सुनील त्रिपाठी/रविंद्र आर्य
प्रखर न्यूज़ ब्यूज एक्सप्रेस
आर्यावर्त्त के आर्यो ने सनातन धर्म के युद्ध कों सदैव गौरब सम्मान प्रकृति की सुरक्षा के अनुकूल लड़ा।
हमारा सनातन धर्म हमें आध्यात्मिक संदेश देता है, जो मनुष्य को प्रकाश की ओर ले जाता है और उसे प्रकृति के मूल्यों का वास्तविक रूप समझने का अवसर प्रदान करता है। भगवान ने हमें त्योहारों का उत्सव मनाने का अवसर दिया है ताकि हम इन मूल्यों को संजो सकें। योगी पुरुष श्रीकृष्ण, जो महाभारत के नायक हैं, को यूँ ही भगवान नहीं कहा जाता। महाभारत के युद्ध में भले ही लाखों वीर मारे गए हों, लेकिन यह युद्ध खुली धरती पर हुआ, और ऐसा कोई उदाहरण नहीं मिलता कि एक भी पेड़ को क्षति पहुँची हो या कोई निर्दोष मारा गया हो। श्रीकृष्ण ने प्रकृति के महत्व और उसकी रक्षा के मूल्य को गहराई से समझा और इसे संजोए रखा।
आज के युद्ध की तुलना में, जो कार्बन युद्ध का रूप ले चुका है, बमों से अरबों-खरबों जीव-जंतु मारे जाते हैं और प्रकृति को भारी नुकसान होता है। वर्तमान समय में मानवता और प्रकृति का विनाश हो रहा है, और मानव विवेक और बुद्धि से हीन हो गया है।
7 अक्टूबर को हुए अमानवीय अत्याचार को इसी से समझा जा सकता है, जहाँ निर्दोष बच्चों, महिलाओं को धोखे से मारा गया और बर्बरता का नंगा नाच खेला गया। ये लड़ाई कायरता की पराकाष्ठा थी, जिसे कुछ लोग “जिहाद” कहकर महिमामंडित करते हैं, परंतु यह केवल निर्दोषों का संहार है। विशेष समुदाय को कलियुग के राक्षस के रूप में देखा जा रहा है, जो मानवता और नैतिकता के सभी सीमाओं का उल्लंघन कर रहा है।
इज़राइल में यहूदियों पर किया गया हमला युद्ध नहीं था, बल्कि जिहादियों की कायरता का कलयुगी राक्षसी रूप था। यह हमला निर्दोष लोगों पर अत्याचार और आतंक फैलाने का प्रयास था, जिसमें मानवीय मूल्यों, शांति और सद्भावना का उल्लंघन किया गया। युद्ध का सिद्धांत साहस और मर्यादा से जुड़ा होता है, लेकिन इस कृत्य में केवल हिंसा और क्रूरता दिखी, जो कायरता का प्रतीक था।
इज़राइल और भारत दोनों ही दशकों से आतंकवादी और जिहादी गुटों के क्रूर और अमानवीय हमलों का सामना कर रहे हैं। इज़राइल को जहां ईरान समर्थित प्रॉक्सी गुटों का सामना करना पड़ता है, वहीं भारत को पाकिस्तान द्वारा समर्थित आतंकवादी संगठनों की गतिविधियों से जूझना पड़ता है। ये प्रॉक्सी गुट एक विशेष विचारधारा के आधार पर सीमा पार से तथाकथित “जिहाद” के नाम पर युद्ध छेड़ते हैं, जिसमें निर्दोष लोगों को निशाना बनाया जाता है। ईरान और पाकिस्तान इन संगठनों का समर्थन और संरक्षण करके उन्हें युद्ध के लिए तैयार रखते हैं, और इस प्रकार आतंक को बढ़ावा देते हैं।
इज़राइल के द्वारा लगाए गए आरोप वाकई गंभीर हैं और अंतरराष्ट्रीय संबंधों में कई महत्वपूर्ण सवाल खड़े करते हैं। यह आरोप कि संयुक्त राष्ट्र से संबंधित संस्थाएं, जो शांति और बच्चों की सेवा के लिए काम करती हैं, गुप्त रूप से जिहादी प्रॉक्सी गुटों के समर्थन में शामिल होकर एक तरह के छल-कपट युद्ध में संलग्न हैं, यह चिंताजनक स्थिति है। यदि ऐसे आरोपों में सच्चाई है, तो यह इन संस्थाओं के उद्देश्यों और उनकी विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल उठाता है।
मीडिया, विशेष रूप से अल जजीरा जैसे चैनल पर भी इज़राइल द्वारा लगाए गए आरोप कि वे आतंकवादी गुटों के प्रति सहानुभूति रखने वाले दृष्टिकोण को बढ़ावा देते हैं, और इज़राइल के खिलाफ जासूसी या नकारात्मक प्रचार में भूमिका निभाते हैं, यह उनकी निष्पक्षता और पत्रकारिता के सिद्धांतों पर भी सवाल खड़ा करता है। मीडिया का काम है निष्पक्ष और तथ्यात्मक जानकारी देना, ताकि लोग सच्चाई को समझ सकें। लेकिन यदि मीडिया किसी एक पक्ष का समर्थन कर रहा है या किसी विशेष विचारधारा को प्रचारित कर रहा है, तो वह अपनी निष्पक्षता और स्वतंत्रता खो बैठता है।
इस तरह का “छल युद्ध” मानवता के बुनियादी सिद्धांतों के खिलाफ है, क्योंकि इससे न केवल शांति स्थापना के प्रयासों को ठेस पहुँचती है, बल्कि इन संस्थाओं पर निर्भर लाखों लोगों का भरोसा भी टूटता है। ऐसे आरोपों की निष्पक्ष जांच की आवश्यकता है ताकि अंतरराष्ट्रीय मंच पर सच्चाई सामने आ सके और मानवता की सेवा करने वाले संगठनों की प्रतिष्ठा बरकरार रहे।
सनातन धर्म का युद्ध सदैव गौरव और सम्मान का युद्ध रहा है। महाभारत से लेकर राजपूताना, मराठा, पृथ्वीराज चौहान, रानी लक्ष्मीबाई तक, हमारे पूर्वजों ने युद्ध लड़े लेकिन हमेशा शांति, सम्मान और प्रकृति का आदर किया। रावण जैसे प्रतापी योद्धा भी, जिनके गुण आज तक गाए जाते हैं, उन्होंने युद्ध को एक नैतिकता और धर्म की रक्षा के रूप में देखा था। हमारे पूर्वजों के युद्ध में कभी भी प्रकृति का विनाश नहीं हुआ।
यही संदेश श्रीकृष्ण ने पवित्र गीता के माध्यम से हमें दिया है। उन्होंने हमें समझाया कि युद्ध तभी होना चाहिए जब यह धर्म की रक्षा के लिए अनिवार्य हो और उसे भी सद्भावना, नैतिकता और संयम से करना चाहिए। सनातन का यह संदेश हमें आत्मनिरीक्षण की प्रेरणा देता है, ताकि हम जीवन में सद्भाव, संयम और प्रकृति की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दे सकें।
आर्यावर्त के आर्यों ने सनातन धर्म के सिद्धांतों के अनुसार युद्ध को सदैव गौरव, सम्मान और प्रकृति की सुरक्षा के अनुकूल लड़ा। उनके लिए युद्ध केवल विजय का साधन नहीं था, बल्कि धर्म, न्याय और सत्य की स्थापना के लिए एक साधना थी। वे हमेशा धर्म, प्रकृति और मानवता का सम्मान करते हुए युद्ध में उतरते थे, जिसमें हिंसा का अनावश्यक प्रयोग न करके संतुलन और प्रकृति की रक्षा को प्राथमिकता दी जाती थी। यही कारण था कि उनके युद्ध नीति में न केवल वीरता बल्कि मर्यादा, करुणा और पर्यावरण संरक्षण की भावना भी समाहित थी।