काठ की हांडियां भी चढ़ेंगी आग पर


राकेश अचल    

प्रखर न्यूज़ व्यूज एक्सप्रेस 

लोकसभा चुनाव में कांग्रेस हो या भाजपा नए प्रत्याशियों के साथ ही अनेक ऐसे नेताओं को भी चुनाव मैदान में उतारने के लिए विवश हो सकती है जो पिछले दिनों कोई न कोई चुनाव हार चुके है । काठ की इन हांडियों को दोबारा आग पर चढाने की मजबूरी भी है और जरूरी भी । हालाँकि इसमें जोखिम भी कम नहीं है। भाजपा की काठ की हांडियों में केंद्रीय मंत्री श्री ज्योतिरादित्य सिंधियाऔर प्रदेश के पूर्व गृह मंत्री डॉ नरोत्तम मिश्र का नाम भी शामिल है।

भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव में 29 में से 28 सीटें हासिल की थीं ,और तब हासिल की थीं जब प्रदेश में कांग्रेस की सत्ता थी और कमलनाथ मुख्यमंत्री थे। इस बार 2024 में भाजपा का लक्ष्य सभी 29 सीटें जीतने का है। इस बार भाजपा 2019 में भाजपा के ही एक सामान्य कार्यकर्ता केपी सिंह के हाथों गुना से चुनाव हारे ज्योतिरादित्य सिंधिया को चुनाव जिताना चाहती है। हालाँकि ऐसा करना आवश्यक नहीं है क्योंकि सिंधिया वर्तमान में राजयसभा सदस्य हैं और अगले दो साल और सदन में रह सकते हैं। लेकिन प्रदेश भाजपा कार्यसमिति ने खुद सिंधिया के आग्रह पर उन्हें गुना सीट से प्रत्याशी बनाने का प्रस्ताव केंद्र को भेज दिया है।

लोकसभा चुनाव में भाजपा अपने अनेक मौजूदा सांसदों का पत्ता साफ़ करना चाहती है । सबसे ऊपर नाम भोपाल की संसद साध्वी प्रज्ञा का है । उनकी सीट से हाल ही में दतिया से विधानसभा चुनाव हारे प्रदेश के पूर्व गृहमंत्री डॉ नरोत्तम मिश्रा का नाम पैनल में शामिल किया गया है । पार्टी पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को भी भोपाल से प्रत्याशी बनाये जाने के लिए राजी है ,हालाँकि चौहान विदिशा सीट के पुराने अजेय संसद रह चुके हैं। चौहान के बारे में अंतिम फैसला मोदी और शाह को ही करना है। चौहान इस समय विधायक हैं लेकिन उन्हें मध्यप्रदेश की राजनीति से बेदखल किया जाना है इसलिए उनका लोकसभा में भेजा जाना पार्टी की मजबूरी बन गयी है।

प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष वीडी शर्मा भी अपनी वर्तमान सीट खजुराहो से चुनाव लड़ने से कतरा रहे हैं ,क्योंकि ये सीट इंडिया गठबंधन ने समाजवादी पार्टी को दे दी है । यहां यदि कांग्रेस और समाजवादी पार्टी मिलकर चुनाव लड़ते हैं तो शर्मा का जीतना आसान नहीं होगा। भोपाल से पुराने आजमाए हुए नेता आलोक शर्मा और सुमित पचौरी का नाम भी पैनल में जोड़ा गया है । इस लिहाज से भोपाल के पैनल में दो या तीन के बजाय पांच नाम है। जाहिर है कि भाजपा के पास प्रत्याशियों की कोई कमी नहीं है अन्यथा किसी भी पैनल में दो या तीन नाम ही रखे जाते हैं।

भाजपा के लिए भोपाल के बाद सबसे महत्वपूर्ण सीट इंदौर है । यहां से वर्तमान संसद शंकर लालवानी का मुखर विरोध देखते हुए हाल ही में विधानसभा का चुनाव जीतव मंत्री कैलाश वजयवर्गीय और इंदौर के महापौर पुष्यमित्र भार्गव का नाम भी दिल्ली भेजा गया है । गौरतलब है कि कैलाश विजयवर्गीय प्रदेश की राजनीति में रहना नहीं चाहते । वे दिल्ली जाकर अपने बेटे के लिए प्रदेश की राजनीति में जगह वापस करना चाहते है। कैलाश विजयवर्गीय को उनके पूर्व विधायक बेटे आकाश की जगह विधानसभा का चुनाव लड़ाया गया था। महापौर के रूप में पुष्यमित्र भार्गव युवाओं के बीच लोकप्रिय हैं इसलिए उनके नाम को भी आगे बढ़ाया गया है । वे लम्बी रेस के घोड़े साबित हो सकते है। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की पुरानी सीट विदिशा से रमाकांत भार्गव के अलावा शिवराज सिंह का नाम भी सुझाया गया है । अर्थात शिवराज सिंह चौहान को भोपाल या विदिशा में से किसी एक से टिकिट मिलना तय है।

केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम उनकी पुरानी गुना सीट से भेजा गया है हालांकि वर्तमान संसद केपी सिंह का नाम भी दोहराया गया है । केपी को गुना से हटाने का कोई कारण नहीं है किन्तु सिंधिया की इच्छा का मान रखा गया तो केपी शहीद हो सकते है। अन्यथा भाजपा कार्यकर्ता सिंधिया के पक्ष में शायद नहीं है। सिंधिया का नाम ग्वालियर सीट से भी जोड़ा गया है । ग्वालियर के मौजूदा संसद विवेक शेजवलकर बहुत ज्यादा लोकप्रिय सांसद नहीं रहे इसलिए उनका बदला जाना तय समझा जा रहा है । उनके स्थान पर सिंधिया के अलावा विधानसभा चुनाव हारे डॉ नरोत्तम मिश्रा और विधानसभा चुनाव लड़ने से वंचित किये गए जयभान सिंह पवैया का नाम भी पैनल में जोड़ा गया ह। पवैया भी एक जमाने में पूर्व केंद्रीय मंत्री माधव रॉ सिंधिया के खिलाफ चुनाव लड़ चुके है। वे ग्वालियर से सांसद भी रहे हैं।

ग्वालियर-चंबल क्षेत्र की आरक्षित भिंड सीट से मौजूदा संसद सुमन राय के स्थान पार यदि सिंधिया की चली तो पूर्व मंत्री इमरती देवी को भी टिकट मिल सकता है । वे सिंधिया की कटटर समर्थक हैं और हाल ही में विधानसभा का चुनाव दूसरी बार हारीं है । इस सीट से हाल ही में विधानससभा का चुनाव हारे पूर्व मंत्री लाल सिंह आर्य को भी टिकट देने की सिफारिश की गयी है।

पार्टी सूत्रों की मानें तो खंडवा से सुभाष कोठरी, ज्ञानेश्वर पाटिल ,राजगढ़ से मोना सुस्तानी, बंटी बना, रोडमल नागर, अंशुल तिवारी, छिंदवाड़ा से नत्थन शाह कवरेती, डॉक्टर गगन कोल्हे ,टीकमगढ़: वीरेन्द्र कुमार, भारती आर्य, गोपाल राय ,देवास से महेंद्र सिंह सोलंकी, गोपाल परमार, विजय अटवाल, राजेंद्र वर्मा और उज्जैन से अनिल फिरोजिया, चिंतामणि मालवीय को टिकिट देने की सिफारिश की गयी है। बालाघाट से डॉ ढालसिंह बिसेन, गौरीशंकर बिसेन, वैभव पवार ,मंदसौर से सुधीर गुप्ता, पवन पाटीदार, नानालाल अटोलिया और रतलाम-झाबुआ: गुमान सिंह डामोर, दिलीप कुमार मकवाना ,रीवा से जनार्दन मिश्रा, गौरव तिवारी, पुष्पराज सिंह ,सतना से राकेश मिश्रा, शंकरलाल तिवारी का नाम सुझाया गया है। शेष सीटों के बारे में मंथन चल रहा है।

कांग्रेस के पास प्रत्याशियों की लम्बी फेहरिस्त नहीं है । कांग्रेस को प्रत्याशियों को तैयार करना पड़ रहा है ,क्योंकि कांग्रेस के अनेक पुराने प्रत्याशी या तो विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं या मैदान छोड़ चुके है। उदाहरण के लिए मुरैना से पिछली बार चुनाव लडे रामनिवास रावत विधानसभा चुनाव जीत चुके है। इसलिए यहां नया प्रत्याशी तलाशना पड़ेगा। भिंड से एक बार फिर देवाशीष को ही दोबारा आजमाया जा सकता ह। ग्वालियर से चुनाव लड़ने वाले अशोक सिंह को कांग्रेस हाल ही में राज्य सभा भेज चुकी है इसलिए उनके स्थान पर भी पार्टी को नया नाम तय करना होगा। गुना में कांग्रेस के पुराने प्रत्याशी ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में शामिल होने से नए प्रत्याशी की जरूरत होगी। कमोवेश यही स्थिति दूसरी सीटों पर भी है। प्रत्याशियों के चयन को लेकर कांग्रेस की अपनी तैयारी है किन्तु भाजपा से इस मामले में कांग्रेस अभी पीछे दिखाई दे रही है।कांग्रेस के लिए प्रत्याशी तय करना भाजपा के मुकाबले कठिन नहीं है । भाजपा में एक अनार ,सौ बीमार वाली स्थिति है । कांग्रेस में अनार ज्यादा हैं और बीमार कम ,क्योंकि अभी भी कांग्रेस विधानसभा चुनाव की पराजय से उबरी नहीं है । हालाँकि राहुल गांधी पार्टी में जान फूंकने की नाकाम कोशिश कर रहे हैं।

 


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