क्या सरकार लाने जा रही 'एक देश एक चुनाव' बिल?

 


संसदीय कार्यमंत्री प्रह्लाद जोशी के एक ट्वीट ने हलचल मचा दी। उनकी ओर से जानकारी दी गई कि 18 से 22 सितंबर के बीच संसद का विशेष सत्र बुलाया गया है। हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि सत्र बुलाया किस लिए जा रहा है। बस इसी की वजह से अटकलों का बाज़ार गर्म हो गया। पक्ष या विपक्ष - किसी को इस बारे में आइडिया नहीं।

कहा जा रहा है कि इस सेशन में 10 से ज़्यादा विधेयक पेश किए जा सकते हैं। हालांकि मामला सामान्य बिल का तो नहीं होगा, क्योंकि ऐसे किसी बिल के लिए संसद का सत्र बुलाने की ज़रूरत नहीं। सरकार पहले भी अध्यादेश का सहारा ले चुकी है। अगर कोई सामान्य बिल का मामला होता, तो एक बार फिर सरकार ऑर्डिनेंस ला सकती थी

सबसे ज़्यादा चर्चा हो रही है इस बिल की टाइमिंग को लेकर। दरअसल, इस साल के आखिर में ही राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में कयास लगाए जाने लगे कि क्या केंद्र सरकार पहले आम चुनाव करा सकती है। इस बात की चर्चा सियासी गलियारों में जोरों पर उठी कि मोदी सरकार इस बार दिसंबर में ही आम चुनाव करा सकती है। इसे बल तब मिला, जब पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने भी इस पर बात की।

चुनाव से ही जुड़ा एक और बड़ा मुद्दा है, एक देश एक चुनाव का। इसका मतलब हुआ कि पूरे देश में एक साथ चुनाव। अनुमान लगाया जा रहा है कि सरकार इस बारे में विधेयक ला सकती है। आइए इस मुद्दे को थोड़ा विस्तार से समझते हैं 

एक देश एक चुनाव पहले भी हो चुका है। दरअसल 1952, 1957, 1962 और 1967 में एक साथ ही लोकसभा और राज्यों के विधानसभा चुनाव कराए गए थे। इसके बाद यह क्रम टूट गया। वजह रही कि कुछ राज्यों की विधानसभा को समय से पहले भंग कर दिया गया। इसके बाद अगला लोकसभा चुनाव भी समय से पहले हो गया। यानी, अगर पहले ऐसा हो चुका है, तो अब भी हो सकता है।

लेकिन, विरोध करने वालों का तर्क है कि अगर लोकसभा के साथ ही राज्यों के चुनाव हुए, तो स्थानीय मुद्दे दब जाएंगे। आम चुनावों में बात राष्ट्रीय मुद्दों की होती है, जनता भी उस चेहरे पर दांव लगाती है, जो विश्व मंच पर देश का सही प्रतिनिधित्व कर सके। दूसरी ओर, विधानसभा चुनावों में बात होती है सड़क, सीवर, बिजली जैसे लोकल इश्यूज की। अगर दोनों चुनाव साथ हुए, तो स्थानीय मुद्दे दब जाएंगे।

एक साथ चुनाव कराने की स्थिति में कुछ राज्यों में समय से पहले इलेक्शन कराने होंगे। अगर सरकार ऐसा बिल लाती है, तो हो सकता है जिन राज्यों में बीजेपी की सरकारें हैं, वहां से सहमति मिल जाए, लेकिन जहां विपक्ष की सरकारें हैं, क्या वहां से भी सपोर्ट मिलेगा?

बीजेपी 'एक देश एक चुनाव' के पक्ष में रही है। पीएम नरेंद्र मोदी इसकी हिमायत करते रहे हैं। इस मामले पर संसदीय समिति की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि अगर पूरे देश में एक साथ चुनाव कराए जाते हैं, तो इससे सरकारी ख़ज़ाने पर बोझ कम पड़ेगा। मानव संसाधन का बेहतर इस्तेमाल किया जा सकेगा। जो ख़ज़ाना बचेगा, उसे विकास पर खर्च किया जा सकेगा।

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