उरई । जनपद में “सुशासन सप्ताह” के अंतर्गत “प्रशासन गांव की ओर” जल संचयन जन भागीदारी कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य जल संकट के समाधान के लिए जनभागीदारी को बढ़ावा देना है। यह कार्यक्रम राजकीय मेडिकल कॉलेज के सभागार में आयोजित हुआ, जिसमें अपर सचिव/मिशन निदेशक जल शक्ति मंत्रालय भारत सरकार अर्चना वर्मा ने उपस्थित होकर जल संचयन के महत्व पर विचार साझा किए।
उत्तर प्रदेश जल निगम के प्रबंध निदेशक राजशेखर व आयुक्त झांसी विमल कुमार दुबे, उप महानिरीक्षक केशव चौधरी ने भी अपने संबोधन में जल संरक्षण के विभिन्न पहलुओं पर जोर दिया।
जिला पंचायत अध्यक्ष घनश्याम अनुरागी, सदर विधायक गौरीशंकर वर्मा, विधान परिषद सदस्य रमा निरंजन ने भी अपने संबोधन में जल सरंक्षण, जल संचयन पर अपने विचार रखे। अध्यक्षता कर रहे उमाशंकर पाण्डेय पदम श्री ने कहा कि जल संचयन में जन भागीदारी, भविष्य के लिए सामुहिक प्रयास की आवश्यकता है।
जिलाधिकारी ने इस अवसर पर जिले में किए गए जल संचयन कार्यों के बारे में विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने कहा कि भारत सरकार की महत्वपूर्ण महत्वकांक्षी योजना के तहत जल संचय को बढ़ावा देने के लिए कैच द रेन अभियान चलाया जा रहा है। यह अभियान जल संरक्षण और जनभागीदारी को जन आंदोलन में बदलने की एक महत्वपूर्ण पहल है। हमारा लक्ष्य अगले एक वर्ष में अधिक से अधिक बोरवेल तक पहुंचने का है। यह बोरवेल बारिश के पानी को संरक्षित करने के लिए बनाए जा रहे हैं। जिलाधिकारी ने बताया कि जनपद में जल संचयन के लिए कई प्रभावी कार्य किए गए हैं। जनपद में कुल 385 चैकडेमों का निर्माण किया गया है, जिसमें 56 चैकडेमों में डिसिल्टिंग का कार्य और 26 चैकडेमों में मरम्मत कार्य की प्रक्रिया चल रही है। इसके अलावा, 410 अमृत सरोवरों का निर्माण किया गया, जबकि 165 और अमृत सरोवरों का निर्माण कार्य प्रगति पर है। जल संरक्षण के लिए अन्य महत्वपूर्ण कार्यों में जनपद के 135 राजकीय भवनों जैसे विद्यालयों, पंचायत भवनों, तहसील, कलेक्ट्रेट और विकास भवनों पर रूफटॉप रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम का निर्माण किया गया। इसके अलावा, 3886 हैंडपंपों पर सॉकपिट का निर्माण किया गया है। जनपद में जल संरक्षण और नदी के तटीय क्षेत्रों में भी काम किया गया है। यमुना नदी के दाएं तट पर वेदव्यास मंदिर और कालपी घाट में 1.150 किलोमीटर रिवेटमेंट का निर्माण किया गया, जिससे एक हजार से अधिक भूमि कटान रहित उपजाऊ भूमि में परिवर्तित हो गई। मुख्यमंत्री के निर्देश पर जल संरक्षण के इस प्रयास से जनपद में वन विभाग ने भी योगदान दिया है, जिसमें एक करोड़ पेड़ लगाए गए हैं। इसके अतिरिक्त, जल पुनर्भरण के लिए 7 ग्रे वॉटर मैनेजमेंट इकाइयां बनाई गई हैं, और कुओं का पुनरुद्धार भी किया गया है। इन प्रयासों से जनपद में जल संकट की स्थिति में सुधार होगा।
जिलाधिकारी ने जल संरक्षण के उपायों के बारे में भी बताया। उन्होंने खेतों की मेड़बंदी, नदियों और धाराओं में चेक डेम का निर्माण, कृषि तालाबों का निर्माण और सफाई, टांकों और जलाशयों का निर्माण, वृक्षारोपण, सिंचाई टैंकों का निर्माण, नहर नेटवर्क में सुधार, पानी के रिसाव को रोकने के लिए पाइपलाइन नेटवर्क में सुधार, और रूफ टॉप रेन वॉटर हार्वेस्टिंग को प्रोत्साहन देने की बात की। उन्होंने भूमिगत जल के पुनर्भरण, घरों में जल निकासी के स्थान पर सॉकपिट गड्ढों का निर्माण, वर्षा जल संरक्षण हेतु स्टोरेज टैंक का निर्माण, और कृषि एवं बागवानी के लिए स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणाली को उपयोग में लाये जा रहे है। नल में टोंटी का प्रयोग करने और आरओ के व्यर्थ पानी का रसोई और बागवानी में उपयोग करने की भी बात की गई।
जल संरक्षण की आवश्यकता को समझाने और इसके प्रति लोगों को जागरूक करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अधिकारियों ने जल संकट से निपटने के लिए सभी से मिलकर काम करने की अपील की और जल संचयन को एक साझा जिम्मेदारी के रूप में देखा। इस अवसर पर सभी उपस्थित जनप्रतिनिधियों, प्रशासनिक अधिकारियों और आम जनता ने मिलकर जल संचयन के प्रयासों में सक्रिय भागीदारी का संकल्प लिया।
इस अवसर पर मुख्य विकास अधिकारी राजेन्द्र कुमार श्रीवास, अपर जिलाधिकारी वित्त एवं राजस्व संजय कुमार, परमार्थ सेवा संस्थान डॉ संजय सिंह आदि अधिकारी गणमान्य लोग मौजूद रहे।