भोपाल की टेकरी गुरुद्वारा साहब में 500 साल पहले आए थे गुरुनानक देव


गुरु नानक देव के 550वें प्रकाश पर्व के उपलक्ष्य में हमीदिया रोड, नानकसर गुरुद्वारा में 12 नवंबर को कीर्तन दरबार सजेगा और रागी जत्थे के विद्वान गुरुओं के शौर्य की गाथाओं का वर्णन करेंगे। गुरुग्रंथ साहिब के समक्ष मत्था टेकने के साथ ही अरदास की जाएगी। दीवान सजेगा और लंगर भी होगा। सोमवार को पिपलानी गुरुद्वारा में सिख समुदाय के हजारों लोग एकत्र हुए और उन्होंने गुब्बारे उड़ाकर उल्लास मनाया गया।  
इस दौरान सर्वाधिक आस्था व आकर्षण का केंद्र ईदगाह हिल्स स्थित टेकरी गुरुद्वारा रहेगा, जहां 500 साल पहले भारत भ्रमण के दौरान गुरुनानक देव आए थे। उनके चरण चिह्न यहां एक पत्थर पर स्मृति के रूप में आज भी मौजूद हैं। प्रकाश पर्व पर चरण स्थली पर दीप प्रज्ज्वलित किए जाएंगे। कमेटी के सचिव अमरीक सिंह ने बताया कि शाहजहांनाबाद रेजीमेंट रोड स्थित गुरुद्वारा से कीर्तन चल समारोह निकाला जाएगा, जो विभिन्न मार्गों से होता हुआ हमीदिया रोड नानकसर गुरुद्वारा पहुंचेगा। 12 नवंबर को कीर्तन दरबार व दीवान सजने के साथ ही कई अन्य आयोजन होंगे।
गुरुद्वारा प्रबंध कमेटी के संस्थापक व प्रथम अध्यक्ष सरदार गुरुबख्श सिंह के बेटे सरदार तेजकुलपाल सिंह पाली बताते हैं कि गुरुनानक देव भारत यात्रा के दौरान भोपाल आए थे। तब वे यहां ईदगाह टेकरी पर कुछ समय रुके थे। मेरे पिता बताते थे कि यहां एक कुटिया में गणपतलाल नाम का व्यक्ति रहता था, जिसे कोढ़ था। पीर जलालउद्दीन के कहने पर वह उस समय यहां आए गुरुनानक देव से मिला और उनके चरण पकड़ लिए। 
आज भी पहुंचती हजारों की भीड़ 
गुरुजी ने अपने साथियों से पानी लाने को कहा तो वे पानी खोजने निकल गए, लेकिन आसपास पानी नहीं मिला तो उन्होंने फिर से भेजा। इस बार उन्हें यहां एक जल स्रोत फूटता दिखाई दिया। इस जल को उन्होंने गणपत के शरीर पर छिड़का तो वह बेहोश हो गया। जब उसकी आंख खुली तो नानकजी वहां नहीं थे, लेकिन वहां उनके चरण बने दिखाई दिए और गणपतलाल का कोढ़ भी दूर हो चुका था। वे कहते हैं कि इसका उल्लेख दिल्ली व अमृतसर के विद्वानों व इतिहासकारों ने भी कई जगह किया है। 
भोपाल नवाबों ने दी थी गुरुद्वारा के लिए जमीन
प्रबंधक कमेटी के वर्तमान अध्यक्ष परमवीर सिंह ने बताया कि सरदार गुरुबख्श सिंह ने नवाबी रियासत में ही इस जगह को गुरुद्वारा के लिए ले लिया था। उन्होंने बताया कि गणपतलाल की कुटिया स्थली, जल स्रोत कुंड व चरण चिह्न अब भी मौजूद हैं, जिन्हें कवर्ड कर संरक्षित किया जा चुका है। यह स्थान गुरुद्वारा बावली साहब रामनगर के नाम से भी जाना जाता है।


Popular posts from this blog

शुजालपुर *कुर्सी तोड़ टी.आई रतन लाल परमार ऐसा काम ना करो ईमानदार एस.पी को बदनाम ना करो*

ट्रांसफर नीति पर अपने ही नियम तोड़ रहा एनएचएम ऑनलाइन की जगह ऑफलाइन किए कम्नूटी हेल्थ ऑफिसर के ट्रांसफर

फल ठेले बाले ने नपा सीएमओ पर बरसाए थप्पड़, कर्मचारियों को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा वीडियो वायरल