राकेश अचल
मै लेखक हूँ इसलिए मुझे हर पक्ष पर लिखने की आजादी है । यदि मै नेताओं,न्यायाधीशों,अभिनेताओं,खिलाडियों पर लिख सकता हूँ तो लफंगों पर भी लिख सकता हूँ ,हालांकि लफंगे इस काबिल नहीं होते की उनके बारे में कुछ लिखा जाये । लफंगे आखिर लफंगे होते हैं ,लेकिन लफंगों की पहचान करना आसान काम नहीं है। लफंगे किस रूप में मिल जाएँ ,कोई नहीं जानता ?
लफंगा ‘ संज्ञा ‘ है या सर्वनाम,क्रिया है विशेषण ये आप तय करें ,मै तो इतना जानता हूँ कि ये शब्द चुभने वाला है। लफंगा शब्द का इस्तेमाल अक्सर लंपट , व्यभिचारी , दुश्चरित्र ,शोहदा , आवारा , और कुमार्गी के लिए कुमार्गी के लिए किया जाता है ।आम बोलचाल का शब्द है लफंगा । इस शब्द का इस्तेमाल पहले संसद में भी हो चुका है ,किन्तु अब इसे असंसदीय घोषित कर दिया गया है ,इसलिए ये शब्द संसद में सुनाई नहीं देता । सड़क पर इस शब्द का इस्तेमाल सरे-आम किया जाता है और आम आदमी ही इसका इस्तेमाल करता है। ख़ास आदमी इस शब्द को अपनी जबान पर भी नहीं लाते।
लफंगा शब्द मुझे भी चुभता है इसलिए मै भी किंचित इसका इस्तेमाल नहीं करता,किन्तु मुझे मजबूर कर दिया है एक प्रोफेसर ने,एक कवि ने ,एक प्रवचनकर्ता ने कि मै इस शब्द पर लिखूं । लफंगे शब्द का इस्तेमाल करने वाले महापुरुष का नाम है कुमार विश्वास। कुमार विश्वास को अपने ही नाम पर विश्वास नहीं था इसलिए उसने अपना मूल नाम विश्वास कुमार शर्मा को बदलकर कुमार विश्वास कर लिया। कुमार विश्वास के पिता चंद्रपाल शर्मा चूंकि व्याख्याता थे सो कुमार भी इंजीनियर बनने के बजाय व्यख्याता बन गए। वे क्या बनना चाहते थे ,ये उन्हें भी पता नहीं ,लेकिन आजकल वे किसी को भी लफंगा कहने लगे हैं।
कुमार कवि बने, फ़िल्मी गीतकार बने,अभिनेता बने ,किन्तु टिके नहीं रह पाए । उनकी आत्मा भटकते हुए आम आदमी पार्टी में आ गयी । वे केजरीवाल बनना चाहते थे ,लेकिन वे कुछ भी नहीं बन पाए । कविता के मंच पर शृंगार के नाम पर फूहड़ता परोसने वाले कुमार जब कविता से ऊब गए तो आसाराम पथ पर चलते हुए धर्म प्रवाचक बन गये । हिन्दू बन गए और यहीं से उन्होंने देश के एक ख्यातिनाम अभिनेता के बेटे के नाम को लेकर लफंगा शब्द का इस्तेमाल करते हुए अपनी टीआरपी बढ़ाने की नाकाम कोशिश की। वे मुरादाबाद के एक कवि सम्मेलन में कविता पढ़ने गए थे और वहां उन्होंने कविता पढ़ने के बजाय सैफ-करीना के बेटे तैमूर के नाम को लेकर अपनी भड़ास निकाल दी।
कुमार की देह में शायद किसी हिन्दू उग्रवादी नेता की आत्मा ने प्रवेश किया और कुमार बोल उठे-तुम्हे हीरो-हीरोइन बनाएं हम और तुम शादी कर जो बच्चे पैदा करो उनका नाम किसी विदेशी आक्रमणकारी के नाम पर रखोगे तो ये सब नहीं चलेगा। कुमार को तैमूर के नाम से नफरत है। उनका कहना है कि नए भारत में आप किसी बच्चे का नाम उस लफंगे के नाम पर नहीं रख सकते। अब भारत जाग गया है। लगता है कि कुमार की अंतरात्मा भी 55 साल बाद जगी है। कुमार को मै भी पसंद नहीं करता लेकिन मैंने कभी उन्हें लफंगा नहीं कहा,क्योंकि ये मेरे संस्कारों का हिस्सा नहीं है । मै किसी को लफंगा कहकर या लिखकर सुर्खियां बटोरना नहीं चाहता। कुमार ऐसा कर रहे है। वे कुछ भी कर सकते हैं ,क्योंकि उनकी आत्मा भटक रही है।
आपको पता है कि कुमार विश्वास आमतौर पर सॉफ्ट हिंदुत्व वाली लाइन लेकर ही चलते रहे हैं. उनके भाजपा में जाने की चर्चाएं होती रही हैं पर वो कभी नेहरू या इंदिरा गांधी के खिलाफ नहीं बोलते हैं। राहुल गांधी को भी एक अच्छा व्यक्ति मानते हैं। मौका पड़ने पर बीजेपी-आरएसस की भी चुटकी ले चुके हैं। पर अब उन्होंने कट्टर हिंदुत्व वाला रास्ता पकड़ लिया है। उन्हें लगता है कि वे प्रवीण तोगड़िया या साध्वी ऋतम्भरा की तरह मुसलमानों पर आक्रमण कर हीरो बन जायेंगे। किन्तु वे भूल जाते हैं कि इन अग्निमुखी हिन्दू नेताओं का आज नामलेवा भी कोई नहीं है। कुमार जाने-अनजाने हिंदी कविता के मंच को राजनीति का ,हिंदुव का अखाड़ा बनाना चाहते हैं। लेकिन ऐसा हो नहीं पायेगा। देश एक दिन उन्हें भी ख़ारिज कर देगा,क्योंकि देश जानता है कि असली लफंगा कौन है ?
हिंदी के महा लफंगे कवि कुमार विश्वास ने पीएचडी की उपाधि तो हासिल कर ली किन्तु वे ‘ तैमूर ‘ का अर्थ नहीं जान पाए। जान भी गए होंगे तो वे इससे जानबूझकर अनजान बने हुए हैं। उन्हें जानना चाहिए कि तैमूर शब्द नाम का मतलब बहादुर मजबूत, एक प्रसिद्ध राजा, आयरन होता है।और हर कोई अपनी संतान को बहादुर तथामजबूत देखना चाहता है। अब कुमार को ऐसा करना पसंद नहीं है तो कोई क्या कर सकता है ?वे चाहें तो अपने बच्चों का नाम ‘ लंगूर ‘ रख लें । उन्हें किसी ने क्या ,ईश्वर ने भी इतनी ताकत नहीं दी कि वे सैफ-करीना के बेटे तैमूर का नाम बदलकर कुछ और रख दें। मै ईश्वर से प्रार्थना करूंगा कि वे कुमार विश्वास को सद्बुद्धि दें ताकि वे तंगदिली से बाहर निकल आएं । मै सैफ और करीना से भी दरख्वास्त करूंगा कि वे कुमार की टिप्पणी को दिल पार न लें क्योंकि लफंगा ही लफंगे की भाषा समझ सकता है। सैफ और करीना नहीं। दोनों के परिवार की एक विरासत है और वे किसी भी तरह से लफंगे नहीं है । मै कवि सम्मेलनों के आयोजकों और कुमार के साथ मंच साझा करने वालों से भी कहूंगा कि वे कुमार का बहिष्कार करें अन्यथा उन्हें भी उसी पाप का भागीदार समझा जाएगा जिसके दोषी कुमार विश्वास साहब हैं।