संशोधन बिल लाएगी सरकार

संशोधन बिल लाएगी सरकार, 25 हजार फीस में कितनी भी रकम की मानहानि का दावा कर सकते हैं
जयपुर. प्रदेश में मानहानि केस दायर करने के मामलों में अब राज्य सरकार अधिकतम कोर्ट फीस का दायरा तय करने जा रही है। अब कोई एक करोड़ रुपए का दावा दायर करता है तो उसे कोर्ट फीस के तौर पर पांच प्रतिशत यानी पांच लाख रुपए जमा नहीं करवाने होंगे। बल्कि, ज्यादा से ज्यादा 25 हजार रुपए ही कोर्ट फीस चुकानी होगी। मुख्यमंत्री की बजट घोषणा के साथ ही विधि एवं विधिक कार्य विभाग ने राजस्थान कोर्ट फीस एवं ड्यूटी एक्ट में बदलाव का ड्राफ्ट तैयार कर लिया है। विधि विभाग के अधिकारी काम कर रहे हैं और माना जा रहा है कि बजट सत्र में इस पास करवा लिया जाएगा। ताकि, संशोधित कानून तत्काल लागू किया जा सके। 
मानहानि के लिए सजा का प्रावधान : मौजूदा कानून में मानहानि साबित होने पर भारतीय दंड संहिता की धारा 500 के अंतर्गत दो वर्ष तक का सादा कारावास और जुर्माना का भी प्रावधान किया गया है। यह जमानती अपराध है। साधारण परिवाद द्वारा आपराधिक मामलों को दर्ज किए जाने हेतु मजिस्ट्रेट को संज्ञान दिया जाता है।
 मुख्यमंत्री ने कहा था कि आज मानहानि के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं। ऐसे मामलों को लेकर वर्तमान में दावे की रकम के आधार पर कोर्ट फीस लगती है, जो बहुत ज्यादा होती है। इससे कई लोग दावा ही नहीं कर पाते हैं। मानहानि का दावा करने में लोगों को राहत पहुंचाने के लिए कोर्ट फीस की अधिकतम सीमा को 25 हजार रुपए किया जाना प्रस्तावित है। सीएम की घोषणा को लागू करने के लिए राजस्थान कोर्ट फीस एवं ड्यूटी एक्ट में संशोधन करना होगा। विधि विभाग ने संशोधित बिल का ड्राफ्ट बना लिया है। 
उधर, कानूनविदो का मानना है कि राज्य सरकार के मानहानि केस दायर करने की अधिकतम सीमा तय करने के बाद आमजन भी मानहानि का केस दायर कर पाएंगे। अधिवक्ता दीपक चौहान का कहना है कि जो लोग आर्थिक रूप से कमजोर हैं और मानहानि की अधिक कोर्ट फीस होने के कारण मानहानि का केस दायर नहीं कर पाते थे वे अब मानहानि के केस दायर कर पाएंगे। इससे आमजन की पहुंच में भी मानहानि का कानून आ गया है। 
 राज्य सरकार की निश्चित तौर पर आमजन के लिए यह अच्छी पहल है, लेकिन यह भी ध्यान रखना होगा कि राजनेता व अफसर इस कानून का कहीं दुरुपयोग नहीं करें। अधिवक्ता नवीन कस्वां का भी मानना है कि जिस तरह मानहानि केसों में राज्य सरकार ने कोर्ट फीस की अधिकतम सीमा तय की है वैसे ही अन्य सिविल केसों में भी अधिकतम सीमा तय करें जिससे कि सिविल केसों में पक्षकारों को राहत मिल सके। कानून विदों का मानना है कि अगर इस कानून को लेकर लोगों की मंशा सही है तो यह काफी अच्छा हो सकता है।


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