अरुण यादव से किया अपना वादा पूरा करेंगे राहुल या एमपी कांग्रेस में दोहराएगा सिंधिया का किस्सा, राज्यसभा चुनाव पर टिकी निगाहें


 भोपालः मध्य प्रदेश में राज्यसभा की तीन सीटों के लिए चुनाव (Madhya Pradesh Rajya Sabha Elections) की आहट के साथ कांग्रेस आलाकमान एक्टिव हो गया है। उसे दो साल पहले की याद आ रही है जब राज्यसभा की एक सीट के लिए पार्टी में टूट हो गई थी और कमलनाथ की सरकार गिर गई थी। ज्योतिरादित्य सिंधिया के विद्रोह के पीछे राज्यसभा सीट की दावेदारी तो थी ही, राहुल गांधी के एक वादे की भी चर्चा थी। कहा जाता है कि राहुल ने 2018 में सिंधिया को मुख्यमंत्री बनाने का आश्वासन दिया था, लेकिन चुनाव के बाद इसे पूरा नहीं कर पाए। इससे बिदके सिंधिया को जब राज्यसभा चुनाव में पार्टी का पहला कैंडिडेट बनाने के रास्ते में दिग्विजय ने अड़ंगा लगाया तो उन्होंने बीजेपी के साथ डील कर ली।

इस बार भी हालात करीब-करीब वैसे ही हैं। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव (Arun Yadav) और कमलनाथ के बीच दूरियों की खबरें आम हैं। अरुण यादव के साथ अजय सिंह राहुल और सुरेश पचौरी भी असंतुष्टों में शामिल हैं। यादव और राहुल तो दिल्ली जाकर पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी (Arun Yadav Meets Sonia Gandhi) से भी मिल आए हैं। दोनों ने पार्टी में जिम्मेदारी की मांग करते हुए कमलनाथ की शिकायत की है, लेकिन यहां भी राहुल गांधी के एक कथित वादे पर सबकी निगाहें टिकी हैं।

अरुण यादव ने दिल्ली में पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात के दौरान राहुल के इस वादे की भी याद दिलाई। दरअसल, पिछले विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी ने अरुण यादव को दिल्ली बुलाकर बुधनी से शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ चुनाव लड़ने को कहा था। यादव बुधनी से लड़ने के मूड में नहीं थे। राहुल ने भरोसा दिलाया कि वे हारेंगे तो उन्हें राज्यसभा भेजा जाएगा। इसके बाद यादव बुधनी से चुनाव लड़ाने को तैयार हुए थे। अब वे चाहते हैं कि पार्टी हाईकमान अपना वादा पूरा करे और जून में खाली होने वाली राज्यसभा सीट पर उन्हें भेजा जाए।

अरुण यादव मनमोहन सिंह की सरकार में केंद्रीय राज्यमंत्री रह चुके हैं। 2014 से 2018 तक वे प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष थे, लेकिन पिछले साल अक्टूबर में खंडवा लोकसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव के बाद से वे असंतुष्ट चल रहे हैं। इस चुनाव में वे पार्टी के टिकट के सबसे प्रबल दावेदार थे और कई महीने पहले से इसकी तैयारियों में भी लगे थे। अंतिम समय में कांग्रेस ने उनकी जगह दिग्विजय सिंह के समर्थक एक वयोवृद्ध नेता को उम्मीदवार बना दिया था। उपचुनाव में कांग्रेस की हार हुई और अरुण यादव, कमलनाथ के खिलाफ आक्रामक हो गए।

कमलनाथ के रुख को देखते हुए यादव इस बार अपनी फील्डिंग पहले से सजा रहे हैं, लेकिन नतीजा क्या होगा, यह कहना मुश्किल है। यादव के रास्ते में कमलनाथ के अलावा पार्टी के दूसरे बड़े नेता भी रुकावट बन सकते हैं। दूसपी ओर, बीजेपी की ओर से यादव पर डोरे डालने की खबरें भी आ रही हैं। इन खबरों से पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व पसोपेश में है। राहुल का किया वादा पूरा करने से दूसरे नेताओं के असंतुष्ट खेमे में जाने का डर है। इसलिए पार्टी नेतृत्व जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं लेना चाहता। यही कारण है कि राज्यसभा चुनाव की घोषणा होने से पहले ही सोनिया गांधी असंतुष्ट नेताओं से मिल रही हैं। देखना यह है कि ऊंट किस करवट बैठता है। मामला गंभीर है क्योंकि पार्टी नेतृत्व का एक फैसला राज्यसभा चुनाव के नतीजों के साथ डेढ़ साल बाद होने वाले विधानसभा चुनावों पर भी असर डाल सकता है।


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