हमसे क्या भूल हुई जो यह सजा हमको मिली 


 वर्तमान परिस्थिति को देखते हुए बड़ा आश्चर्य होता है कि लॉक डाउन से पूर्व हमारी  केंद्र सरकार व राज्य सरकार को जरा भी ख्याल  नहीं आया की इतना बड़ा तबका जो कि अर्थव्यवस्था की रीढ़ कहलाता है महामारी के प्रकोप के साथ साथ पलायन का दर्द और  रोजी रोटी के लिए तरस जाएगा मौजूदा हालात एवं महामारी से बचने के लिए लॉक डाउन अनिवार्य था पर सुनियोजित ढंग से यह कार्य किया जाता तो शायद यह भयावह स्थिति नहीं बनती आज हर वह  व्यक्ति घर की तरफ रुख कर चुका है और पैदल इधर-उधर घूम रहा है अपनी नम  आंखों से यही पूछ रहा है कि हमसे क्या भूल हो गई क्या हमारी  जान की कीमत कुछ नहीं है आज मन की बात में पीएम मोदी ने भारतीयों से क्षमा मांगी और कहा यह कदम उठाना आवश्यक था तो क्या इन लोगों के हिस्से  मैं बेबसी थी राज्य सरकारों  ने भी अब इन पलायन करने वाले लोगों के हित में कुछ फैसले लिए हैं अगर सब सुनियोजित ढंग से होता तू कई मजदूरों की जान बच जाती और उन्हें दर-दर नहीं भटकना पड़ता हालांकि क्षमा वीरों का भूषण होता है परंतु वर्तमान परिस्थिति में क्षमा की कोई गुंजाइश नहीं है हर व्यक्ति की जान बहुत कीमती है और जो भी फैसले लिए जाते हैं वह हर भारतीय के लिए जरूरी होते हैं ऐसे में केंद्र और राज्य सरकारों ने पहले से कोई रणनीति क्यों नहीं बनाई आनन-फानन में नई रणनीति बनाई जा रही है शायद तब तक देर ना हो जाए और यह पलायन करने वाले भूख प्यास  के साथ साथ कोरोना  के संक्रमण से ग्रस्त न  हो जाएं  यह  परिस्थितियां यह सवाल खड़ा करती है कि क्या समय रहते इस बड़ी संख्या के पलायन करने वालों का कोई स्थाई समाधान निकाल पाएंगे


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