क्रिकेट

नियम और भाग्य ने मिलकर रची इंग्लैंड की जीत...!
अजय बोकिल
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'न भूतो न भविष्यति।' यह जुमला शायद ऐसे ही दुर्लभ क्षणों के लिए बना है। यूं खेलों में रोमांच होता है, लेकिन यहां तो रोमांच ने ही खेल का रूप धर लिया था। एक लंदन शहर था, लेकिन एक ही तारीख और मौसम में उसमें दो दिल अलग --अलग धड़क रहे थे। इस मायने में 15 जुलाई की तारीख खेलों के इतिहास सुनहरे अक्षरों में दर्ज हो गई है। एक तरफ ऐतिहासिक लाॅर्ड्स के मैदान पर आईसीसी वर्ल्ड कप में इंग्लैंड की ‍अविश्वसनीय-सी लगने वाली जीत तो दूसरी तरफ इसी शहर के दूसरे सिरे पर विम्बलडन के ऐतिहासिक फायनल में नोवाक जोकोविच ने 4 घंटे 57 मिनट चले घनघोर संघर्ष में दिग्गज रोजर फेडरर को मात दे दी। जोकोविच ने कहा कि यह उनके टेनिस कॅरियर का 'मोस्ट मेंटली डिमांडिंग' मैच था। खेल के उन दोनो मैदानों पर इंसानी जिद, जीतने की अदम्य इच्छा और प्रयत्न की पराकाष्ठा प्रतिस्पर्द्धा कर रही थीं। खेल प्रेमी भी मानो दो खेमो में बंट गए थे। उधर टेनिस के पाॅइंट गिनने वाले इधर विकेटों और रनो का हिसाब भी रख रहे थे। दोनो तरफ उत्कंठा चरम पर थी कि आखिर खिताब किसके हाथ लगेगा? लेकिन क्या मजाल ‍कि नतीजा तुरंत सामने आता। जब लगता कि ये जीता, तब मैच 'टाइ' होने की खबर आती। यानी‍ फिर जीरो से शुरूआत। और फिर जीतने के लिए खुद को फिर से झोंक देना।
जीवन में ऐसे 'लाइव' मुकाबले कभी-कभार ही देखने को मिलते हैं, जब अपन जैसे खेलों में कम रूचि रखने वाले भी किसी जादूगर के कमाल की तरह मुग्ध होकर एक-एक रन, विकेट और बाॅल का हिसाब करने लगें। आईसीसी वर्ल्ड कप में मेजबान इंग्लैंड और न्यूजीलैंड के बीच फायनल मुकाबला कुछ इसी दर्जे का था। जिसने लाइव नहीं देखा, उसकी बदकिस्मत। क्या नहीं था, इस मैच में। हर रन, हर बाॅल, हर कैच, हर फील्डिंग, हर शाॅट, अंपायर का हर इशारा और हर खिलाड़ी के चेहरे और बाॅडी का एक -एक भाव मानो रोमांच और थ्रिल से भरी एक कविता थी। मैच के सेकंड हाफ में जिस तरह चेजिंग की जानलेवा स्पर्द्धा हुई, उसने 'चेजिंग' शब्द को भी एक नया आयाम दे दिया। लग रहा था कि न्यूजीलैंड की ताकतवर टीम इंग्लैंड की टीम के साए को भी बड़े शातिराना तरीके से फालो कर रही है। यानी तुम जहां-जहां, हम वहां-वहां। हर अोवर के बाद लग रहा था कि अब मैच न्यूजीलैंड के कब्जे में है तो अगले ही अोवर में यह अहसास इंग्लैंड के पाले में महसूस होता था। गोया कोई भी टीम हारना नहीं चाहती थी। न्यूजीलैंड के बाॅलरों ने मैच जीतने के ‍िलए जी जान लगाई तो उधर इंग्लैंड के लिए दीवार बने बेन स्टोक्स ने पुछल्ले बल्लेबाजों के बूते मैच को 'टाइ' तक ला दिया। फिर वही सौ टके का सवाल कि कौन जीतेगा? इंग्लैंड टीम के कप्तान इयान माॅर्गन और न्यूजीलैंड टीम के कप्तान विलियम्सन के चेहरों पर आती धूप छांव बता रही कि पूरे खेल की आत्मा 'टाॅम एंड जेरी' में बदल चुकी है। जीते कोई भी लेकिन हारना कोई नहीं चाहता।
फायनल मैच 'टाइ' होने के बाद 'सुपर अोवर' से फैसला होना था। ठीक उसी तरह जैसे कि हाॅकी में पेनाल्टी स्ट्रोक या फुटबाॅल में पेनाल्टी किक से होता है। इसमे जो कर गया, सो तर गया। लेकिन जो डर गया सो मर गया। 'सुपर अोवर' की पहली बैटिंग इंग्लैंड को ‍मिली। बल्लेबाजों ने 1 अोवर में 15 रन ठोंक दिए। जिसमें 1 अोवर थ्रो की बदौलत मिले 6 रन भी शामिल थे। न्यूजीलैंड को खिताब अपने नाम करने के लिए एक रन ज्यादा यानी 16 रन चाहिए थे। इधर इंग्लैंड के अश्वेत गेंदबाज जोफ्रा आर्चर के लिए यह अग्नि परीक्षा थी कि वह न्यूजीलैंड की बल्लेबाजी के तूफान को अपनी सधी गेंदों से कैसे रोक पाते हैं। न्यूजीलैंड के बल्लेबाज भी अभिमन्यु की तरह फील्डिंग का चक्रव्यूह भेदना जानते थे। उन्होंने खुद को दांव पर लगाया भी। लेकिन आखिरी रन बनाने के चक्कर में सुपर अोवर भी टाइ हो गया। फिर वही 'ढाक के तीन पात' वाली स्थिति। दुनिया भर के क्रिकेट प्रेमियों का बीपी हाई कि अब क्या होगा। लेकिन जहां अनुमानों की सरहदें खत्म होती हैं, वहां नियमों का निर्जन इलाका शुरू होता है। अंपायरों ने इस अभूतपूर्व स्थिति को उस नियम से सुलझाया, जिसके मुता‍िबक जिस टीम ने मैच में ज्यादा चौके- छक्के ठोके, वही जीत की हकदार होती है। इस‍ ‍िनयम के खांचे में इंग्लैंड टीम फिट बैठी और बीते 44 सालों से अपने ही जाए खेल का सरताज बनने की हसरत पूरी की। हालांकि सुपर अोवर में हुए अोवर थ्रो में अंपायरों द्वारा दिए गए 6 रनो पर विवाद हो रहा है। कई जानकारों का कहना है ‍िक नियमानुसार इंग्लैंड को 6 की जगह 5 रन ही दिए जाने चाहिए थे। यही 'गलत' रन इंग्लैंड की जीत में मददगार बना।
हालांकि ऐसे तकनी‍की विवादों का महत्व किताबी ज्यादा होता है। इंग्लैंड जीती यानी जीती। न्यूजीलैंड जीत की देहरी पर मत्था टेकने के बाद भी हारी यानी हारी। कुछ खेल प्रेमियों का मानना है कि जीत की असल हकदार न्यूजीलैंड ही थी, उसे इंग्लैंड ने नहीं, नियमों ने हराया है। दरअसल खेल हो या युद्ध, तमाम तैयारियों, प्रयत्नों और दांव-पेचो के बाद भी अंतिम नतीजों का फैसला उस एक शब्द भाग्य या नियति से होता है। वरना हार और जीत दोनो शब्दों में दो-दो अक्षर ही हैं। लेकिन भावनात्मक रूप से दोनो में मीलों का फासला है। एक क्षण होता है, जब शायद नियम और नियति एकाकार हो जाते हैं। इसीलिए एक अोवर थ्रो ने इंग्लैंड की जीत की पटकथा रच दी तो एक थ्रो ने सेमीफायनल में भारत की हार का शोकगीत लिख दिया।
विश्व कप के नाटकीय फायनल मैच में मानो नियम ने ही नियति का रूप धरा। इसीलिए सक्षम टीम होने पर भी न्यूजीलैंड केवल रनर-अप ही रह सकी। यही भाग्य है। भाग्य वह भी है, जब जोकोविच ने जी-जान लड़ा कर तीन बार 'टाइ ब्रेक' के बाद विम्बलडन कप पांचवी बार अपने नाम किया। हालांकि कुछ लोगो का मानना है कि जीतना फेडरर को चाहिए था। भाग्य वह भी है, जब विश्व कप क्रिकेट के फायनल मुकाबले में एक युवती ने अपनी एडल्ट वेब साइट के प्रमोशन के लिए बीच मैदान में ही निर्वस्त्र होने की नाकाम कोशिश करके कुछ ही क्षणों में इंस्टाग्राम पर लाखों हिट्स ले लिए। इसी भाग्य ने वर्ल्ड कप के सुपर अोवर को इंग्लैंड के 'शैम्पेन अोवर' में बदल दिया। वो शैम्पेन जिसका नशा खेल प्रेमियों के दिलो-दिमाग पर अभी भी तारी है और न जाने कब तलक रहेगा..!
'राइट क्लिक'
( 'सुबह सवेरे' में दि. 16 जुलाई 2019 को प्रकाशित)


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