बाबा साहब अम्बेडकर के परिनिर्वाण दिवस पर  गोष्ठी: सामाजिक न्याय के सिद्धांतों पर चलकर ही राष्ट्र निर्माण संभव - वक्ताओं का मत

भारतीय जनता पार्टी के क्षेत्रीय मंत्री संजीव उपाध्याय ने अपने संबोधन में बाबा साहब की भारतीय संस्कृति के प्रति निष्ठा पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, "बाबा साहब के लिए भारतीय संस्कृति सर्वोपरि थी। उन्हें विदेशी धर्म अपनाने के लिए बड़े-बड़े प्रलोभन दिए गए, लेकिन उन्होंने सभी को ठुकरा दिया। उनका जीवन संघर्ष हमें सिखाता है कि सच्ची स्वतंत्रता केवल सांस्कृतिक जड़ों से जुड़कर ही प्राप्त की जा सकती है

बाबा साहब अम्बेडकर के परिनिर्वाण दिवस पर  गोष्ठी: सामाजिक न्याय के सिद्धांतों पर चलकर ही राष्ट्र निर्माण संभव - वक्ताओं का मत

कार्यक्रम का शुभारंभ बाबा साहब की प्रतिमा पर माल्यार्पण और दीप प्रज्ज्वलन से हुआ
उरई, 6 दिसंबर : संविधान निर्माता बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर के परिनिर्वाण दिवस के अवसर पर सामाजिक न्याय मोर्चा द्वारा आयोजित एक भावपूर्ण गोष्ठी ने उरई शहर में सामाजिक समानता और न्याय की भावना को नई गति प्रदान की। शनिवार को मोर्चा के संयोजक चौधरी जय करन सिंह के आवास पर आयोजित इस कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ समाजसेवी राम शरण जाटव ने की। वक्ताओं ने बाबा साहब को महान मानवतावादी और शोषित-वंचित वर्गों के लोकतांत्रिक अधिकारों के प्रबल हिमायती के रूप में याद किया, तथा उनके सिद्धांतों को अपनाने पर जोर दिया। गोष्ठी में उपस्थित बुद्धिजीवियों और समाजसेवियों ने एकमत से कहा कि बाबा साहब के विचारों पर अमल करके ही देश और समाज का सच्चा कल्याण संभव है।

कार्यक्रम का शुभारंभ बाबा साहब की प्रतिमा पर माल्यार्पण और दीप प्रज्ज्वलन से हुआ। राम शरण जाटव ने अध्यक्षीय भाषण में बाबा साहब की छवि को लेकर प्रचलित षड्यंत्रों पर कटाक्ष किया। उन्होंने कहा, "बाबा साहब को अक्सर एकांगी चित्रण के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है, लेकिन उनके चिंतन में दलित बनाम ब्राह्मण जैसा कोई द्वंद्व नहीं था। वे हर जाति के शोषित और वंचित व्यक्ति के अधिकारों के संरक्षण के पक्षधर थे। समता, बंधुत्व और स्वतंत्रता पर आधारित व्यवस्था का निर्माण उनका मूल मंत्र था, और संविधान में उन्होंने इसकी बुनियाद रखने में कोई कमी नहीं छोड़ी।" जाटव ने युवाओं से अपील की कि वे बाबा साहब के इन आदर्शों को जीवन में उतारें, ताकि समाज में व्याप्त असमानताओं का अंत हो सके।

भारतीय जनता पार्टी के क्षेत्रीय मंत्री संजीव उपाध्याय ने अपने संबोधन में बाबा साहब की भारतीय संस्कृति के प्रति निष्ठा पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, "बाबा साहब के लिए भारतीय संस्कृति सर्वोपरि थी। उन्हें विदेशी धर्म अपनाने के लिए बड़े-बड़े प्रलोभन दिए गए, लेकिन उन्होंने सभी को ठुकरा दिया। उनका जीवन संघर्ष हमें सिखाता है कि सच्ची स्वतंत्रता केवल सांस्कृतिक जड़ों से जुड़कर ही प्राप्त की जा सकती है।" उपाध्याय ने बाबा साहब के संविधान निर्माण योगदान को रेखांकित करते हुए कहा कि यह दस्तावेज न केवल कानूनी ढांचा है, बल्कि सामाजिक न्याय का आधार स्तंभ है।

विशेषज्ञ वक्ता के.पी. सिंह ने बाबा साहब के पत्रकारिता के माध्यम से सामाजिक परिवर्तन की भूमिका पर जोर दिया। उन्होंने कहा, "बाबा साहब ने 'बहिष्कृत भारत' और 'जनता' जैसे प्रकाशनों के जरिए जन चेतना जगाई। यह पक्ष पत्रकारों के लिए प्रेरणादायक है। हमें उनके योगदान को बार-बार चर्चा में लाना चाहिए, ताकि नई पीढ़ी उनके संघर्ष से प्रेरित हो।" सिंह ने सुझाव दिया कि मीडिया संस्थानों को बाबा साहब के लेखन को पाठ्यक्रम में शामिल करने की वकालत करनी चाहिए।

गोष्ठी में संजय दुबे ने बाबा साहब के आर्थिक विचारों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उनकी नीतियां आज भी गरीबी उन्मूलन के लिए प्रासंगिक हैं। सुनील शर्मा ने शिक्षा के अधिकार पर जोर दिया, जबकि शिवपाल सिंह निरंजन ने महिलाओं और अल्पसंख्यकों के सशक्तिकरण की दिशा में बाबा साहब के योगदान को सराहा। बलवान सिंह यादव मुन्ना, अनिल सिंह अकोडी, धीरज सिंह यादव, कैलाश कुमार, शशिकांत निरंजन और दीपक परिहार जैसे अन्य वक्ताओं ने भी अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने सामूहिक रूप से संकल्प लिया कि बाबा साहब के सपनों को साकार करने के लिए सामाजिक न्याय मोर्चा निरंतर प्रयासरत रहेगा।

कार्यक्रम में करीब 75 से अधिक लोग उपस्थित थे, जिनमें समाजसेवी, राजनीतिक कार्यकर्ता और युवा शामिल थे। संयोजक चौधरी जय करन सिंह ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि ऐसी गोष्ठियां समाज में एकता का संदेश प्रसारित करती हैं। जिला प्रशासन ने भी इस शांतिपूर्ण कार्यक्रम को सराहा है। यह आयोजन एक बार फिर बाबा साहब के विचारों की अमरता को प्रमाणित करता है, जो आज के दौर में भी प्रासंगिक बने हुए हैं।