संत रविदास कृत साहित्य में मानवीय संवेदना और समरसता पर केंद्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न
संत रविदास जयंती पर हुआ महत्वपूर्ण आयोजन तुम चंदन हम पानी, श्री कलामोहन भाषा, साहित्य एवं संगीत केन्द्र की राष्ट्रीय संगोष्ठी हुई
महान संत रविदास जयंती प्रसंग पर श्री कला मोहन भाषा, साहित्य और संगीत केन्द्र के बैनर तले तुम चंदन हम पानी शीर्षक से एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हुआ। संत रविदास कृत साहित्य में मानवीय संवेदना और समरसता विषय पर केंद्रित संगोष्ठी में देश के विभिन्न राज्यों के वक्ता और सुधीजन सहभागी बने। संगोष्ठी को संबोधित करते हुए आयोजन के मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलानुशासक एवं विभागाध्यक्ष प्रो शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने अपने सारगर्भित उद्बोधन में वर्तमान समय में संत रविदास जी के विचारों के अनुसरण की आवश्यकता और प्रासंगिकता पर उनके पदों के माध्यम से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि सन्त रविदास ने भारतीय जनमानस को अंतर्बाह्य दोनों स्तरों पर स्वतन्त्र करने का प्रयास किया। उन्होंने एक ओर बाह्याचारों और जड़ताओं से मुक्त होने का आह्वान किया तो दूसरी तरफ अंतर्मन के धरातल पर माया, ममता, अहं के संजाल को तोड़ने की की कोशिश की। समता, सदाचार और सद्भाव के सूत्र सन्त रविदास जी को अनुपम बनाते हैं। भारतीय संविधान में उनकी वाणी और सन्देशों का स्पंदन देखा जा सकता है।
विशिष्ट वक्ता राजकीय महाविद्यालय टोंक राजस्थान की प्रोफेसर डॉ. प्रणु शुक्ला और राजकीय महाविद्यालय गोगुंदा के प्रोफेसर डॉ शंकर लाल ढोली, उदयपुर ने संत रविदास को राष्ट्रीय चेतना और सामाजिक जागृति का अग्रदूत निरूपित करते हुए महत्वपूर्ण विचार साझा किए।
संगोष्ठी का आरंभ श्री कारूलाल जमडा द्वारा संत रविदास जी के प्रसिद्ध भजन ‘प्रभु जी! तुम चंदन हम पानी’ के गायन से हुआ। प्रारम्भ में और समाप्ति पर लोकगायक श्री नरसिंह डोडियार रतलाम द्वारा गाये गये संत रविदास जी के पदों से हुई। संचालन संयोजक डॉ. कारुलाल जमड़ा ने किया। संगोष्ठी में श्री अशोक दुबे, भोपाल, सोनू कुमार, बिहार, लोकगायक श्री सुंदरलाल मालवीय, डॉ श्वेता पंड्या, उज्जैन, प्रियंका कविश्वर नीमच, डॉ सुदामा सखवार, अनुराग वर्मा, राजस्थान, अजय सूर्यवंशी दिग्विजय द्विवेदी सहित कई विद्वानों और शोधार्थियों ने सहभागिता की।