महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की कुर्सी हिलाना साबित होगी बीजेपी की बड़ी गलती?

मुंबई
महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की सीएम कुर्सी बचेगी या जाएगी यह अब एक फैसले पर टिका है। विधान परिषद की सीट के लिए उद्धव को मनोनीत करने पर गवर्नर भगत सिंह कोश्यारी को मुहर लगानी है। लेकिन अब तक राज भवन की तरफ से कोई फैसला नहीं लिया गया है। राज्यपाल की तरफ से हो रही देरी के बाद अगर उद्धव को पद छोड़ना पड़ा तो बीजेपी पर इसका क्या असर पड़ सकता है, एक विश्लेषण:
बीजेपी के बहुत से समर्थकों को भी लगता है कि अगर कोरोना संकट के बीच उद्धव को सीएम पद से हटना पड़ा तो इससे वह सहानुभूति हासिल कर सकते हैं। मई का महीना सीएम ठाकरे के भविष्य के लिए अहम है। संवैधानिक बाध्यता के तहत अगर राज्यपाल कोटे से उद्धव को एमएलसी बनाने पर निर्णय नहीं होता है तो 27 मई के बाद उन्हें पद त्यागना पड़ेगा। बतौर सीएम उनका छह महीने का कार्यकाल 27 मई तक ही है। यानी इस तारीख से पहले उन्हें विधानसभा या विधान परिषद का सदस्य बनना जरूरी है। महा विकास अघाड़ी के नेताओं ने दो दिन पहले राज्यपाल कोश्यारी से मुलाकात करते हुए इस मुद्दे पर जल्द फैसला लेने की अपील की थी।


उद्धव पर फैसले में देरी से कोरोना वायरस से सबसे बुरी तरह प्रभावित महाराष्ट्र में संवैधानिक संकट खड़ा हो सकता है। सोशल मीडिया पर सक्रिय बीजेपी समर्थक दयानंद नेने का कहना है, 'मैं महसूस करता हूं कि इतने अहम हालात में उद्धव ठाकरे का इस मुद्दे पर विरोध करना बीजेपी के लिए भूल हो सकती है। यहां तक कि अगर गवर्नर उद्धव के नामांकन को खारिज कर देते हैं तो भी उद्धव ठाकरे को ही फायदा होगा। जनता की सहानुभूति उनके साथ होगी और बीजेपी को नुकसान होगा।'


राजनैतिक विश्लेषक प्रकाश आकोलकर का कहना है, 'बीजेपी का इस मुद्दे पर स्टैंड समझ से परे है। एक ऐसे वक्त में जब देश और महाराष्ट्र कोरोना महामारी से जूझ रहे हैं, ऐसे वक्त में राज्य को संवैधानिक संकट में झोंकना ठीक नहीं होगा। इससे यह संदेश जाएगा कि बीजेपी सत्ता के खेल में उलझते हुए ठाकरे सरकार को इलाज और राहत का काम करने में अड़ंगा डाल रही है।'
संविधान विशेषज्ञ उल्हास बापट का कहना है, 'हम संसदीय लोकतंत्र का पालन करते हैं। ऐसे सिस्टम में चुनी हुई सरकार की सलाह मानने के लिए गवर्नर बाध्यकारी हैं। इसलिए कैबिनेट की सिफारिश पर निर्णय लेने में देरी करना संवैधानिक रूप से अवैध और अनैतिक है।'

वरिष्ठ बीजेपी नेता और पूर्व मंत्री आशीष शेलार कहते हैं, 'शिवसेना अपनी नाकामी का हमें क्यों जिम्मेदार ठहरा रही है? मुख्यमंत्री के तौर पर ठाकरे की नियुक्ति के बाद शिवसेना ने अपने किसी एमएलसी से इस्तीफा क्यों नहीं लिया, जिससे उद्धव उस खाली सीट पर निर्वाचित हो जाते। उद्धव के कुर्सी संभालने के बाद विधान परिषद की दो सीटों के लिए चुनाव भी हुए थे, इन दोनों सीटों पर महा विकास अघाड़ी की जीत हुई थी। ठाकरे तब चुनाव लड़कर क्यों नहीं निर्वाचित हुए?'

शिवसेना के एक वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री का मानना है कि मुख्यमंत्री कार्यालय ने हालात को ठीक से डील नहीं किया। उन्होंने कहा, '9 अप्रैल को कैबिनेट की तरफ से उद्धव ठाकरे को एमएलसी के लिए मनोनीत करने का फैसला हुआ और इसे राज्यपाल ने तकनीकी आधार पर लौटा दिया। इसी वजह से दूसरी बार 27 अप्रैल को कैबिनेट मीटिंग हुई और एक बार फिर उद्धव को मनोनीत करने पर प्रस्ताव पास हुआ। राज्य की ब्यूरोक्रेसी को ज्यादा अलर्ट होना चाहिए और प्रस्ताव की तकनीकी खामियों के बारे में कैबिनेट को जानकारी देनी चाहिए थी।'
हालांकि शिवसेना मंत्री ने दावा किया संवैधानिक संकट शिवसेना के लिए सहानुभूति बढ़ा रहा है। मंत्री ने कहा, 'जिस तरह से कोरोना महामारी संकट को उद्धवजी ने संभाला है, उससे उनकी लोकप्रियता इस समय शिखर पर है। लोग उनका समर्थन कर रहे हैं। उनके नामांकन को खारिज कराने की कोशिशों से बीजेपी की बुरी छवि बनेगी। शिवसेना इससे और मजबूत होकर उभरेगी।'

शिवसेना के एक पदाधिकारी ने कहा कि पार्टी ने सभी विकल्प खुले रखे हैं। पदाधिकारी ने कहा, 'यह एक राजनीतिक जंग है, जिसे बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार तकनीकी और कानूनी मामला बना रही है। हम कानूनी और दूसरे विकल्पों पर भी विचार कर रहे हैं।


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