देश में बेरोजगारी सितंबर से दिसंबर के चार महीनों में 7.5 फीसदी बेरोजगारी

 


अर्चना शर्मा

संपादक प्रखर न्यूज व्यूज एक्सप्रेस


शिक्षित बेरोजगारी (educated unemployment) भारत की आर्थिक समस्याओं की प्रमुख समस्या है। यह स्थिति हमारे आर्थिक विकास में बाधक है। शिक्षित वर्ग में बेरोजगारी अलग किस्म की बेरोजगारी है।

जैसे कोई भी व्यक्ति वह स्नातक, स्नातकोत्तर पढ़ाई कर लेते है और वह बेरोजगार हो जाते है तो इसी स्थिति को शिक्षित बेरोजगारी कहाँ जाता है।  

भारत में शिक्षित बेरोजगारी की समस्या गंभीर रूप में उपस्थित है। इसके समाधान के लिए अलग से विशेष प्रयास की आवश्यकता है।

इनमें से कुछ लोग तो ऐसे है जो अल्प-रोजगार की स्थिति में है। इनको थोड़ा बहुत काम तो मिला हुआ होता है लेकिन यह काम या तो उनके शिक्षा के अनुसार नहीं होता या फिर इनकी क्षमता से कम होता है.

इस रूप में इनकी बेरोजगारी छिपी होती है। कुछ शिक्षित व्यक्ति ऐसे भी है जिनको कुछ काम मिला नहीं होता है अर्थात् वे खुले रूप से बेरोजगार होते है ।

शिक्षित बेरोजगारी की संख्या में निरंतर वृद्धि होती जा रही है। यह एक भयावह समस्या सूचक है, फिर भी शिक्षित बेरोजगारी की संख्या के सम्बन्ध में कोई प्रमाणिक अनुमान उपलब्ध नहीं है।

शिक्षित बेरोजगारी का बढ़ना

शिक्षित बेरोजगारी के सम्बन्ध में भारत में श्रम तथा रोजगार मंत्रालय तथा योजना आयोग के अनुमानों में अंतर्विरोध है

फिर भी इन आंकड़ों के आधार पर निश्चित रूप से कहाँ जा सकता है कि भारत रिपोर्ट के मुताबिक फरवरी महीने में देश में बेरोजगारी की दर बढ़कर 7.78 प्रतिशत हो गई है, जो जनवरी 2020 में 7.16 प्रतिशत थी. ... यही नहीं, देश में शिक्षित लोगों के बीच बेरोजगारी बड़ा विकराल रूप धारण करती जा रही है, उच्च शिक्षित युवाओं की बेरोजगारी दर बढ़कर 60 फीसदी तक पहुंच गई है.

इससे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि शिक्षित बेरोजगारों की संख्या में बहुत तेजी से वृद्धि हुई है। एक और बात जो इन आंकड़ो से जाहिर होती है,

वह यह है कि स्नातक एवं स्नातकोत्तर शिक्षितों में बेरोजगारी की मात्रा न केवल कुल रूप में अपितु सापेक्ष रूप में भी बढ़ी है।  

इससे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि भारतीय समाज में अत्यधिक शिक्षा प्राप्त करने की प्रवृति विद्यमान है।

हाई स्कूलों और सेकेंडरी व इंटरमीडिएट के पश्चात नौकरी न मिलने के कारण लोग स्नातक एवं स्नातकोत्तर स्तरीय शिक्षा प्राप्त करना चाहते है ।

जहाँ तक भारत में शिक्षित बेरोजगारी के कारणों का प्रश्न है, इसके अनेक उत्तरदायी कारण है, जैसे कि


दोषपूर्ण शिक्षा व्यवस्था, रोजगार तलाश करने वालों में तकनीकी प्रशिक्षण तथा आवश्यक योग्यता की कमी तथा विशिष्ट लोगों की मांग व पूर्ति में असंतुलन आदि.

परन्तु शिक्षित बेरोजगारी का मूल कारण वहीं है जो देश में सामान्य बेरोजगारी का मूल कारण है और वह आर्थिक विकास में मंथर गति है।

श्रमिक वर्ग की बेकारी उतनी चिंत्य नहीं है जितनी की शिक्षित वर्ग की। श्रमिक वर्ग श्रम के द्वारा कहीं न कहीं सामयिक काम पाकर अपना जीवनयापन कर लेता है,

किन्तु शिक्षित वर्ग जीविका के अभाव में शारीरिक और मानसिक दोनों व्याधियों का शिकार बनता जा रहा है।

वह व्यवहारिकता से शून्य पुस्तकीय शिक्षा के उपार्जन में अपने स्वास्थ्य को तो गवां ही देता है, साथ ही शारीरिक श्रम से विमुख हो अकर्मण्य भी बन जाता है। परंपरागत पेशे में उसे एक प्रकार की झिझक का अनुभव होता है ।

 इस कथन से स्पष्ट होता है कि मांग से कहीं अधिक शिक्षितों की संख्या का होना ही इस समस्या का मूल कारण है।

विश्वविद्यालय, कॉलेज व स्कूल प्रतिवर्ष बुद्धिजीवियों, क्लर्क और कुर्सी से जूझने वाले बाबुओं को पैदा करते जा रहे है। नौकरशाही तो भारत से चली गयी किन्तु नौकरशाही भारतवासियों के मस्तिष्क से नहीं गयी है ।

विश्वविद्यालय में उच्च शिक्षा प्राप्त करने हेतु आया विद्यार्थी आई.ए.एस और पी.सी.एस के नीचे तो सोचता ही नहीं है।

यही हाल हाई स्कूल और इंटरवालों का भी है। पुलिस की सब-इंस्पेक्टरी और रेलवे की नौकरियों के दरवाजे खटखटाते रहते है।

कई व्यक्ति ऐसे है, जिनके यहाँ बड़े पैमाने पर खेती हो रही है। यदि अपने शिक्षा का सदुपयोग वैज्ञानिक प्रणाली से खेती करने में करें तो देश की आर्थिक स्थिति ही सुधर जाए।

हमारी पंचवर्षीय योजना के कारण रोजगार बढ़ रहे है। शिक्षा और रोजगार में सम्बन्ध स्थापित करने के लिए बहुत कुछ करने की आवश्यकता है ।

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