मुसलमानो ! मेरा कहा मानो हिंसा से दूर रहो 

मुसलमानो ! मेरा कहा मानो हिंसा से दूर रहो 

राकेश अचल

वक्फ बोर्ड संशोधन क़ानून के खिलाफ मुर्शिदाबाद से लेकर देश के अनेक हिस्सों से जो प्रतिक्रियाएं आ रहीं हैं वे चिंताजनक है। क़ानून का विरोध कर रहे देश वासियों के लिए ये परीक्षा का समय है,ख़ास तौर पर उन अल्पसंख्यक मुसलमानों के लिए जो इस क़ानून से प्रभावित होने वाले हैं। इसलिए अब ये उनकी जिम्मेदारी है कि वे देश में अराजकता पैदा न होने दें,क्योंकि यदि अराजकता पैदा होती है तो सत्ताप्रतिष्ठां का लक्ष्य साधना और आसान हो जाता है। 

नए वक्फ कानून के विरोध में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के आव्हान पर शुक्रवार से देशभर में 'वक्फ बचाव अभियान' शुरू कियागया है। । इसके चलते देशभर में मुसलमान सड़कों पर उतर आए हैं । सबसे ज्यादा भीड़ पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में सड़कों पार आयी और अप्रत्याशित रूप से प्रदर्शन हिंसक हो गया। प्रदर्शनकारियों ने बसें जलाईं, पथराव किया। हिंसा में 3 लोगों की गोली लगने से मौत भी हुई है। हालात काबू में करने के लिए सीसुब को तैनात किया गया है। मुर्शिदाबाद की हिंसा का कोई भी समर्थन नहीं कर सकता। आंदोलनकारियों को समझ लेना चाहिए कि हिंसा के जरिये वे कुछ भी हासिल नहीं कर सकते । यदि उन्हें कुछ हासिल करना है तो विरोध के लिए गांधी वाला रास्ता अपनाना होगा। विरोध के लिए सत्याग्रह और सविनय अवज्ञा से बड़ा कोई दूसरा हथियार दुनिया में नहीं है। 

बंगाल के मुसलमान हिंदुस्तान के दूसरे इलाकों के मुसलमानों से अलग नहीं हैं। फिर बंगाल सरकार नए कानून को लागू न करने की बात भी कर चुकी है । ऐसे में ऑल इंडिया मुस्लिम परसनल ला बोर्ड को चाहिए कि वो अपने आव्हान में इस बात की साफ़ ताकीद करें कि किसी भी तरह की हिंसा किसी भी आंदोलन में नहीं होगी। 

दरअसल ये नया क़ानून बनाया इसीलिए गया है कि अल्पसंख्यक समाज हिंसक हो और इसी बिना पर उन्हें देशद्रोही करार देकर हिन्दू ध्रुवीकरण की प्रक्रिया को और तेज किया जा सके। देश के मुसलमानों को अपने आंदोलन के जरिये जहाँ एक और क़ानून का विरोध करना चाहिए और दूसरी और ध्रुवीकरण की प्रक्रिया को भी शिथिल करना चाहिए। ये आसान काम है। इसे किया जा सकता है। 

किसी भी क़ानून के विरोध के लिए हिंसा का रास्ता उचित हो ही नहीं सकत। देश के अल्पसंख्यक मुसलमानों को देश के किसानों से प्रेरणा लेना चाहिए जिन्होंने अपनी किसान बिरादरी के 700 से ज्यादा लोगो की कुर्बानी देकर इसी सरकार को घुटने टेकने के लिए विवश कर दिया था। सरकार ने एक क्या तीन क़ानून वापस लिए थे। मुसलमान भी सत्याग्रह करें। उन्हें तो वैसे भी एक महीने के रोजे रखने का अभ्यास है। यदि उन्हें लगता है कि नया क़ानून उनके हितों के खिलाफ है तो वे अनशन करें, कानूनी लड़ाई लड़ें ,जन जागृति करें। पूरे देश से अपने लिए समर्थन और संरक्षण मांगें। देश के मुसलमानों को क्या नहीं पता कि देश के बहुसंख्यक समाज ने संसद में उनके साथ खड़े होकर इस क़ानून का विरोध किया है । हिंसा से तो इस क़ानून के खिलाफ उन तमाम गैर मुसलमान सांसदों का विरोध भी जाया हो जाएगा जिन्होंने समरसता के लिए अपने-अपने समाज की नाराजगी मोल ली है। 

आपको बता दें कि भुस में आग लगाने की गलती हमारी सरकार ने की है और अब हमारी सरकार जमालो की तरह एक तरफ खड़ी है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के 'वक्फ बचाव अभियान' का पहला चरण 07 जुलाई तक यानि कुल 87 दिन तक चलेगा। इसमें वक्फ कानून के विरोध में 1 करोड़ हस्ताक्षर कराए जाएंगे। जो माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी को भेजे जाएंगे। इसके बाद अगले चरण की रणनीति तय की जाएगी।इस क़ानून के खिलाफ मानव शृंखला बनाने, पत्रकार वार्ताएं करने के तरीके का समर्थन किया जा सकता है किन्तु हिंसा का नहीं। बहुत जरूरी है कि मुस्लिम समाज अपने भीतर से कोई गांधी,कोई जेपी पैदा करे । कसाब या तहव्वुर राणा नहीं। कसाब या तहव्वुर राणा को आखिर हिंसा के रास्ते से क्या मिला ? मुसलमानों को क्या मिला ,सिवाय तोहमत के,सिवाय हिकारत के ! 

देश में किसानों की संख्या यदि 10 करोड़ है तो मुसलमानों की संख्या 20 करोड़ है। वे गांधी के बताये रास्ते पर चलकर सब कुछ हासिल कर सकते हैं ,लेकिन हिंसा के रास्ते पर चलकर उन्हें कुछ भी हासिल नहीं होने वाला। हिंसा किसी भी समस्या का हल है ही नहीं। आज दुनिया में चौतरफा हिंसा का तांडव है लेकिन मनुष्यता को इससे क्या हासिल हो रहा है ? मैं और मेरे जैसे तमाम असंख्य लोग देश में हिन्दू-मुसलमान की राजनीति के खिलाफ खड़े रहे हैं ,हमने साम्प्रदायिकता का विरोध कर अपने ऊपर शहरी नक्सली,कलम के नक्सली ,काफिर ,देशद्रोही जैसे तमाम ठप्पे लगवाए हैं किन्तु यदि मुसलमान हिंसा का रास्ता अख्तियार करते हैं तो ये हमारी लड़ाई को भी कमजोर करने की कोशिश मानी जाएगी। हम अपनी चुनी सरकार के खिलाफ नहीं है। हमें सरकार के फैसलों से यदि इत्तफाक नहीं है तो हम उसका विरोध कर सकते हैं ,लेकिन गांधीवादी तरीके से। 

यदि अल्पसंख्यक मुसलमान हिंसा करेंगे तो उन्हें सरकार की और से प्रतिहिंसा के लिए भी तैयार रहना चाहिए। सरकार के लिए किसी भी हिंसा का दमन करने के लिए प्रतिहिंसा करना बेहद आसान है । सरकार के पास हिंसा का दमन करने के लिए पुलिस है, अर्द्धसैन्य बल हैं और अंत में सेना भी है। अब ये तय अल्पसंख्यक आंदोलनकारियों और मुस्लिम परसनंल ला बोर्ड को तय करना है कि उसे कौन सा रास्ता पसंद है ?दुनिया में कोई भी जंग हिंसा के रास्ते से नहीं जीती गयी और यदि जीती भी गयी तो वो जीत कभी मुक़्क़मिल जीत नहीं मानी गयी। अल्पसंख्यक समाज को समझना चाहिए कि वे एक धर्मनिरपेक्ष और संप्रभु देश के नागरिक हैं ,भले ही आज की सरकार उनके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार कार रही है किन्तु ये एक अस्थाई घटना है। इससे विक्षुब्ध होने की जरूरत नहीं है। कोईभी दल कोई भी विचारधारा हमेशा के लिए सत्तारूढ़ नहीं होती। निजाम के बदलते ही हालात भी बदलते हैं। इस बदलाव का इन्तजार भी करना चाहिए। 

मुझे उम्मीद है कि मुस्लिम नेता,शिक्षाविद और राजनीतिक दल वक्फ बोर्ड क़ानून के खिलाफ हो रहे किसीभी आंदोलन को किसीभी सूरत में हिंसक नहीं होने देंगे । उनके आंदोलन की कामयाबी तभी सुनिश्चित की जा सकती है जबकि देश में अब दूसरा मुर्शिदाबाद काण्ड नहीं होने की गारंटी दी जाये। आप सब जानते हैं कि बबूल का पेड़ बोने से आम हासिल नहीं हो सकते।