कभी दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल थे राकेश टिकैत, 44 बार जा चुके हैं जेल, चुनाव में नहीं चमकी किस्मत
गणतंत्र दिवस की घटना, उसके बाद उठी आरोपों की आंधी और नए कृषि कानूनों की वापसी न होने तक आत्महत्या की धमकी देने वाले चौधरी राकेश टिकैत ने किसान आंदोलन में एक बार फिर से जान फूंक दी है। जूनियर टिकैत के आंसुओं ने आंदोलन की दिशा बदल दी है। आंदोलन स्थलों से किसानों की वापसी थम गई है। युवा और किसानों के नए जत्थों ने बॉर्डर का रुख किया है। सब राकेश टिकैत की बदौलत।
राकेश टिकैत बाबा की ख्याति प्राप्त चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के बेटे हैं। दूसरे नंबर के। राकेश के बड़े भाई नरेश हैं। नरेश वैसे तो भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष हैं लेकिन कमान राकेश के हाथ है। व्यावहारिक रूप से आंदोलनकारी पिता के उत्तराधिकारी राकेश टिकैत ही हैं। सारे फैसले उन्हीं के होते हैं लिहाजा वे ही यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता भी हैं। एक समय वे दिल्ली पुलिस में थे।
राकेश टिकैत का जन्म जिला मुजफ्फरनगर के गाव सिसौली में 4 जून 1969 को हुआ था। राकेश ने मेरठ यूनिवर्सिटी से एमए किया। एलएलबी भी की। साल 1992 में राकेश टिकैत दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल थे। लेकिन 1993 से उनके जीवन की दिशा बदल गई। साल 1993-94 में पिता महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में दिल्ली में आदोलन चल रहा था। हालात ऐसे बने कि राकेश ने पुलिस की नौकरी छोड़ दी और किसानों के साथ आंदोलन की राह पकड़ ली।
कई बार जा चुके हैं जेल
किसानों की खातिर राकेश टिकैत एक-दो बार नहीं 44 बार जेल जा चुके हैं। मध्यप्रदेश में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ आंदोलन के लिए उन्हें 39 दिन तक जेल में रहना पड़ा। गन्ने का समर्थन मूल्य बढ़ाने के लिए दिल्ली में प्रदर्शन किया तब भी जेल की हवा खानी पड़ी और बाजरे के समर्थन मूल्य की लड़ाई उन्हें जयपुर जेल ले गई।
चुनाव लड़े पर नहीं चमकी किस्मत
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों के कमांडर राकेश टिकैत दो बार चुनाव भी लड़ चुके हैं। लेकिन उनकी किस्मत चुनावी लड़ाई में चमक नहीं सकी। लोकसभा के साथ-साथ वे विधानसभा तक का चुनाव हार चुके हैं। पहली बार वे 2007 में मुजफ्फरनगर की खतौली विधानसभा सीट से निर्दलीय लड़े थे। चुनाव में हार मिली। इसके सात साल बाद 2014 में राष्ट्रीय लोक दल ने उन्हें अमरोहा लोकसभा सीट से खड़ा किया, लेकिन यहां भी शिकस्त ही हाथ लगी।
किसान आंदोलन का चेहरा
नए कृषि कानूनों के विरोध में दो महीने से भी अधिक समय से देश भर के किसान दिल्ली की सीमाओं पर डटे हैं। खास तौर से हरियाणा, पंजाब और यूपी के किसान आंदोलन को खड़ा किये हुए हैं। कई नेता भी आंदोलन के बीच सुर्खियों में रहे हैं लेकिन गाजीपुर बॉर्डर और पश्चिमी यूपी का किसान आंदोलन टिकैत के ही नाम पर टिका है। दिलचस्प यह है कि हाल के घटनाक्रम के बाद जींद, हरियाणा में 100 से ज्यादा गांवों के किसानों की पंचायत हुई और टिकैत के नाम पर 1500 ट्रैक्टर दिल्ली के लिए निकल पड़े हैं।
...और ये है राकेश टिकैत का परिवार
राकेश टिकैत की शादी 1985 में हुई थी। पत्नी का नाम सुनीता है। एक बेटा और दो बेटियां हैं। सब शादीशुदा।