नेताओं से बेहतर फैसले करते हैं अफसर
निर्माण विशेषज्ञों का मानना है कि जिन प्रोजेक्ट्स की जीएडी में खामी निकलेगी, उनका काम कम से कम 15 दिन से 6 माह तक रुक सकता है। इससे न सिर्फ देरी बढ़ेगी, बल्कि ठेकेदार विभाग पर क्लेम भी ठोक सकते हैं। परियोजनाओं की लागत बढ़ेगी और सरकार पर वित्तीय भार आएगा।लेकिन ये मंहगा सौदा नही है.
 
                                राकेश अचल
मप्र में 355 फ्लाईओवर और रेलवे ओव्हर ब्रिज की डिजाइन रद्द करने का फैसला कर लोक निर्माण विभाग के सेतु शाखा के ईएनसी शाखा के ईएनसी ने एक नया कीर्तिमान रच दिया है. भोपाल और इंदौर में 90डिग्री मोड वाले पुलों के विवाद के बाद आए इस फैसले से न जाने कितने इंजीनियरों और ठेकेदारों की नींद उड गई है.
ईएनसी (सेतु)पीसी वर्मा ने ये फैसला निश्चित ही सरकार को लोकनिंदा और जनता को भावी दुर्घटनाओं से बचाने के लिए किया है. ये भी तय है कि वर्मा ने इस फैसले से पहले विभाग के मंत्री के अलावा दीगर निर्णायक मंचों को भी अवगत कराया होगा और सभी जगह उन्हे समर्थन भी मिला होगा.
आपको बता दूं कि इस फैफले के बाद मध्यप्रदेश के 1200 करोड़ रुपए लागत के करीब 140 निर्माणाधीन फ्लाईओवर, आरओबी और एलिवेटेड कॉरिडोर समेत कुल 355 प्रोजेक्ट फिलहाल पूरी तरह रुक गए हैं। इनमें 250 बड़े पुल, करीब 100 रेलवे ओवरब्रिज और शहरों के बीच 5 एलिवेटेड कॉरिडोर शामिल हैं। जो प्रोजेक्ट पहले से निर्माणाधीन हैं, उनका काम भी अब जीएडी के रिव्यू और अनुमति तक स्थगित रहेगा। विभाग ने साफ किया है कि अब बिना उच्च स्तरीय तकनीकी जांच के कोई काम शुरू नहीं होगा।
यह फैसला लेना आसान नहीं था लेकिन विवाद बढने के बाद सरकार को भोपाल के ऐशबाग और इंदौर के एक आरओबी में डिज़ाइन की गंभीर खामियों के चलते काम रोकना पड़ा इन दोनों पुलों की गडबड डिजाइन ने विभाग की भी खूब किरकिरी कराई.। इसके बाद विभाग ने राज्यभर के सभी प्रोजेक्ट की जीएडी की रेंडम जांच कराई, जिसमें तकनीकी त्रुटियां सामने आईं। अब लोक निर्माण विभाग ने जीएडी की दोबारा जांच के लिए एक हाईलेवल कमेटी बनाई है, जिसमें ईएनसी चेयरमैन होंगे।
उनके साथ चीफ इंजीनियर ब्रिज पीडब्ल्यूडी, सीई आरडीसी भोपाल, रेलवे ज़ोन के ब्रिज इंजीनियर और संबंधित नगरीय निकाय के अधिकारी सदस्य होंगे। यह कमेटी अब हर प्रोजेक्ट की डिजाइन, अलाइनमेंट, जियोमैट्रिक स्ट्रक्चर और स्पीड कैलकुलेशन की जांच करेगी।
निर्माण विशेषज्ञों का मानना है कि जिन प्रोजेक्ट्स की जीएडी में खामी निकलेगी, उनका काम कम से कम 15 दिन से 6 माह तक रुक सकता है। इससे न सिर्फ देरी बढ़ेगी, बल्कि ठेकेदार विभाग पर क्लेम भी ठोक सकते हैं। परियोजनाओं की लागत बढ़ेगी और सरकार पर वित्तीय भार आएगा।लेकिन ये मंहगा सौदा नही है
ईएनसी पीडब्ल्यूडी रोड और ब्रिज तथा एमडी आरडीसी को निर्देश दिए गए हैं कि इंडियन रोड कांग्रेस के मानकों के अनुसार काम हो रहा है या नहीं, इसकी जांच की जाए। साथ ही रेलवे और स्थानीय निकायों से समन्वय कर यातायात भार, तकनीकी खामियों और भविष्य की जरूरतों के आधार पर नई जीएडी मंजूरी दी जाए।
आपको याद होगा कि भोपाल के ऐशबाग में 90 डिग्री मोड पर आरओबी बनाने का खुलासा होने के बाद मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने इसके उद्घाटन से इनकार कर दिया। इसके बाद 8 इंजीनियरों पर कार्रवाई की गई। इसके बाद प्रदेशभर में कई ऐसे आरओबी का खुलासा हुआ, जिनके िडजाइन में गड़बड़ी है।लोनिवि के इस फैसले से हालांकि ठेकेदारों का कुछ ज्यादा बिगडने वाला नहीं है, वे इस फैसले की वजह से होने वाले नुकसान और लागत वृद्धि को लेकर दावे कर सकते हैं, किंतु इस फैसले से सरकार की न सिर्फ साख बढेगी बल्कि लोनिवि समेत दूसरे निर्माण विभागों में हो रही इसी तरह की लापरवाही पर भी लगाम लगेगी.
जाहिर है कि ईएनसी वर्मा के लिए इतना कठोर फैसला करना आसान नहीं रहा होगा. मुमकिन है कि इस फैसले के बाद वे अपने ही साथ के अभियंताओं और ठेकेदारों के निशाने पर आ जाएं लेकिन उनके इस फैसले की सराहना विरोधियों को भी मन मारकर करना ही पडेगी. ये फैसला जनहित से जुडा एक यादगार फैसला है और निश्चित ही आने वाले दिनों में इस फैसले के दूरगामी परिणाम होंगे.तकनीकी पदों पर बैठे शीर्ष अधिकारी यदि वर्मा की तरह निर्मम ईमानदारी दिखाने लगें तो सरकार तथा लोनिवि बदनामी से बच सकती है.
मप्र में ये अनूठा फैसला तब आया है जब मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव विदेश यात्रा पर हैं. तय है कि इस फैसले पर मुख्यमंत्री ने अपनी मोहर अवश्य लगाई होगी अन्यथा इतना बडा फैसला आसानी से नहीं लिया जाता. ब इस फैसले पर पूरे प्रदेश की नजर रहने वाली है.ये फैसला 90डिग्री की गलतियों को सूधारने के लिए लिया गया 360 डिग्री वाला फैसला साबित होगा.
 प्रखर न्यूज़ व्यूज एक्सप्रेस
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