न्यू सिविल अस्पताल में मरीजों को दवाई वितरण मैं मनमर्जी

सूरत.


न्यू सिविल अस्पताल में मरीजों को दवा वितरण खिड़की से सिर्फ एक-दो दवाइयां मिलती हैं, उन्हें अन्य महंगी दवाइयां निजी मेडिकल स्टोर से खरीदनी पड़ती हैं। मरीज सेवा समिति ने मरीजों की तकलीफ दूर करने के लिए मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजा है। समिति ने अस्पताल में ठेके पर कार्यरत कर्मचारियों को न्यूनतम वेतन देने का मुद्दा भी उठाया है।


दक्षिण गुजरात के सबसे बड़े न्यू सिविल अस्पताल में मरीजों को तरह-तरह की समस्याओं से जूझना पड़ता है। विभिन्न जिलों से ओपीडी में आने वाले गरीब-मध्यम वर्ग के मरीजों को पांच-छह में से दो-तीन दवाइयां ही अस्पताल की दवा वितरण खिड़की से मिलती हैं। अन्य दवाएं निजी मेडिकल स्टोर से खरीदनी पड़ती है। सर्दी के मौसम में होने वाली सामान्य बीमारियों के लिए जरूरी दवाएं भी अस्पताल के मेडिकल स्टोर में उपलब्ध नहीं हैं।


मरीज सेवा समिति के प्रमुख सुभाष झाड़े ने मरीजों की तकलीफ को देखते हुए अस्पताल के मेडिकल स्टोर में दवाओं का स्टॉक बढ़ाने के लिए मुख्यमंत्री विजय रूपाणी को ज्ञापन भेजा है। झाड़े ने बताया कि सरकारी अस्पताल आने वाले मरीज तथा उनके रिश्तेदार आर्थिक रूप से कमजोर होते हैं। गंभीर बीमारियों के लिए जरूरी एंटी बायोटिक दवाइयां नहीं मिलने से गरीब-मध्यम वर्ग के मरीजों को मुश्किल होती है।


महंगी दवाइयां अस्पताल के मेडिकल स्टोर में नहीं मिलने पर कई गरीब मरीज बिना दवाई लिए चले जाते हैं। झाड़े के मुताबिक अस्पताल में स्टाफ की कमी के कारण मौजूदा स्टाफ पर कार्य का भार बढ़ गया है। ट्रोमा सेंटर में एक महीने से जिले के प्राथमिक और सामूहिक स्वास्थ्य केंद्रों से मेडिकल ऑफिसर को डेप्यूटेशन पर नियुक्त कर काम चलाया जा रहा है।


ठेके पर कार्यरत कर्मचारियों को न्यूनतम वेतन नहीं मिलने से वह आर्थिक तंगी का सामना कर रहे हैं। ठेकेदार सरकार को झूठी रिपोर्ट देकर कर्मचारियों को तय वेतन से कम वेतन दे रहा है। सरकार से आउटसोर्स कर्मचारियों की जांच के लिए कमेटी बनाने की मांग की गई है। झाड़े ने बताया कि ओवरटाइम के नाम पर पसंद के सर्वेन्ट को परिसर में बगीचों में घास काटने के लिए लगाया जाता है। दूसरी तरफ स्टाफ की कमी के कारण मरीज के परिजन स्ट्रेचर खींचते या लेबोरेटरी में नमूने पहुंचाते दिखाई देते हैं।


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