नई सरकार में हाशिए पर पुराने माननीय, वसुंधरा राजे खेमे को लेकर सियासी चर्चा

 


भजनलाल मंत्रिमंडल में वसुंधरा खेमे को नहीं मिली तरजीह, लोकसभा चुनावों को देखते हुए बदल रहे समीकरण

जयपुर. राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी की जीत के साथ पार्टी के अंदर की खेमेबाजी को लेकर अटकलें काफी दिनों तक चली थी. मुख्यमंत्री का चेहरा तय होने के साथ ही यह भी साफ हो चला था कि पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व ही प्रदेश के महत्वपूर्ण फैसलों में अपना दखल रखेगा, लेकिन जिस तरह से तीन हफ्ते से ज्यादा वक्त के लिए मंत्रिमंडल का विस्तार टलता गया, उसके बाद एक बार फिर धड़ेबंदी को लेकर बीजेपी की ओर सब की निगाहें उठने लगी थी. माना जा रहा था कि वसुंधरा राजे को मुख्यमंत्री पद की रेस से बाहर होने के बाद पार्टी उनके समर्थक नेताओं के जरिए संतुष्ट कर सकती है और राजे के करीबी माने जाने वाले नेताओं को भजनलाल मंत्रिमंडल में जगह मिल सकती है. खास बात यह है कि इन नेताओं की फेहरिस्त में तजुर्बे वाले और सदन को चलाने वाले अनुभवी नेता भी शामिल थे. इनमें मालवीय नगर से जीत कर आए आठवीं बार के विधायक कालीचरण सराफ और छबड़ा से जीते हुए सात बार के विधायक प्रताप सिंह सिंघवी भी शामिल है. दोनों ही नेता वसुंधरा राजे के साथ मंत्रिमंडल में शामिल रहे थे और इस बार भी उन्हें प्रबल दावेदारों में माना जा रहा था.

इन नेताओं को लेकर भी रही चर्चा:वसुंधरा राजे के साथ मंत्री के रूप में काम कर चुकी अजमेर दक्षिण से विधायक और प्रदेश का बड़ा दलित चेहरा अनीता भदेल भी मंत्री पद हासिल नहीं कर पाई. इसी तरह निंबाहेड़ा से जीत कर आए पूर्व कैबिनेट मंत्री रहे श्रीचंद्र कृपलानी को भी भजनलाल की कैबिनेट में जगह नहीं मिली. डेगाना से जीते हुए अजय सिंह किलक और बीकानेर पूर्व से विधायक सिद्धि कुमारी भी चर्चा के बाद मंत्री पद की रेस से बाहर हो गए, तो बहादुर सिंह कोली भी मंत्री पद हासिल नहीं कर सके. हैरानी की बात यह रही कि पिछली राजे सरकार में ऊर्जा मंत्री रहे और छह बार के विधायक पुष्पेंद्र सिंह राणावत भी मंत्रिपरिषद में शामिल नहीं हो पाए. वहीं अनुभवी नेता जसवंत सिंह यादव भी राजे के करीबी माने जाते हैं और उन्हें भी निराशा हाथ लगी.

इन नामों की चर्चा रही, पर मंत्री पद नहीं मिला: अलवर के पूर्व सांसद और तिजारा से जीत कर आए महंत बालकनाथ को मुख्यमंत्री से लेकर मंत्री पद के दावेदार में लगातार गिना जा रहा था, लेकिन शनिवार को हुए भजनलाल कैबिनेट के विस्तार में बालक नाथ का नाम शामिल नहीं था. इसी तरह एक और धार्मिक चेहरे के रूप में पोकरण से विधायक बने महंत प्रताप पुरी की चर्चा, चर्चा ही रही. दलित और अनुभवी चेहरे के रूप में जोगेश्वर गर्ग के नाम का भी उछला, लेकिन नतीजा सिफर रहा. इसी तरह नौक्षम चौधरी, विश्वराज सिंह मेवाड़ को लेकर भी बातें हुई, पर इन सभी नाम को सुर्खियां बंटोरने के अलावा कुछ हासिल नहीं हुआ.

कई संदेश दिए

पहली बार विधायक बने भजनाल शर्मा को सीएम एवं दिया कुमारी व प्रेमचंद बैरवा को उप मुख्यमंत्री बनाकर और अब मंत्रिमंडल के जरिए भाजपा आलाकमान ने कई संदेश दिए हैं। सबसे बड़ा संदेश दिया कि वरिष्ठता पद की गारंटी नहीं है। दूसरा कि सभी बड़े फैसले दिल्ली से होंगे, आलाकमान ही सर्वेसर्वा है। तीसरा कि अब भाजपा में नेता नहीं बल्कि पार्टी के प्रति निष्ठा रखने वालों को महत्व दिया जाएगा।

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