आखिर कब तक मरीज काल का ग्रास बनेंगे

              
इंदौर के आँख फोड़वा काण्ड पर आगे से ऐसी दुर्घटना न हो इसलिए सरकार को स्थायी व्यवस्था कर अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करना चाहिए।
खनिज निगम के पूर्व उपाध्यक्ष श्री गोविन्द मालू ने कहा स्वास्थ मंत्री ने आज पीड़ितों से मिलकर सदाशयता दिखाई यह जिम्मेदारी का उनका भाव है, लेकिन स्थानीय कार्यक्रम अधिकारी क्या करते रहते हैं, कई बार बड़े बड़े ऑपरेशन केम्प लगते हैं उनकी व्यवस्था निरापद है या नहीं?  इंफेक्शन फैलने का खतरा तो नहीं और निजी अस्पतालों के ओ.टी.में व्यवस्थाएं इंफेक्शन मुक्त है कि नहीं यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए,यह जिम्मेदारी प्रशासन के जिम्मेदार तंत्र की है।
चिकित्सकों की जिम्मेदारी से उन्हें भी कतई मुक्त नही किया जा सकता।
श्री मालू ने कहा कि"आज मरीज और उनके परिजनों को निजी अस्पताल अपने ही अस्पताल से दवा खरीदने को बाध्य करते है,कई चिकित्सक तो दवा का नाम नहीं लिखकर ऐसा "कोड़ वर्ड" लिखते है कि वह किसी दवा दुकान वाला समझ ही नहीं सकता मजबूरन उन्हें बताए गए दवा विक्रय केंद्र से ही दवा खरीदने को बाध्य किया जाता है।ऐसे कई बड़े रसूखदार अस्पताल भी हैं,जिससे आम गरीब मध्यमवर्गीय व्यक्ति पर इलाज का बोझ तिगुना हो जाता है।एक इंजेक्शन दवा मार्केट में जँहा 600 ₹ मे मिलता है उसी का ये अस्पताल 2800 ₹ तक वसूल करते हैं ऐसी लूट बन्द करने का काम भी शासन-प्रशासन का ही है 


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