरी समाज पर प्रभाव**: कश्मीरी लोग, जो पर्यटन पर निर्भर हैं, इस हमले के सबसे बड़े पीड़ितों में से हैं। उनकी आजीविका और शांति की आकांक्षा पर यह हमला था।

- **वैश्विक त्रासदी**: दो विदेशी पर्यटकों की मौत और **अमेरिका, चीन, बांग्लादेश** की निंदा ने इसे वैश्विक मानवता के खिलाफ अपराध बनाया।

- **धार्मिक बयानबाजी का दुरुपयोग**: TRF ने धार्मिक पहचान का उपयोग किया, लेकिन इसका असली मकसद **डर, अस्थिरता, और विभाजन** था। यह मानवता के खिलाफ एक सुनियोजित साजिश थी, जैसा कि **शेष पॉल वैद** ने इसे “हमास-शैली हमला” कहकर बताया।

यह हमला कश्मीर के सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत, जिसे “धरती का स्वर्ग” कहा जाता है, पर भी हमला था। **श्रीनगर के मोमबत्ती जुलूस** में कश्मीरी लोगों ने एकता और शांति की अपील की, जो दर्शाता है कि यह हमला सभी समुदायों के खिलाफ था।

- **सरकार की प्रतिक्रिया: पर्याप्त या अपर्याप्त?**

केंद्र सरकार ने हमले के बाद त्वरित कदम उठाए, लेकिन ये दावों की तुलना में अपर्याप्त दिखते हैं:

- **सुरक्षा और जांच**: **भारतीय सेना, CRPF**, और **जम्मू-कश्मीर पुलिस** ने तलाशी अभियान शुरू किया, और **NIA** जांच में शामिल हुई। जबकि कश्मीर जैसे संवेदनशील क्षेत्र में जांच अभियान निरंतर जारी रहना उचित है! **उरी नाला** में 23 अप्रैल को दो आतंकी मारे गए, लेकिन मुख्य मास्टरमाइंड अभी फरार हैं।

- **कूटनीतिक कदम**: **इंडस जल संधि निलंबन**, **वाघा सीमा बंद**, और **पाकिस्तानी उच्चायोग** के कर्मचारियों की संख्या सीमित करना सख्त कदम थे। लेकिन ये प्रतिक्रियात्मक हैं और आतंकवाद की जड़ों को नहीं छूते।

- **नेतृत्व की प्रतिक्रिया**: **प्रधानमंत्री मोदी** ने सऊदी दौरा रद्द किया, **अमित शाह** पहलगाम पहुँचे, और **राजनाथ सिंह** ने सख्त कार्रवाई का वादा किया। लेकिन ये कदम “आतंकवाद खत्म” के दावे को विश्वसनीय नहीं बनाते।

- **सर्वदलीय बैठक**: 24 अप्रैल को बुलाई गई बैठक ने एकता दिखाई, लेकिन दीर्घकालिक रणनीति पर चर्चा स्पष्ट नहीं है।

सरकार की प्रतिक्रिया तात्कालिक थी, लेकिन **खुफिया विफलता**, **स्थानीय असंतोष**, और **पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद** जैसे मूल कारणों पर प्रभावी कार्रवाई की कमी इसे अपर्याप्त बनाती है।

 **समाधान: मानवता और कश्मीर की रक्षा**

पहलगाम हमला मानवता और कश्मीर की शांति के खिलाफ एक चुनौती है। इसे संबोधित करने के लिए अति महत्वपूर्ण कदम जरूरी हैं:

1. **सुरक्षा और खुफिया सुधार**:

   - पर्यटक स्थलों पर **सीसीटीवी, ड्रोन**, और स्थानीय खुफिया नेटवर्क को मजबूत करना।

   - **NIA** और **RAW** को सीमा-पार आतंकी नेटवर्क पर निगरानी बढ़ाने के लिए संसाधन देना।

2. **कश्मीरी युवाओं को मुख्यधारा में लाना**:

   - शिक्षा, रोजगार, और कौशल विकास के माध्यम से युवाओं को आतंकवाद से दूर रखना। **नियद नेलनार** जैसे कार्यक्रमों को और प्रभावी करना।

   - स्थानीय नेताओं और समुदायों के साथ संवाद बढ़ाना।

3. **कूटनीतिक और सैन्य दबाव**:

   - **पाकिस्तान** पर **FATF** और **संयुक्त राष्ट्र** जैसे मंचों पर दबाव बनाना।

   - **बालाकोट-शैली सर्जिकल स्ट्राइक** जैसे सैन्य विकल्पों पर विचार, यदि आतंकी ठिकाने नष्ट करना जरूरी हो तो भी हमें पीछे नहीं हटना चाहिए!

4. **पर्यटन और अर्थव्यवस्था का पुनरुद्धार**:

   - सुरक्षा गारंटी और प्रचार अभियान (जैसे “**कश्मीर सुरक्षित है**”) चलाकर पर्यटकों का विश्वास बहाल करना।

   - स्थानीय व्यापारियों के लिए आर्थिक पैकेज और बीमा योजनाएँ शुरू करना।

5. **सामाजिक एकता को बढ़ावा**:

   - धार्मिक ध्रुवीकरण से बचने के लिए सभी समुदायों को एकजुट करना। **RSS** और **उमर अब्दुल्ला** जैसे नेताओं की एकता की अपील को बढ़ावा देना।

   - सोशल मीडिया पर एकता और शांति के संदेश फैलाना।

6. **न्यायिक कार्रवाई**:

   - **UAPA** के तहत TRF और इसके समर्थकों के खिलाफ सख्त कार्रवाई।

   - पीड़ितों के लिए त्वरित न्याय सुनिश्चित करना, ताकि जनता का भरोसा बने।

- **निष्कर्ष**

पहलगाम आतंकी हमला (22 अप्रैल 2025) **मानवता पर एक क्रूर हमला** था, जिसने **26-28 निर्दोष लोगों** की जान ली और कश्मीर की शांति, अर्थव्यवस्था, और सामाजिक एकता को नुकसान पहुँचाया। जिसने भारतीय वसुदेव कुटुंबकम की विचारधारा पर भी कुठारआघात किया है यह हमला केंद्र सरकार के **कश्मीर में आतंकवाद खत्म करने** के दावों को खोखला साबित करता है, क्योंकि **सुरक्षा विफलता**, **खुफिया कमजोरी**, और **पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद** की निरंतरता स्पष्ट है। यह केवल हिंदुओं के खिलाफ नहीं, बल्कि कश्मीरी लोगों, भारत की एकता, और वैश्विक मानवता के खिलाफ था। सरकार की त्वरित प्रतिक्रिया सकारात्मक थी, लेकिन आतंकवाद की जड़ों को संबोधित करने में कमी इसे अपर्याप्त बनाती है।

मानवता और कश्मीर की रक्षा के लिए, हमें **सुरक्षा, विकास, और एकता** पर ध्यान देना होगा। आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, और पहलगाम हमला हमें याद दिलाता है कि यह मानवता का दुश्मन है। कश्मीर को फिर से “धरती का स्वर्ग” बनाने के लिए, सरकार, नागरिक समाज, और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को एकजुट होकर आतंकवाद के खिलाफ लड़ना होगा। केवल तभी हम उन निर्दोषों को सच्ची श्रद्धांजलि दे सकते हैं, जिन्होंने इस त्रासदी में अपनी जीवन लीला को हृदय विदारक परिस्थितियों में त्यागना पड़ा।