सुनील त्रिपाठी/गणेश अग्रहरि
प्रखर न्यूज़ व्यूज एक्सप्रेस
कौशांबी। शास्त्र और पुराणों के अनुसार महर्षि पुलस्त्य जी के वंशज में विश्वेसरवा जी के पुत्र महाराज लंका धिराज रावण का जन्म हुआ। महाराज रावण के जन्म के समय से ही महाराज दशानन के शरीर में 10 सिर जिसमें एक सिर गधा का देखने को मिल रहा है। जिसके शरीर में 20 भुजाएं थी। शास्त्रों के अनुसार लेख में मिलता है कि जिस समय रावण पृथ्वी पर चलता था पृथ्वी डोलती थी और यह भी लेख में मिलता है कि रावण जैसे कोई विद्वान नहीं था महाराज रावण 6 शास्त्र 18 पुराण और चार वेदों का ज्ञात थे। हालांकि महाराज रावण का जन्म अच्छे कुल और भूदेव ब्राह्मण के यहां हुआ था ।लेकिन 6 शास्त्र, 18 पुराण और चार वेदों के ज्ञाता होने के बावजूद भी महाराज रावण की प्रवृत्तियां बड़ी ही दुर्गम और जटिल थी ।रामचरितमानस के अनुसार यदि कहीं पर धर्म यज्ञ अथवा पूजा पाठ होता था वहां पर महाराज रावण अपनी सेनाओं को भेज कर धर्म यज्ञ और पूजा पाठ स्थल पर विघ्न डलवा देते थे। कहा तो इतना जाता है कि जह जो सुनी पावहि तह धावहि अति घोर मचावहि त्राहि त्राहि कर सब भागहि । महाराज रावण के अत्यंत प्रभावशाली और दुर्गम प्रवृत्ति से देवी देवता त्रस्त होकर कंदराओं में छुप गए थे यहां तक के देवराज इंद्र भी परास्त होकर अपना इंद्रासन छोड़कर भाग गए थे।माता पृथ्वी से रावण का अत्याचार सहन नहीं हुआ तब माता पृथ्वी गऊ का रूप धारण कर ब्रह्मा जी के साथ और अन्य देवताओं के साथ मिलकर क्षीरसागर जा कर भगवान विष्णु से विनम्र प्रार्थना किया था माता धरती के विनम्र प्रार्थना के अनुसार विष्णु जी महाराज अवधपति दशरथ के यहां जन्म लेकर 14 वर्षों का तक अपने माता-पिता के अनुसार वन में रहकर पृथ्वी के समस्त देवी देवताओं और संतों का घोर दुःख का हरण करते हुए प्रभु श्री रामचंद्र जी पृथ्वी पर भय, अपहरण ,राग द्वेश,झूठ, अनाचार और दुराचार फैलाने वाले महाराज दशकंधर के कुल का नाश कर दशशीश रावण पर विजय प्राप्त की जिससे आज का दिन विजयदशमी के नाम से जाना जाता है। ठीक इसी प्रकार से इस धरती पर झूठ बोलने वालो, दूसरों के साथ अन्याय करने वालो, और दूसरों के बहन बेटियों के साथ अत्याचार करने वालों के साथ एक दिन विजय का डंका बजेगा तब नया विजयदशमी का दिन आएगा और फिर से दोबारा ऐसे ही पावन पवित्र दिन विजयदशमी मनाया जाएगा।