राकेश अचल
भारतीय संसद हर मामले में दुनिया की दूसरी सांसदों से अलग है ,अनूठी है ,विशिष्ट है । हमारी संसद में प्रदर्शनकारी भी घुस सकते हैं ,आतंकी भी हमला कर सकते हैं और सांसद भी नोटों की गड्डियां लहरा सकते हैं। विधेयकों को फाड़ना तो आम बात है। संसद के शीत सत्र में जिस दिन किसान आंदोलन पर,संविधान पर चर्चा होना थी उसे नोटों की गड्डियों ने धूमिल कर दिया। सभापति श्रीमान जगदीप धनकड़ साहब ने सदन की कार्रवाई शुरू होते ही ये बम फोड़ा।
धनकड़ साहब की मासूमियत पर मेरा दिल तो हमेशा से फ़िदा है । वे कहते हैं कि उन्होंने सोचा कि जिस किसी सांसद के ये नोट होंगे वो आएगा और अपना दावा जतायेगा,किन्तु जब कोई नहीं आया तब उन्होंने इस मामले की जांच करने के लिए कहा। धनकड़ साहब की सूचना सत्ता पक्ष के लिए एक नया हथियार बन गया । सत्ता पक्ष ने विपक्ष को आड़े हाथ लिया तो विपक्ष के नेता श्रीमान मल्लिकार्जुन खड़गे खड़े हो गए । उन्होंने कहा की जब तक मामले की जांच के निष्कर्ष नहीं आ जाते तब तक कोई किसी को कैसे दोषी ठहरा सकता है। सत्ता पक्ष के नेता जेपी नड्ढा साहब ने खड़गे पर माले की जांच को दबाने की कोशिश बताया तो बात और बिगड़ गयी।
मजे की बात ये है कि जैसे ही सीट नंबर 222 का जिक्र हुआ ,वैसे ही इस सीट पर बैठने वाले कांग्रेस के अभिषेक मनु सिंघवी का बयान आ गया । अभिषेक जी कहते हैं कि वे तो केवल पांच सौ का एक नॉट लेकर सदन जाते हैं। उनकी सीट पर नोटों की ये गड्डियां कहाँ से आयीं ,वे नहीं जानते। सिंधवी का कहना है कि वे तो सदन में केवल तीन मिनीट ही रुके ,क्योंकि उनके आते ही सदन की कार्रवाई समाप्त हो गयी थी। अब सवाल ये है की किसे सही माना जाए ? अभिषेक जी को या धनकड़ जी को। सच्चाई का पता तो जांच के बाद ही चल सकता है। अब सब जानते हैं की नोटों के न पंख होते हैं और न पैर । वे सदन में न उड़कर आ सकते हैं और न चलके । मतलब ये कि उन्हें कोई न कोई तो लेकर आय। या तो वे अभिषेक सिंधवी के साथ आये या इन नोटों को कोई और लेकर आया और ये नोट जानबूझकर अभिषेक की सीट पर रखे गए ताकि सिंघवी को बढ़नाम किया जा सके। या फिर सदन में किसानों के मुद्दे पर कार्रवाई को टाला जा सके।
आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि इससे पहले सदन में नोट चलकर कभी नहीं आये । उन्हें लाया गया । 2008 में भाजपा सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते,अशोक अर्गल और महावीर सिंह करोड़ नोटों की गड्डियां लहराते हुए सदन में आये थे । आरोप था कि तत्कालीन सरकार को गिरने से बचाने के लिए किसी अज्ञात व्यक्ति ने उन्हें ये नोट दिए। इस मामले में भी जांच हुई और नतीजा वो ही चूं-चूं का मुरब्बा ही निकला। संसद में पिछले साल परदरसशंकारियों ने सदन के भीतर जाकर प्रदर्शन किया था ,लेकिन क्या हुआ ? कुछ नहीं। संसद आम जनता के लिए सुरक्षा के नाम पर अलभ्य है लेकिन फिर भी वहां कुछ न कुछ होता ही रहता है।
हमारी संसद आखिर संसद न हुई ,किसी गरीब की जोरू हो गयी। कोई जब मन करे तब संसद को अपने ढंग से चलाने की कोशिश करता है। कभी सदन हंगामें डूबा रहता है तो कभी वहां हाथापई की नौबत आए जाती है । कभीयहां नोट लहराए जाते हैं तो कभी भगवान की तस्वीरें दिखा सकता है। संसद फैशन परेड का रैम्प तो पहले से है ही। सदन में gine चुने सांसद हैं जो सच्चे मन से संसदीय कार्रवाई में हिस्सा लेने की तैयारी करआते है। बाकी के लिए तो संसद हाजरी लगाने की जगह रह गयी है।
देश चाहता है की राजयसभा में नोटों की गड्डियां मिलने का रहस्य केवल रहस्य न रहे बल्कि उजागर हो ताकि भविष्य में इस तरह की अशोभनीय घटनाओं को रोका जा सके।