UPA सरकार की फोन बैंकिंग का फायदा उठाने वालों ने जानबूझकर नहीं चुकाए लोन- वित्त मंत्री

नई दिल्ली. कांग्रेस पार्टी पर पलटवार करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Finance Minister Nirmala Sitharaman) ने कहा कि जानबूझकर लोन नहीं चुकाने वाले यूपीए सरकार की ‘फोन बैंकिंग’ के लाभकारी हैं. मोदी सरकार (Modi Government) उनसे बकाया वसूली के लिए उनके पीछे पड़ी है. 50 शीर्ष जानबूझकर लोन नहीं चुकाने वाले (Wilful Defaulters) के लोन को बट्टे खाते में डाले जाने पर विपक्ष के आरोपों के जवाब में सीतारमण ने यह बात कही. इन डिफॉल्टरों के 68,607 करोड़ रुपये के लोन को तकनीकी रूप से बट्टे खाते में डाल दिया गया है.वित्त मंत्री ने मंगलवार देर रात एक के बाद एक ट्वीट किए. विपक्ष के आरोपों का जवाब देते हुए वह कांग्रेस पर हमलावर रही. उन्होंने कहा कि कांग्रेस लोगों को गुमराह कर रही है. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को आत्मावलोकन करना चाहिए कि क्यों उनकी पार्टी व्यवस्था की सफाई में कोई निर्णायक भूमिका निभाने में असफल रही


सीतारमण ने कहा, राहुल गांधी और कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला लोगों को गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं. वह कांग्रेस के मूल चरित्र की तरह बिना किसी संदर्भ के तथ्यों को सनसनी बनाकर पेश कर रहे हैं. उन्होंने कहा, कांग्रेस और राहुल गांधी को आत्मावलोकन करना चाहिए कि क्यों उनकी पार्टी प्रणाली की साफ-सफाई में कोई रचनात्मक भूमिका नहीं निभा सकी. ना सत्ता में और ना विपक्ष में रहते हुए, कांग्रेस ने भ्रष्टाचार को रोकने-हटाने और सांठ-गांठ वाली व्यवस्था को खत्म करने के लिए कोई भी प्रतिबद्धता जतायी है?


वित्त मंत्री ने कहा कि 2009-10 और 2013-14 के बीच वाणिज्यिक बैंकों ने 1,45,226 करोड़ रुपये के लोन को बट्टे खाते में डाला था. उन्होंने कहा, काश! गांधी (राहुल) ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से इस राशि को बट्टे खाते में डाले जाने के बारे में पूछा होता. उन्होंने उन मीडिया रिपोर्टों का भी हवाला दिया जिसमें रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा था कि अधिकतर फंसे लोन 2006-2008 के दौरान बांटे गए. अधिकतर लोन उन प्रवर्तकों को दिए गए जिनका जानबूझकर लोन नहीं चुकाने का इतिहास रहा है.


यूपीए सरकार की ‘फोन बैंकिंग’ का मिला लाभ


सीतारमण ने कहा, लोन लेने वाले ऐसे लोग जो लोन चुकाने की क्षमता रखते हुए भी लोन नहीं चुकाते, फंड की हेरा-फेरी करते हैं और बैंक की अनुमति के बिना सुरक्षित परिसंपत्तियों का निपटान कर देते हैं, उन्हें डिफॉल्टर कहते हैं. यह सभी ऐसे प्रवर्तक की कंपनियां रहीं जिन्हें संप्रग (कांग्रेस नीत पूर्ववती गठबंधन सरकार) की ‘फोन बैंकिंग’ का लाभ मिला.


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