भोपाल। मध्यप्रदेश सरकार के विभिन्न विभागों में कार्यरत लिपिक, कार्य के अतिरिक्त बोझ के चलते भले ही समय से पूर्व बीमारियों एवं अवसाद के शिकार हो रहे है पर उनकी पीड़ा को समझने का कार्य शासन-प्रशासन के किसी भी जिम्मेदारों को नहीं हैं। केन्द्र सरकार द्वारा हाल ही में आठवें वेतन आयोग की सिफारिशों को अगले साल लागू करने की घोषणा भले ही कर दी गई हो पर स्थिति यह है कि प्रदेश के लिपिक एक ओर काम के बोझ तले दबते जा रहे है तो दूसरी ओर उनके वेतन विसंगति की समस्या चार दशक से नहीं सुलझ पाई है। अब तो प्रदेश के लिपिकों की स्थिति यह हो गई है कि बदलते वेतनमान के बाद भी उनकी पगार चपरासियों से भी गई गुजरी हो गई है। प्रदेश भर के लिपिक विगत 40 साल से वेतन विसंगति की समस्या से जूझ रहे है। सरकार में उच्च पद पर बैठे अफसरों और राजनेताओं तक बार-बार अपनी समस्या पहुँचाने के बाद भी लिपिकों की वेतन विसंगति का मामला सुलझने के बजाय और उलझता जा रहा है। स्थिति यह है कि चपरासियों से भी कम हो रहे वेतनमान और काम के बढ़ते बोझ के चलते प्रदेश के लिपिक जहां एक और बीमारियों का शिकार होते जा रहे है तो दूसरी तरफ समस्याओं के चलते अवसाद से ग्रसित भी हो रहे है।
1984 से चली आ रही वेतन विसंगति की समस्या :
दरअसल, प्रदेश के लिपिकों के वेतन विसंगति का यह मामला साल 1984 से चला आ रहा है। तब तृतीय श्रेणी में लिपिकों का वेतन सबसे ज्यादा था, लेकिन धीरे-धीरे उनके नीचे के संवर्गों के वेतनमान बढ़ते गये तथा उनके पदनाम भी परिवर्तित होते गये पर प्रदेश के लिपिकों का वेतन पटवारी, सहायक शिक्षक, ग्राम सेवक, ग्राम सहायक, पशु चिकित्सा अधिकारी से भी कम होता गया। वेतन विसंगति दूर होने से प्रदेश के लिपिक कर्मचारियों को हर साल 12 हजार रूपये से लेकर 60 हजार रूपये तक का लाभ प्राप्त होता जिससे वो विगत 40 सालों से वंचित है। प्रदेश में सबसे ज्यादा विसंगति लिपिकों के वेतनमान में है। मध्यप्रदेश में स्टेनोग्राफर की योग्यता एवं भर्ती नियम एक है लेकिन मंत्रालय में पदस्थ स्टेनोग्राफरों को अधिक वेतनमान दिया जा रहा है।
अन्य राज्यों में बढ़ गया वेतन संवर्ग :
मध्यप्रदेश शासन के अंतर्गत आने वाले समस्त 52 विभागों में लिपिक और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी कार्यरत है लेकिन इनके वेतन विसंगति के चलते लिपिक संवर्ग का वेतन चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों से भी नीचे होते जा रहा है। जानकारी के अनुसार प्रदेश के दूसरे राज्यों में लिपिक संवर्ग का वेतन बढ़ाया जा चुका है। राजस्थान में लिपिकों का वेतनमान बढ़ाया गया है वहीं छत्तीसगढ़ और उत्तरप्रदेश में भी लगभग यही स्थिति है।
इसके विपरीत मध्यप्रदेश में सहायक ग्रेड-3 का ग्रेड पे 1900 रूपये है जबकि डाटा ऐन्ट्री ऑपरेटर का ग्रेड पे 2400 तथा पटवारी का 2100 रूपये है। यह स्थिति देखकर सहज रूप से अंदाजा लगाया जा सकता है मध्यप्रदेश के लिपिकों के साथ किस तरह से सौतेला व्यवहार किया जा रहा है। लिपिक संगठनों द्वारा बार-बार सरकार का ध्यान आकर्षित कराने के बावजूद भी वेतन विसंगति को दूर करने को लेकर सरकार की तरफ से अभी तक कोई पहल नही की गई।
विसंगति दूर करने 2016 में बनी थी समिति :
लिपिकों की वेतन विसंगति को दूर करने तथा मध्यप्रदेश लिपिक वर्गीय शासकीय कर्मचारी संघ की मांग पर सरकार द्वारा वर्ष 2016 में 5 सदस्यों की एक समिति का गठन किया था। इस समिति में मध्यप्रदेश राज्य कर्मचारी कल्याण समिति के तत्कालीन अध्यक्ष को अध्यक्ष, अपर सचिव वित्त को सदस्य, तत्कालीन अध्यक्ष मध्यप्रदेश सचिवालयीन कर्मचारी संघ, तत्कलीन प्रातांध्यक्ष मध्यप्रदेश लिपिक वर्गीय कर्मचारी संघ को सदस्य एवं उप सचिव सामान्य प्रशासन विभाग को सदस्य सचिव नियुक्त कर 3 माह में प्रतिवेदन प्रस्तुत करने के निर्देश सरकार ने दिये थे, पर इस समिति की सिफारिशें भी सरकार के पास धूल खा रही है।