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31 Jan 2025, Fri

यूसीसी की प्रयोगशाला है उत्तराखंड

राकेश अचल

देश पर शासन करने वाली भाजपा और उसके सहयोगी दल सबको साथ लेकर सबका विकास करना ही नहीं चाहते ,इसका सबसे बड़ा प्रमाण है यूसीसी का उत्तराखंड में जबरन लागू किया जाना। भाजपा ने उत्तराखडं को यूसीसी की प्रयोगशाला बना दिया है। केंद्र यदि चाहता तो इस नए कानून को उत्तर प्रदेश समेत देश के उन तमाम राज्यों में एक साथ लागू करा सकता था जहाँ कि भाजपा की सरकारें है । लेकिन ऐसा नहीं किया गया ,क्योंकि केंद्र उत्तराखंड में इस कानून के नतीजे देखना चाहती है। इस कानून को अदालती परीक्षण से भी गुजरना चाहती है।

यूसीसी यानि समान नागरिक संहिता लागू करना भाजपा और संघ का बहुत पुराना सपना है । भाजपा के जरिये संघ अपने पुराने सपनों में खरामा-खरामा रंग भरने में जुटा है । छह साल पहले संघ ने भाजपा के जरिये जम्मू-कश्मीर से संविधान की धारा 370 हटाई और अब बारी समान नागरिक संहिता की है।भाजपा देश की विविधता को एक ही रंग में रंगना चाहती है और वो रंग है भगवा रंग। भाजपा को देश में एक भाषा,एक भूषा,एक खाना,एक चुनाव यानि सब कुछ एक चाहिए। अगर कुछ एक नहीं चाहिए तो वो है मुसलमानों की मौजूदगी।

मुझे भाजपा के इस अभियान से कोई आपत्ति नहीं है। भाजपा इस समय भारत -भाग्य विधाता है। वो जो चाहे सो करे ,कर सकती है। सत्ता उसके हाथ में है। लेकिन भाजपा भूल रही है कि पूरा देश उसके हाथ में नहीं है। केंद्र को यानि भाजपा को एक सम्मान नागरिक संहिता लागू करने से पहले ये जान लेना चाहिए कि देश में अलग-अलग क्षेत्रों की ,जातियों की परम्पराएं ,रीति-रिवाज एक नहीं है। उनमें दखल देना अक्षम्य अपराध है ,लेकिन भाजपा का चरित्र ही एक -दूसरे के मजहब में मदाखलत करने का है। इसके लिए भाजपा रोज नए रास्ते तलाश करती रहती है। पिछले दस साल से भाजपा यही सब तो कर रही है। इस मामले में भाजपा के अनुसन्धान निकाय का लोहा मानना पड़ेगा।

देश में एक सामान नागरिक संहिता और एक चुनाव ,एक भाषा लागू करने से पहले देश की तमाम आबादी का सामाजिक,शैक्षणिक और आर्थिक स्तर भी एक समान करना होगा। भाजपा भूल जाती है कि अभी देश में समानता से ज्यादा असमानता यानि की गैर बराबरी है। देश में आधी आबादी के पास न दो जून की रोटी है और न सिर पर छत या छप्पर। तन पर कपड़ा भी नहीं है । हर हाथ को काम भी नहीं है। 80 करोड़ जनता तो सरकार के पांच किलो अन्न पर जीवित है ,ऐसे में यूसीसी कैसे लागू की जा सकती है ? लेकिन इसका विस्मिल्लाह उत्तराखंड से हो गया है क्योंकि इस सूबे में यूसीसी से प्रभावित होने वालों की तादाद कमोवेश कम है और यहां इसका ज्यादा विरोध भी नहीं हो पायेगा ,होगा भी तो उससे निबट लिया जाएगा।

भाजपा की सरकार के दुस्साहस का लोहा मै शुरू से मानता आया हूँ। लेकिन भाजपा में अभी इतना साहस नहीं है कि वो यूसीसी को उत्तर प्रदेश या केरल जैसे राज्यों में लागू कर दिखाए । इसके लिए भाजपा को एक -दो जन्म और लेना पड़ेंगे। भाजपा चूंकि संघ का उत्पाद है इसलिए उसे एक-दो जन्म लेने में भी कोई संकोच नहीं होगा। भाजपा को पुन: मूषक होने की आदत है । आपको याद होगा कि इसी भाजपा की अखंड,प्रचंड बहुमत वाली सरकार ने कुछ समय पहले किसनों के लिए तीन विवादास्पद क़ानून बनाये थे,लेकिन जब उनका देशव्यापी विरोध हुआ तब ये तीनों क़ानून वापस भी लेना पड़े ,ये बात और है कि भाजपा की सरकार ने क़ानून वापस लेने से पहले देश के 700 किसानों की बलि ले l।यूसीसी भी न जाने कितने बलिदान लेकर मानेगी

केंद्र सरकार की कोशिश है कि देश में शांति न रहे । कुछ न कुछ ऐसा होता रहे जिससे लोग चैन से न सो सकें। अब केंद्र उत्तराखंड में यूसीसी लागू करने के बाद वक्फ बोर्ड में गैर मुस्लिमों की घुसपैठ के साथ ही उसके मुकाबिल सनातन बोर्ड के गठन की रूपरेखा पर अमल करने वाले हैं । इस साल का महाकुम्भ इसका प्रयोग स्थल है । धर्म के ठेकेदार इस समय देश की सत्ता को संगम स्नान करने में लगे हुए हैं। सत्ता के एजेंडे पर काम करने में इन अखाड़ा प्रमुखों को कोई संकोच नहीं है। बल्कि देश के गृहमंत्री को गंगा स्नान करने में इन्हें अपना मोक्ष नजर आ रहा है। यानि सनातन धर्म भी अब सत्ता के समाने घुटनों के बल बैठ चुका है। गंगा ने शायद कभी हिन्दू-मुसलमान नहीं किया । उसमें सभी को नहाने की छूट दी,वो सभी के पाप धो देती है ,फिर चाहे वो चोर हो,जेबकट हो ,हत्यारा हो ,तड़ीपार हो। गंगा कभी ये नहीं कहती कि पहले हिन्दू बनकर आओ तभी मुझमें डुबकी लगाओ। लेकिन गंगा पुत्रों ने यही कोशिश की है कि गंगा को विधर्मी स्पर्श न कर लें। राजनीती करने वाले और धर्म के नाम पर दुकाने चलने वाले गंगा जैसी उदारता आखिर कहाँ से ला सकते हैं।

मुझे हैरानी होती है देश कि सबसे बड़ी अदालत के मौन पर ,क्योंकि देश की सबसे बड़ी अदालत ही अतीत में यूसीसी को ‘ डैड लैटर ‘ कह चुकी है लेकिन जब इसी क़ानून को उत्तराखंड में लागू किया जाता है तो सबसे बड़ी अदलात मौन साध लेती है। अब कोई जाये ,इस क़ानून को चुनौती दे ,तब शायद सबसे बड़ी अदालत इस कानून के सामविधान विरोधी चरित्र की समीक्षा करे। संविधान ने देश में 18 साल के बच्चों को मताधिकार दे दिया लेकिन यूसीसी इस उम्र के बच्चों को अपने मन से अपने जीवन साथी को चुनने का अधिकार नहीं देता। ये क़ानून कहता है कि यदि किसी बालिग़ को किसी के साथ ‘ लिव इन रिलेशन ‘ में रहना है तो पहले मम्मी-पापा से इजाजत लेकर आओ। क्या कमाल का प्रावधान है भाई। !

बहरहाल उत्तराखंड की जनता को यूसीसी मुबारक हो। उत्तराखंड देवभूमि है। देवता हिन्दू-मुसलमान करते हैं या नहीं ,ये मै नहीं जानता। लेकिन मुझे इतना पता है कि ये कानून देश की समरसता को प्रभावित करेगा,इसलिए भाजपा को आग का ये खेल खेलने से पहले एक बार फिर इस क़ानून पर पुनर्विचार करना चाहिये । हम केवल सुझाव दे सकते हैं,सरकार का हाथ नहीं पकड़ सकत। ये काम तो जनता का है। जनता अपना काम करे या न करे ,ये जनता की मर्जी है।

By archana

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