अमानवीयता से भरा मंजर, प्रवासी मजदूरों की अंतहीन व्यथा

        आज संपूर्ण विश्व कोरोनावायरस जैसी महामारी की विभीषिका को झेल रहा है जिसके के खतरे को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशभर में लॉकडाउन की घोषणा कर दी  थी अब वही कोरोना वायरस महामारी प्रवासी मजदूरों के लिए अपने घर जाने के सभी रास्ते बंद कर देती है। काम और रहने-खाने की व्यवस्था की कमी की वजह से हजारों की संख्या में मजदूर लॉकडाउन के ऐलान के ठीक बाद अपने घरों से निकल गए थे। जब मंजिल तक जाने के लिए उन्हें कोई वाहन नहीं मिला तो सभी ने पैदल ही कूच करने का फैसला किया। लेकिन उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पंजाब के ज्यादातर गांवों में लाठी-डंडों से लैस ग्रामीण ही उन्हें घुसने नहीं दे रहे। सभी इन प्रवासी मजदूरों से दूरी बनाने में कड़ाई बरत रहे हैं। आज आलम यह है कि उनके ही गांव वाले उन्हें प्रवेश करने से रोक रहे हैं और हथियारों से लैस होकर सीमा से अंदर नहीं जाने दे रहे हैंऐसे में अपने घर के दरवाजे बंद रोजगार का अभाव रोटी की समस्या क्या इनको मिल पाएगी क्या समय रहते सरकार इनके लिए कोई उपयोगी कदम उठाएगी या फिर यूं ही दर दर भटक कर बिना कोरोना कहीं मौत के ग्रास हो जाएंगे जहां एक ओर संपूर्ण विश्व इस महामारी से एकजुट होकर लड़ रहा है वही समय रहते इन बेघर बेसहारा को भी रोजी रोटी और आसरा  मिलना चाहिए समाज के जिम्मेदार व्यक्तियों और राजनेताओं को शासन प्रशासन को भी इस ओर  ध्यान देना होगा इन परिस्थितियों को देखते हुए आज मुझे एक फिल्म दस लाख  के  गाने की चंद लाइने याद आती हैं'' चाहे लाख करो तुम पूजा तीरथ करो हजार दीन दुखी को ठुकराया तो सब कुछ है बेकार गरीबों की सुनो वो तुम्हारी सुनेगा, इन बेघर बेचारों की किस्मत है तुम्हारे हाथ में कहीं इनसे इनका साथ ना छूट जाए अनाथो कि आस न  टूट जाए, कहां जाएंगे मुकद्दर के मारे यह बुझते दिये टिमटिमाते सितारे l


 


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