बागेश्वर धाम में जमीन को लेकर विवाद:जहां तालाब वहां बन रही दुकानें; श्मशान में शव जलाने पर रोक लगाई

 


छतरपुर जिला मुख्यालय से 30 किमी दूर छतरपुर-खजुराहो हाईवे से सटा गढ़ा गांव बागेश्वर धाम के कारण बिजनेस हब बन गया है। रोज हजारों में होने वाली लोगों की भीड़ मंगलवार और शनिवार को लाखों में बदल जाती है। कमाई दोनों हाथों से होती है। इस कारण दुकानों का एक महीने का किराया सवा लाख रुपए तक पहुंच गया है।

गढ़ा गांव के आखिरी छोर पर बागेश्वर धाम मंदिर है। ये शिव मंदिर 300 से 400 साल पुराना है। ये धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के परिवार के कुल देवता भी हैं। इसी प्राचीन मंदिर में कुछ साल पहले हनुमानजी की मूर्ति स्थापित की गई है। धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री इसे बालाजी पुकारते हैं। उनसे मुलाकात के लिए यहीं पर नारियल बांधकर अर्जी लगाई जाती है।

अब ये मंदिर छतरपुर जिले की पहचान बन चुका है। मौजूदा समय में छतरपुर जिले में बाहर से आने वाला हर दूसरा व्यक्ति गढ़ा के बागेश्वर धाम जाता है। यही कारण है कि मंदिर के आसपास की जमीनों की कीमत लाखों में पहुंच चुकी है। यहां जमीन की कीमतें 80 लाख रुपए एकड़ तक है। दुकानों का किराया फीट से तय होता है।

तहसीलदार ने नोटिस दिया, लेकिन निर्माण जारी

दुकानों से होने वाली कमाई और किराए के चलते यहां जमीनों पर कब्जा होने लगा है। मंदिर से सटे खसरा नंबर 485/2, 482, 483, 428 (जो क्रमश: 0.421 हेक्टेयर, 0.388 हेक्टेयर, 0.401 हेक्टेयर और 1.121 हेक्टेयर है) जमीन राजनगर तहसील के सरकारी रिकॉर्ड में श्मशान, तालाब और पहाड़ के रूप में दर्ज है। धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री और उनके सेवादार तालाब काे पाटकर अब दुकान बनवा रहे हैं। निर्माण कार्य जोरों से चालू है। श्मशान में शव जलाने पर रोक लगा दी गई है।

12 लाख रुपए की लागत से बना है सरकारी भवन

बागेश्वर धाम के पास सरकारी जमीन पर 12 लाख रुपए की लागत से सामुदायिक भवन बना है। इस भवन को पंचायत ने अपनी निधि से बनवाया था। अब इस पर धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का कब्जा है। सामुदायिक भवन के ऊपर निर्माण कर उसे दो मंजिल और बना लिया गया है। इसी भवन में बैठकर वे पेशी पर आए लोगों से मिलते हैं। यहीं पर उनका दरबार भी लगता है। इस भवन को लेकर गांव के लोगों ने कोई विरोध नहीं दर्ज कराया है। बागेश्वर महाराज के प्रभाव के चलते कोई आवाज उठाने की हिम्मत तक नहीं कर पाता। पहले गांव में किसी की शादी के समय में यहां बारात रुकती थी।

सरकारी जमीन काे चारों ओर से घेरकर कब्जा किया जा रहा है। तहसीलदार ने निर्माण को लेकर एक नोटिस जारी किया है, लेकिन निर्माण जारी है। खसरा नंबर 428 पर अवैध टपरों का निर्माण करके लोगों को किराए पर देकर अवैध वसूली की जा रही है।

तंत्र-मंत्र करते थे, इसलिए गांव के लोगों ने बाहर निकाला था

बागेश्वर धाम की प्रसिद्धि के बारे में श्रीराम पाठक ने बताया कि 2014 में धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री गांव में रहकर छोटा-मोटा तंत्र-मंत्र करते थे। लोगों के भूत उतारते थे। गांव के लोगों ने कहा कि यहां से बाहर निकलो, आप गांव में भूत-प्रेत छोड़ दोगे। इसके बाद वे बागेश्वर धाम के पास बने सामुदायिक भवन में रहने चले गए, जब से वे बागेश्वर धाम गए और लोगों से परिक्रमा कराने लगे, तभी से उनकी उन्नति हुई। उन्होंने फिर मुड़कर नहीं देखा। दो हजार लोगों के पीछे बैठे व्यक्ति को भी महाराज नाम से बुलाते हैं। कई लोगों ने उन्हें आजमाया भी है, तो उनके सहित उनके पिता का नाम भी बता दिया गया।

तीन पीढ़ी से जिस जमीन पर कर रहे थे खेती, उसे छीना जा रहा है

बागेश्वर धाम से सटा खसरा नंबर 229 है। ये 1.1185 हेक्टेयर वाली 15 लोगों के निजी स्वामित्व की जमीन है। यहां वे तीन पीढ़ी से खेती करते थे। मौजूदा समय में इस जमीन का स्वामित्व गढ़ा गांव के अर्जुन सिंह, रामकली, लखन, संतोष, जीतेंद्र, प्रभा, अंगूरी, मुला, राजकुंवर, रनमत सिंह, हुकुम सिंह, राजेंद्र सिंह, कमल, हीरा सिंह, सुम्मेर सिंह के नाम पर है। आरोप है कि अब इस जमीन पर धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री और उनके परिवार के लोगों की नजर पड़ गई है।

पटवारी पवन अवस्थी पर भू-स्वामियों को अपनी आधी जमीन धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के नाम से करने का दबाव डालने का आरोप है। 2 जुलाई 2022 को पुलिस की मौजूदगी में जेसीबी मशीन से इस जमीन पर बने इन परिवारों के टपरों को हटाने का प्रयास किया गया। जेल भेजने की धमकी भी दी गई। इस पर पीड़ित परिवार कोर्ट गए तो वहां स्टे मिल गया। इसके बावजूद धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री और उसके सेवादारों ने आधी रात को जेसीबी लगाकर टपरे हटवा दिए। पीड़ित परिवार 6 दिन तक छतरपुर कलेक्ट्रेट कार्यालय में धरने पर बैठा रहा, पर कोई सुनवाई नहीं हुई।





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ग्राउंड रिपोर्टबागेश्वर धाम में जमीन को लेकर विवाद:जहां तालाब वहां बन रही दुकानें; श्मशान में शव जलाने पर रोक लगाई

छतरपुर44 मिनट पहले


छतरपुर जिला मुख्यालय से 30 किमी दूर छतरपुर-खजुराहो हाईवे से सटा गढ़ा गांव बागेश्वर धाम के कारण बिजनेस हब बन गया है। रोज हजारों में होने वाली लोगों की भीड़ मंगलवार और शनिवार को लाखों में बदल जाती है। कमाई दोनों हाथों से होती है। इस कारण दुकानों का एक महीने का किराया सवा लाख रुपए तक पहुंच गया है।



अब यहां जमीनों की कीमत आसमान छू रही है। निजी और सरकारी जमीनों पर कब्जे का खेल शुरू हो गया है। सीधा आरोप बागेश्वर धाम सरकार धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री और उनके सेवादारों पर है। दैनिक भास्कर टीम इसका सच जानने ग्राउंड जीरो पर पहुंची, पढ़िए ये रिपोर्ट...


बागेश्वर धाम में जमीन की कीमतें 80 लाख रुपए एकड़ तक पहुंच गई है। मंदिर के आसपास की जमीन तो और महंगी है। इसका कारण यहां लगने वाली दुकानों से खूब कमाई है। - Dainik Bhaskar

बागेश्वर धाम में जमीन की कीमतें 80 लाख रुपए एकड़ तक पहुंच गई है। मंदिर के आसपास की जमीन तो और महंगी है। इसका कारण यहां लगने वाली दुकानों से खूब कमाई है।

गढ़ा गांव के आखिरी छोर पर बागेश्वर धाम मंदिर है। ये शिव मंदिर 300 से 400 साल पुराना है। ये धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के परिवार के कुल देवता भी हैं। इसी प्राचीन मंदिर में कुछ साल पहले हनुमानजी की मूर्ति स्थापित की गई है। धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री इसे बालाजी पुकारते हैं। उनसे मुलाकात के लिए यहीं पर नारियल बांधकर अर्जी लगाई जाती है।


अब ये मंदिर छतरपुर जिले की पहचान बन चुका है। मौजूदा समय में छतरपुर जिले में बाहर से आने वाला हर दूसरा व्यक्ति गढ़ा के बागेश्वर धाम जाता है। यही कारण है कि मंदिर के आसपास की जमीनों की कीमत लाखों में पहुंच चुकी है। यहां जमीन की कीमतें 80 लाख रुपए एकड़ तक है। दुकानों का किराया फीट से तय होता है।


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तहसीलदार ने नोटिस दिया, लेकिन निर्माण जारी

दुकानों से होने वाली कमाई और किराए के चलते यहां जमीनों पर कब्जा होने लगा है। मंदिर से सटे खसरा नंबर 485/2, 482, 483, 428 (जो क्रमश: 0.421 हेक्टेयर, 0.388 हेक्टेयर, 0.401 हेक्टेयर और 1.121 हेक्टेयर है) जमीन राजनगर तहसील के सरकारी रिकॉर्ड में श्मशान, तालाब और पहाड़ के रूप में दर्ज है। धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री और उनके सेवादार तालाब काे पाटकर अब दुकान बनवा रहे हैं। निर्माण कार्य जोरों से चालू है। श्मशान में शव जलाने पर रोक लगा दी गई है।


सरकारी जमीन काे चारों ओर से घेरकर कब्जा किया जा रहा है। तहसीलदार ने निर्माण को लेकर एक नोटिस जारी किया है, लेकिन निर्माण जारी है। खसरा नंबर 428 पर अवैध टपरों का निर्माण करके लोगों को किराए पर देकर अवैध वसूली की जा रही है।


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तंत्र-मंत्र करते थे, इसलिए गांव के लोगों ने बाहर निकाला था

बागेश्वर धाम की प्रसिद्धि के बारे में श्रीराम पाठक ने बताया कि 2014 में धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री गांव में रहकर छोटा-मोटा तंत्र-मंत्र करते थे। लोगों के भूत उतारते थे। गांव के लोगों ने कहा कि यहां से बाहर निकलो, आप गांव में भूत-प्रेत छोड़ दोगे। इसके बाद वे बागेश्वर धाम के पास बने सामुदायिक भवन में रहने चले गए, जब से वे बागेश्वर धाम गए और लोगों से परिक्रमा कराने लगे, तभी से उनकी उन्नति हुई। उन्होंने फिर मुड़कर नहीं देखा। दो हजार लोगों के पीछे बैठे व्यक्ति को भी महाराज नाम से बुलाते हैं। कई लोगों ने उन्हें आजमाया भी है, तो उनके सहित उनके पिता का नाम भी बता दिया गया।


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12 लाख रुपए की लागत से बना है सरकारी भवन

बागेश्वर धाम के पास सरकारी जमीन पर 12 लाख रुपए की लागत से सामुदायिक भवन बना है। इस भवन को पंचायत ने अपनी निधि से बनवाया था। अब इस पर धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का कब्जा है। सामुदायिक भवन के ऊपर निर्माण कर उसे दो मंजिल और बना लिया गया है। इसी भवन में बैठकर वे पेशी पर आए लोगों से मिलते हैं। यहीं पर उनका दरबार भी लगता है। इस भवन को लेकर गांव के लोगों ने कोई विरोध नहीं दर्ज कराया है। बागेश्वर महाराज के प्रभाव के चलते कोई आवाज उठाने की हिम्मत तक नहीं कर पाता। पहले गांव में किसी की शादी के समय में यहां बारात रुकती थी।


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तीन पीढ़ी से जिस जमीन पर कर रहे थे खेती, उसे छीना जा रहा है

बागेश्वर धाम से सटा खसरा नंबर 229 है। ये 1.1185 हेक्टेयर वाली 15 लोगों के निजी स्वामित्व की जमीन है। यहां वे तीन पीढ़ी से खेती करते थे। मौजूदा समय में इस जमीन का स्वामित्व गढ़ा गांव के अर्जुन सिंह, रामकली, लखन, संतोष, जीतेंद्र, प्रभा, अंगूरी, मुला, राजकुंवर, रनमत सिंह, हुकुम सिंह, राजेंद्र सिंह, कमल, हीरा सिंह, सुम्मेर सिंह के नाम पर है। आरोप है कि अब इस जमीन पर धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री और उनके परिवार के लोगों की नजर पड़ गई है।


पटवारी पवन अवस्थी पर भू-स्वामियों को अपनी आधी जमीन धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के नाम से करने का दबाव डालने का आरोप है। 2 जुलाई 2022 को पुलिस की मौजूदगी में जेसीबी मशीन से इस जमीन पर बने इन परिवारों के टपरों को हटाने का प्रयास किया गया। जेल भेजने की धमकी भी दी गई। इस पर पीड़ित परिवार कोर्ट गए तो वहां स्टे मिल गया। इसके बावजूद धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री और उसके सेवादारों ने आधी रात को जेसीबी लगाकर टपरे हटवा दिए। पीड़ित परिवार 6 दिन तक छतरपुर कलेक्ट्रेट कार्यालय में धरने पर बैठा रहा, पर कोई सुनवाई नहीं हुई।


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पुलिस से शिकायत, फिर भी रात में टूट गया टपरा

गढ़ा गांव निवासी संतोष सिंह ने 4 नवंबर को बमीठा थाने में शिकायत की है। इस शिकायत में लिखा है कि बागेश्वर धाम से लगी उनकी निजी जमीन है। यहां धीरेंद्र शास्त्री अपना दरबार लगाकर भीड़ एकत्र करते हैं। इसके चलते दुकानदारों की अच्छी खासी बिक्री होती है। आसपास की सरकारी जमीन पर धीरेंद्र शास्त्री कब्जा कर चुके हैं। मेरी जमीन मौके पर होने के कारण दुकानदारों की अच्छी-खासी बिक्री होती है।


इस कारण धीरेंद्र शास्त्री उनके भाई लोकेश उसे हथियाना चाहते हैं। वे बाहरी गुंडों और स्थानीय प्रशासन के सहयोग से हमें परेशान करते हैं। कोर्ट से राहत मिलने पर 2 नवंबर को मेरे फोन पर लगभग सात बजे फोन नंबर 8717957726 से लोकेश गर्ग ने बात की थी।


मेरे भाई लखन और चचेरे भाई सुम्मेर सिंह को बुलाकर धीरेंद्र शास्त्री के पास लाने को कहा। मैंने कहा कि वे लोग खेत पर हैं। इसके बाद 3 नवंबर की शाम 8 बजे लोकेश मेरे घर आए। मुझे और सुम्मेर सिंह को धीरेंद्र शास्त्री के पास ले गए। वहां धीरेंद्र शास्त्री, लोकेश गर्ग, अखिलेश गर्ग उर्फ सिद्दू के अलावा 7 अन्य लोग थे। धीरेंद्र बोले कि अपनी जमीन की रजिस्ट्री तुम हमारे नाम कर दो, नहीं तो तुम्हारे पूरे परिवार को नष्ट कर देंगे।


अभी तुम लोगों ने कितनी जगह शिकायतें की हैं। हमारा क्या बिगाड़ लिया, तुम जिससे शिकायत करते हो, वो हमारे पैरों में पड़े रहते हें। तुम्हें पता है कि यहां पर कितने आदमी मर चुके हैं। किसी का कोई अता-पता नहीं लग पाया। लोकेश गर्ग बोला कि हम एक-एक को जान से मरवा देंगे। अपनी भलाई चाहते हो तो जमीन हमें दे दो। हमने यह शिकायत भी पुलिस से की, लेकिन आज तक कोई कार्रवाई नहीं की गई। उसी रात संतोष सिंह और लखन के हिस्से के टपरे पर जेसीबी चलवा दी गई थी।

महंगा किराया है विवाद की असली जड़

गढ़ा निवासी संतोष सिंह के मुताबिक, हमारे 15 लोगों के नाम पर लगभग 3 एकड़ जमीन है। इस पर 28 दुकानें और ढाबे बनाए हैं। मेरी एक दुकान का किराया बांदा का एक व्यापारी 1.10 लाख रुपए देता है। अन्य दुकानें भानेज और रिश्तेदार चला रहे हैं। दुकानों का महंगा किराया होने के चलते धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री और उनके परिवार के लोग इस जमीन को लेना चाहते हैं।

वे कहते हैं कि मंदिर से लगी 2 एकड़ जमीन बेच दो। हम मंदिर से सटे परिक्रमा के लिए जमीन देने को तैयार हैं, लेकिन उस पर तारबंदी नहीं चाहते हैं। आखिर हमारा रास्ता भी वही है, हम कहां से आएंगे-जाएंगे। एक दिसंबर को कुछ मध्यस्थ लोगों की मौजूदगी में धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के साथ बैठक होनी है। इसके बाद ही आगे का कुछ तय होगा कि हम जमीन उन्हें बेचेंगे या नहीं।

महाराज के भाई लोकेश ने सरकारी अफसरों से की थी बहस

17 नवंबर को तहसीलदार राजनगर के निर्देश पर पटवारी सहित अन्य राजस्व अमला तालाब सहित अन्य सरकारी जमीन की नपाई करने पहुंचा था। घोषी परिवारों की जमीन नापकर टीम तालाब की ओर की जमीन नापने पहुंची, तो धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के भाई लोकेश ने रोक दिया। बहस के बाद टीम को लौटना पड़ा। राजस्व टीम ने आगे की कार्रवाई फिलहाल रोक दी है। तालाब और श्मशान की जमीन पर बनी दुकानें चालू हैं। इसका किराया धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री परिवार ही वसूल रहा है। यहां बनी दुकानों का किराया भी साइज के अनुसार 3 हजार से लेकर 1.25 लाख रुपए तक है।

तहसीलदार बोले- आप कह रहे हैं तो मैं जांच करवाता हूं...

सार्वजनिक श्मशान और तालाब सहित पहाड़ी पर कब्जे के बारे में नायब तहसीलदार राजनगर विजयकांत त्रिपाठी ने बताया कि एक साल पहले वहां के कब्जे हटाए गए थे। सीमांकन भी कराया गया था। फिर से कब्जे की जानकारी नहीं है। आप बता रहे हैं, तो पटवारी को भेजकर जांच कराता हूं कि वहां कौन निर्माण करा रहा है।

बागेश्वर धाम सरकार की ओर से नहीं आया पक्ष

मीडिया ने बागेश्वर धाम सरकार धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री पर आरोपों के संबंध में उनका पक्ष लेने की कई मर्तबा कोशिश की। 22 नवंबर को मीडिया रिपोर्टर बागेश्वर धाम पहुंचा तो वहां सेवादारों ने ये कहते हुए मना कर दिया कि अभी बहुत भीड़ है। मिलना मुश्किल है। इसके बाद उनके फोन नंबर पर कॉल किया। कॉल रिसीव नहीं हुआ तो वॉट्सएप पर मैसेज भेजा। मैसेज में उन पर लगे आरोपों पर उनका पक्ष मांगा, पर कोई उत्तर नहीं मिला। 28 और 29 नवंबर को फिर उन्हें मैसेज किया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।

धीरेंद्र गर्ग के चचेरे भाई लोकेश गर्ग से बात करने की कोशिश की। उन्होंने भी कॉल रिसीव नहीं किया। मैसेज पर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। इसके बाद उनके भाई शालीग्राम गर्ग के नंबर पर कॉल किया, लेकिन वो बंद मिला। उनके प्रमुख सेवादार सनी महाराज के नंबर पर कॉल लगाया। मैसेज किया। दो दिन प्रयास के बाद उनका सिर्फ इतना मैसेज आया कि मैं बागेश्वर धाम में हूं और महाराज जी अशोकनगर में कथा करने गए हैं। अशोकनगर में दैनिक भास्कर रिपोर्टर ने पक्ष जानने का प्रयास किया, लेकिन वहां भी मुलाकात नहीं हो पाई।

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