मोदी सरकार 2.0: आर्थिक भ्रम, लगातार जारी आर्थिक संकट और अब आत्मनिर्भरता की चाह
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब अपने पिछले कार्यकाल के अंतिम दिनों में थे, तब से ही देश की अर्थव्यवस्था पटरी से उतरनी शुरू हो चुकी थी. जीडीपी का आंकड़ा गिरता जा रहा था. भ्रम की स्थिति थी. उनके सत्ता में आने के बाद साल भर अर्थव्यवस्था हिचकोले खाती रही. तभी कोरोना जैसा बड़ा संकट आ गया. एक साल पहले जब पीएम मोदी के नेतृत्व में दूसरी बार सरकार का गठन हुआ तो देश की अर्थव्यवस्था के सामने कई तरह की चुनौतियां थीं.मोदी सरकार 2.0 के एक साल में अर्थव्यवस्था की हालत खराबजीडीपी से लेकर निवेश तक गिरता रहा, बेरोजगारी चरम परअब कोरोना जैसा महासंकट अर्थव्यवस्था को गर्त में ले जाएगा
एक साल पहले जब पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में दूसरी बार सरकार का गठन हुआ तो देश की अर्थव्यवस्था के सामने कई तरह की चुनौतियां थीं. प्रधानमंत्री मोदी जब अपने पिछले कार्यकाल के अंतिम दिनों में थे, तब से ही देश की अर्थव्यवस्था पटरी से उतरनी शुरू हो चुकी थी. जीडीपी का आंकड़ा गिरता जा रहा था. भ्रम की स्थिति थी. उनके सत्ता में आने के बाद साल भर अर्थव्यवस्था हिचकोले खाती रही. तभी कोरोना जैसा बड़ा संकट आ गया, इस घने अंधेरे में पुराना दाग छिप गया, अब तो सामने आने वाले बड़े तूफान की ही बात हो रही है, पुरानी बात कौन करे.
मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में अर्थव्यवस्था को नोटबंदी और जीएसटी जैसे दो बड़े झटके लगे, जिसके कारण कारोबारियों में हताशा और असमंजस की स्थिति थी. लेकिन इसके बावजूद सत्ता में आने के बाद पीएम नरेंद्र मोदी ने 5 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बनाने की बात की.
नोटबंदी और जीएसटी के झटके का असर
2017-18 के दौरान नोटबंदी और जीएसटी की दोहरी मार झेलने के बाद अर्थशास्त्रियों ने अप्रैल-जून 2018 में उपभोग आधारित हल्की उछाल आने के बाद थोड़ी सी राहत की सांस ली थी, जब जीडीपी बढ़कर 8.2 फीसदी हो गई थी. उस समय ज्यादातर आर्थिक विश्लेषकों ने यह उम्मीद जताई थी कि नोटबंदी और जीएसटी के नकारात्मक प्रभाव से अर्थव्यवस्था उबर आई है, लेकिन छह महीनों के भीतर विकास की गति तेजी से कम होने लगी.