उपचुनाव के नतीजे तय करेंगे मध्य प्रदेश का भविष्य?

चुनाव आयोग ने मध्य प्रदेश की सभी 28 सीटों पर उप चुनाव की तारीख का ऐलान कर दिया है. प्रदेश की इन सीटों पर 3 नवंबर को वोटिंग होगी और 10 नवंबर को नतीजे आएंगे. चुनाव की तारीख के साथ ही राजनीतिक गलियारों में तैयारियां जोर पकड़ ली हैं.


भोपाल: चुनाव आयोग ने मध्य प्रदेश की सभी 28 सीटों पर उप चुनाव की तारीख का ऐलान कर दिया है. प्रदेश की इन सीटों पर 3 नवंबर को वोटिंग होगी और 10 नवंबर को नतीजे आएंगे. 


चुनाव की तारीख के साथ ही राजनीतिक गलियारों में तैयारियां जोर पकड़ ली हैं. मध्यप्रदेश का यह उपचुनाव सबसे खास है क्योंकि पिछले 16 बरसों में महज 30 सीटों पर चुनाव हुए थे, लेकिन इस बार एक साथ 28 सीटों पर उपचुनाव होंगे.


 


यह उपचुनाव सरकार और बड़े नेताओं के भविष्य तय करेंगे. दोनों ही पार्टी एड़ी-चोटी का जोर इस चुनाव में लगाना चाहती हैं. बीजेपी जहां ज्योतिरादित्य सिंधिया के चेहरे पर चुनाव लड़ने का मन बना बैठी है तो वहीं कांग्रेस के सामने यह चुनौती है कि वह किन मुद्दों पर भाजपा व ज्योतिरादित्य सिंधिया को टक्कर दे पाएगी. 


 


मध्य प्रदेश राज्य में विधानसभा का गणित. 


मध्य प्रदेश में कुल विधानसभा सीट- 230           


बहुमत के लिए आवश्यकता -116


जो राजनैतिक दल या गठबंधन विधानसभा की 116 या उससे ज्यादा सीटें जीतेगी.


वो गठबंधन या दल मध्य प्रदेश की जनता के लिए आने वाले चुनाव तक नीति निर्धारण का कार्य करेगी व राज्य की संपूर्ण जिम्मेदारियों का पालन भी करेगी. 


क्या है अब तक की स्थिति?              


भारतीय जनता पार्टी (भाजपा)-107


भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस-88


बहुजन समाजवादी पार्टी (बसपा) - 2 


समाजवादी पार्टी (सपा) -1


अन्य / निर्दलीय विधायक - 4 


उपचुनाव के लिए रिक्त सीटें-


इन 28 सीटों पर होना है उपचुनाव* 


 


ग्वालियर-चंबल क्षेत्र -1. मुरैना 2. मेंहगांव 3.ग्वालियर पूर्व 4. ग्वालियर 5. डबरा 6. बमौरी 7. अशोक नगर 8. अम्बाह 9. पौहारी 10. भांडेर 11. सुमावली 12. करेरा 13. मुंगावली 14. गोहद 15. दिमनी 16. सुरखी


 


मालवा-निमाड़ क्षेत्र - 1. सुवासरा 2. मान्धाता 3. सांवेर 4. जौरा(कांग्रेस)* 5. आगर (भाजपा)* 6. बदनावर 7. हाटपिपल्या 8. नेपानगर 


 


अन्य क्षेत्र - 1. सांची (भोपाल) 2. मलहरा (छतरपुर) 3. अनूपपुर 4. ब्यावरा (राजगढ़)*


 


जौरा, आगर और ब्यावरा सीट के 3 विधायकों का असामयिक निधन हो चुका है.* 


 


अन्य 25 कांग्रेस विधायकों ने भाजपा में सदस्यता ले ली. जबकि तीन सीटों के विधायकों का आकास्मिक निधन हो गया है. जिस कारण 3 और सीटों पर उपचुनाव होंगे.*


क्या है भाजपा-कांग्रेस की जरूरतें?


उपचुनाव वैसे तो 28 सीटों पर होना है, लेकिन मध्य प्रदेश की सत्ता का भविष्य कुछ चुनिंदा सीटों के नतीजों से ही तय होना है.


चुनिंदा सीटें कैसे? 


 


भाजपा को उनके 107 विधायकों के अलावा 7 अन्य विधायकों का भी समर्थन प्राप्त है और उसे पूर्ण बहुमत के लिए 28 में से 9 सीटें जीतने की जरूरत है. वहीं दूसरी पार्टी कांग्रेस के पास इस वक्त 88 विधायक मौजूद है. और इस परिस्थिति में कांग्रेस को सरकार बनाने के लिए पूरी 28 सीटें जीतना जरूरी है. तो वहीं अगर बसपा या अन्य पार्टी 2 सीटों पर भी जीत हासिल करती है तो कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती है. खास बात ये है कि इन 28 सीटों में से 27 सीटों 2018 के चुनाव में कांग्रेस के विधायकों ने जीत हासिल की थी. 


 


ग्वालियर-चंबल पर रहेगी सबकी नज़र 


 


28 सीटों में से 16 सीटें ग्वालियर चंबल से ही आती है. जिसमे कांग्रेस-बीजेपी व तीसरी पार्टी बसपा जिसे कम नहीं आंका जा सकता, वहां कोई कमी नहीं छोड़ना चाहेंगी. खास बात यह भी हैं कि शिवराज के नए मंत्रिमंडल में 11 मंत्री ग्वालियर चंबल बेल्ट से ही आते हैं जिसमें 8 मंत्री सिंधिया गुट के हैं. इससे अंदाजा लगाया जा सकता हैं कि BJP-Scindia की हर पसंद को तव्वजो दे रहे हैं. जबकि भाजपा का नया राजनीतिक केंद्र अब ग्वालियर-चंबल को ही माना जा रहा है. क्योंकि यहीं से तय होगा कि सत्ता की कुर्सी पर कौन काबिज होगा?


भाजपा ने इन सीटों पर दी थी कांग्रेस को कांटे की टक्


1. कांग्रेस सरकार के समय रहे स्वास्थ्य मंत्री तुलसीराम सिलावट को राजेश सोनकर ने बहुत कांटे की टक्कर दी थीं सिलावट महज़ 2,945 वोट के अंतर से जीते थे.


2. मुंगावली से कांग्रेस महज 2136 वोटों से ही जीती थीं, कृष्णा पाल ने नज़दीक से टक्कर दी.


3. मान्धाता के विधायक नारायण पटेल खण्डवा ब्लॉक से कांग्रेस के एकलौते विधायक थे जिन्हें भाजपा के नरेंद्र सिंह तोमर ने टक्कर दी जीत का अंतर सिर्फ 1,236 वोट था. 


4. वही नेपानगर से भी भाजपा काफ़ी हद तक जीत के नज़दीक थी, कांग्रेस की सुमित्रा कसडकर सिर्फ 1264 वोटों से जीती.


5. सुवासरा से कांग्रेस विधायक रहे हरदीप सिंह डंग महज 350 वोट से जीते थे, आने वाले समय में यह सीट भाजपा के पास रहती हैं या जाती हैं चुनाव नतीजा ही बताएगा. 


कांग्रेस ने लिया राम का सहारा तो दूसरी तरफ बीजेपी अटल के नाम पर मार रही सेंध 


हाल ही में राम मंदिर भूमि पूजा के दिन कांग्रेस नेताओं ने राम का नाम लिया यह ही नहीं सुंदर कांड तक करवाया अपने कार्यालय पर राम का भव्य पोस्टर भी लगाया इसे चुनाव से जोड़कर देखा जा सकता हैं क्योंकि इन 28 सीटों पर हिन्दू बहुल लोग हैं.


 वहीं दूसरी ओर शिवराज ने चंबल प्रोग्राम वे का नाम बदल कर अटल बिहारी वाजपेयी चंबल प्रोग्राम कर दिया इससे पता चलता हैं कि शिवराज अटल के नाम से राजनीति व कांग्रेस राम नाम से लोगों के दिल मे जगह बनाना चाहते है


बसपा बिगाड़ेगी कांग्रेस-भाजपा का खेल? 


इस उपचुनाव में बसपा बड़ा क़िरदार निभा सकती हैं, इस बात को नज़रअंदाज़ भी नही किया जा सकता है कि ग्वालियर-चंबल में दलित मतदाताओं को काफ़ी निर्णायक माना जाता हैं यह ही नहीं यहां की दो सीटों पर बसपा 2018 विधानसभा चुनाव में प्रदेश में दूसरे नम्बर पर रही थीं. ग्वालियर चंबल की 16 में से 7 सीटों पर बसपा के प्रत्याशियो ने काफी निर्णायक व सम्मान जनक वोट हासिल किए थे.


 


 


 


वहीं कांग्रेस जिस तरह बसपा के नेताओं को अपनी पार्टी में ले रही हैं इससे बसपा कांग्रेस को टक्कर देना चाहती हैं बात भाजपा की करे तो अभी बसपा का समर्थन बीजेपी को हैं. इसी बात से हम अंदाज़ा लगा सकते हैं कि बसपा को इस उपचुनाव का गेम चेंजर माना जा सकता हैं. भले ही वह चुनाव न जीत सकें लेकिन दोनों पार्टियों के वोट ज़रूर काट सकती हैं.


 


 


 


 


 


 


 


 


 


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