बिहार: NRC/NPR के ख़िलाफ़ विधानसभा में प्रस्ताव पारित

बिहार विधानसभा के बजट सत्र के दूसरे दिन मंगलवार को सदन ने बिहार में एनआरसी लागू नहीं किये जाने को लेकर सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया है.


इसके साथ ही राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) पर भी संशोधन प्रस्ताव पारित किया गया है.


इसके तहत एनपीआर के वर्तमान प्रारूप को नकारते हुए राज्य में एनपीआर वर्ष 2010 में तैयार प्रारूप के आधार पर किये जाने का प्रस्ताव भी पारित किया गया है.


अब राज्य सरकार अपने इस दोनों प्रस्ताव को केंद्र सरकार के समक्ष भेजेगी.


दरअसल सदन में प्रस्ताव पारित होने के पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा, "प्रदेश में एनआरसी लागू करने का न तो कोई मतलब है और न ही ज़रुरत. हमलोग मिलकर चलेंगे और किसी भी क़ीमत पर समाज के किसी भी तबक़े की उपेक्षा नहीं चाहेंगे और ऐसा कभी नहीं होगा".


उन्होंने कहा, "मुझे नहीं पता कि मेरे माता का जन्म कब हुआ था. कितने लोगों को अपने माता-पिता का जन्मदिवस याद होगा. बिहार में जन्म दिन को लेकर चर्चा होती है कि 1934 के भूकंप के इतने दिन पहले या बाद में हुआ था. यहाँ के गाँवों में साल के संदर्भ में जाड़ा, गरमी और बरसात के बारे में चर्चा होती है".


सुप्रीम कोर्ट तय करेगी कानून संवैधानिक है या नहीं


उन्होंने सीएए पर अपना पक्ष रखते हुए कहा, "इसमें बांग्लादेश, अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान के अल्पसंख्यकों की बात कही गयी है. यह केंद्रीय क़ानून है और संविधान से जुड़ा है जो सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष है. यह वहीं से तय होगा कि सीएए संवैधानिक है या असंवैधानिक".


प्रस्ताव पारित होने पर एक ओर जहां सत्तारूढ़ एनडीए के घटक दल भारतीय जनता पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच चर्चाओं का दौर जारी है तो उधर विपक्ष इस प्रस्ताव को अपनी जीत बता रहा है.


पूर्व उपमुख्यमंत्री और विरोधी दल के नेता तेजस्वी प्रसाद यादव इसे संविधान की रक्षा बता रहे हैं.


भाजपा के वरिष्ठ नेता और विधान परिषद के सदस्य सच्चिदानंद राय का कहना है कि पार्टी के आम सदस्य और कार्यकर्त्ता सकते में हैं.


वे कहते हैं, "एनआरसी भाजपा के संकल्प में है. इस बात को कई बार हमारे शीर्ष नेतृत्व ने दुहराया है और वह इसे लागू करने के पक्ष में हैं. कब लागू होगा इस संबंध में समय का निर्धारण नहीं हुआ है. लेकिन, आज अचानक जिस तरह से सदन के अंदर यह बात उठी उससे साधारण भाजपा कार्यकर्त्ता अचंभित हुआ है. हमलोग तो बिलकुल समझ ही नहीं पाए कि यह क्या हो रहा है. जबतक समझते प्रस्ताव पारित हो चुका था".


जब एनआरसी पार्टी के संकल्प में है तो उसका पार्टी ने सदन के भीतर विरोध क्यों नहीं किया और पार्टी ने इसपर अपनी मौन सहमती कैसे दे दी.


इस पर सच्चिदानंद राय ने कहा, "कुछ मंत्री शुरू में विरोध के लिए उठे, लेकिन इसके बाद जब हमारे चुने हुए नेता ने इसके समर्थन में कह दिया तो एक अनुशासित कार्यकर्ता होने के नाते हमें अपने नेतृत्व के फ़ैसले को स्वीकार करना ही था. मैं नहीं समझता कि राष्ट्रीय नेतृत्व की सहमति इसको लेकर बनी होगी. मेरे साथ-साथ पार्टी के कार्यकर्ता भी सकते में हैं".


पवन वर्मा ने किया स्वागत


उधर हाल के दिनों में एनआरसी, एनपीआर और सीएए के मुद्दे पर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से अलग राय रखने वाले जदयू के पूर्व महासचिव पवन वर्मा ने एनआरसी और एनपीआर को लेकर विधानसभा में पारित प्रस्ताव का स्वागत किया है.


उन्होंने कहा, "बिहार में एनआरसी को लागू नहीं करना और उसका सार्वजनिक रूप से ऐलान करना एक सकारात्मक क़दम है. वहीं एनपीआर के पुराने प्रारूप को क़ायम रखना भी सकारात्मक पहल है. पर हम यह भी मानते हैं कि जब तक केंद्र सरकार एनपीआर को एनआरसी के लिए पहला क़दम मानती है तब तक एनपीआर किसी भी प्रारूप में नहीं होना चाहिए. साथ ही हम समझते हैं कि जदयू और नीतीश कुमार का नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए) का समर्थन ग़लत था ".


उधर जदयू के सांसद और प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह पार्टी के पूर्व महासचिव पवन वर्मा से असहमति जताते हैं.


वह कहते हैं, "किसी की अभिव्यक्ति से हमें कोई मतलब नहीं है. बिहार में अपराध, भ्रष्टाचार और सांप्रदायिकता के ख़िलाफ़ पार्टी का दृष्टिकोण स्पष्ट है. हमारा संदेश पहले से ही साफ़ है और मानते हैं कि सबको साथ लेकर चलना चाहते हैं और सबके साथ मिलकर ही चलने से समाज और बहुजन का कल्याण हो सकता है."


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