समुदाय में जागरूकता लाएं, उपेक्षित बीमारियों पर काबू पाएं नेगलेक्टेड ट्रापिकल डिजीज डे (30 जनवरी) पर विशेष • उपेक्षित बीमारियां रोगी बनाने के साथ परिवार को आर्थिक रूप से कमजोर भी बनाती हैं • चिकित्सक व जनता का इन बीमारियों के प्रति संवेदनशील होना जरूरी

(सुनील शर्मा उत्तर प्रदेश ब्यूरो प्रमुख प्रखर न्यूज व्यूज एक्सप्रेस) 

लखनऊ, 29 जनवरी 2022  

बक्शी का तालाब के हरदौलपुर गांव के लालता प्रसाद 30 साल से फाइलेरिया से पीड़ित हैं। उनके मुताबिक जब वह 15 साल के थे तभी फाइलेरिया के लक्षण आ गए थे। उस वक्त इतनी समझ नहीं थी, इसलिए जिसने जैसा बताया, वैसा किया। बाराबंकी में दो साल इलाज किया। लखनऊ की एक डाक्टर से इलाज कराया। तीन लाख रुपए से ज्यादा खर्च हुए लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। 30 साल तक मोटा पैर लिए जिंदगी गुजारता रहा। इस बार सामूहिक दवा सेवन कार्यक्रम (एमडीए राउंड) में दवा खाई और पहली बार 21 दिन इलाज करवाया इससे पैरों में सूजन काफी कम हो गई।

हरदौलपुर की ही सुनीता को पांच साल से फाइलेरिया है। उन्हें एक रात बुखार आया और दाहिना पैर सूज गया। गांव के ही मेडिकल स्टोर से दवा ली और फिर अप्रशिक्षित से इलाज कराया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। स्थानीय प्राइवेट डाक्टर से छह महीने इलाज कराया और पैरों की सूजन कम हो गई लेकिन इलाज खर्चीला होने के कारण दवा बीच में छोड़ दी। पिछले चार साल से एमडीए राउंड में दवा खा रही हूँ। पति और बेटी को भी खिलाती हूँ। अब पैर की सूजन लगभग खत्म हो गई है। वह सिलाई का काम करती हैं और उनके यहां जो भी आता है उसे यही बताती हैं कि फाइलेरिया की दवा खाएं और जिंदगी को नरक होने से बचाएं।   

लालता और सुनीता तो महज मिसाल भर हैं। इन दोनों जैसे न जाने कितने मरीज हैं जो स्वास्थ्य विभाग द्वारा चलाए जा रहे एमडीए राउंड में बाटी जाने वाली दवा नहीं खाते हैं और फाइलेरिया जैसी उपेक्षित (नेगलेक्टेड ट्रापिकल डिजीज) बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। फाइलेरिया, कालाजार, चिकनगुनिया, कुष्ठ रोग जैसी 16 बीमारियां नेगलेक्टेड ट्रापिकल डिजीज की श्रेणी में आती हैं। समुदाय को भी इन बीमारियों के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए ही हर साल 30 जनवरी को नेगलेक्टेड ट्रापिकल डिजीज डे मनाया जाता है । यह बीमारियां किसी इंसान को रोगी बनाने के साथ-साथ परिवार को आर्थिक रूप से कमजोर भी बना देती हैं ।   

ट्रापिकल बीमारियों के विशेषज्ञ डॉ. सौरभ पांडेय के मुताबिक यह बीमारियां वायरस, बैक्टीरिया, पैरासाइट, फंगस और टाक्सिन से होती हैं । यह बीमारियां उपेक्षित जनता के बीच ही पाई जाती हैं, इसीलिए यह उपेक्षित बीमारियां होती हैं। उन्होंने कहा कि इन्हें खत्म किया जा सकता है। हमने चेचक को खत्म किया है। फाइलेरिया और कालाजार में भी विभाग की इच्छा शक्ति दिखी है। इसी तरह इन बीमारियों को भी खत्म कर सकते हैं।  

डॉ. सौरभ ने बताया कि इन बीमारियों के प्रति विभाग के अलावा समुदाय भी जागरूक नहीं रहा है। डाक्टरों को भी जागरूकता दिखानी होगी। लक्षण दिखते ही मरीज का पैथालाजी टेस्ट कराया जाए तो बहुत से मरीजों की जल्द पहचान हो सकती है । इससे उनका इलाज जल्द शुरू हो जाएगा और वह जल्द ठीक हो जाएंगे। समुदाय के स्तर पर अगर किसी मरीज को हल्के लक्षण भी दिखें तो फौरन पास के सरकारी अस्पताल में दिखाएं, वह चाहे परिवार का सदस्य हो या आस-पास का । आगे बढ़कर की गई यही मदद इन बीमारियों को काबू करने में सहायक बनेंगी । 

सतर्कता बरतें- बीमारियों से बचें  

अपर निदेशक वेक्टर बार्न डिजीज डॉ. आर. सी. पाण्डेय का कहना है कि इनमें से अधिकतर बीमारियाँ मच्छरों के काटने से होती हैं, इसलिए मच्छरों को पनपने से रोकने के लिए घर व आस-पास साफ-सफाई रखें, जलजमाव न होने दें। सोते समय मच्छरदानी का इस्तेमाल करें, पूरी आस्तीन के कपड़े पहनें। इसके प्रति जनजागरूकता को बढ़ावा देकर भी इन बीमारियों से बचा जा सकता है । 

फाइलेरिया नियंत्रण अधिकारी डॉ. सुदेश कुमार के मुताबिक प्रदेश सरकार का कई उपेक्षित बीमारियों पर फोकस बढ़ा है। हमने 22 नवंबर से 10 दिसंबर 2021 तक फाइलेरिया का एमडीए राउंड चलाया, जिसमें स्वास्थ्य कर्मियों ने घर-घर जाकर लोगों को अपने सामने दवा खिलाई। कालाजार प्रभावित जिलों में भी मरीजों को खोजने का काम चल रहा है। उम्मीद है कि फाइलेरिया व कालाजार के प्रसार को रोकने में कामयाब होंगे। डॉ. कुमार ने कहा कि इन उपेक्षित रोगों पर समुदाय में भी जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है। मसलन किसी को फाइलेरिया हो जाए तो उसकी जिंदगी मृत समान हो जाती है । अगर वह परिवार का मुखिया है तो उसके परिवार का आर्थिक विकास भी रुक जाएगा। ऐसे में समुदाय की जागरूकता उसे और उनके जैसों को इस बीमारी से बचा सकती है । मामूली लक्षण देखें तो फौरन पास के सरकारी अस्पताल ले जाएं । 

क्या कहते हैं आँकड़े : 

ग्लोबल बर्डन आफ डिज़ीज़ स्टडी की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया की 16 उपेक्षित बीमारियों में से 11 भारत में बहुतायत में पाई जाती हैं यानि  इन 11 बीमारियों के सबसे ज्यादा और सबसे बिगड़े केस अपने देश में हैं । रिपोर्ट बताती है कि भारत में लिम्फैटिक फाइलेरिया के 87 लाख केस हैं जो दुनिया का 29 प्रतिशत है। इसी तरह कालाजार के देश में 13530 केस हैं जो दुनिया का 45 प्रतिशत है। कुष्ठ रोग के 187730 केस हैं जो दुनिया का 36 फीसदी है। रैबीज के 4370 केस हैं जो विश्व का 33 प्रतिशत है।   

उपेक्षित बीमारियां : फाइलेरिया, कालाजार, कुष्ठ रोग, चिकनगुनिया, डेंगू, रैबीज, स्कैबीज, हुकवार्म, एसकैरियासिज

 


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